हाल ही में सरकार ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी
जीएसटी की नई दरों की घोषणा की है। अब चार की जगह जीएसटी के दो स्लैब ही रहेंगे। सरकार का दावा है कि दाम घटेंगे तो माँग बढ़ेगी लेकिन टैक्स कम होने से सरकारी खजाने को 48,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होगा। साथ ही राज्यों के राजस्व को भी नुक़सान होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 50% टैरिफ लगाने की पृष्ठभूमि में जीएसटी सुधार के इस कदम को मीडिया मास्टर स्ट्रोक बताते हुए दावा कर रहा है कि इससे आम लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन आज राहत देने की बात करने वाले ही बीते आठ साल से तकलीफ़ दे रहे थे, यह बात ग़ायब है। बहरहाल, अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए इस दावे पर यक़ीन करना मुश्किल है कि मात्र इस कदम से उसमें चमक लौट आएगी।
जीएसटी का इतिहास
जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स एक अप्रत्यक्ष कर है, जो सामान और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है। इसका मकसद था देश में कई तरह के टैक्स – जैसे वैट, सर्विस टैक्स, और एक्साइज ड्यूटी – को एक सिंगल टैक्स में बदलना था। यह विचार पहली बार यूपीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय सामने आया था, लेकिन उस वक्त बीजेपी इसका विरोध कर रही थी। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने कहा था:
"GST के संबंध में गुजरात और भारतीय जनता पार्टी का रुख बहुत साफ है। आपका जीएसटी का सपना तब तक साकार नहीं हो सकता, जब तक आप पूरे देश में टैक्सपेयर के साथ आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर का नेटवर्क नहीं बनाते। ये असंभव है। क्योंकि जीएसटी की संरचना ही ऐसी है कि हम इसे लागू नहीं कर सकते।”
लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जीएसटी को ‘टैक्स क्रांति’ बताते हुए 1 जुलाई, 2017 को लागू किया। संसद का विशेष सत्र आधी रात को बुलाया गया, और इसे ‘दूसरी आजादी’ की तरह पेश किया गया। इसके साथ ही तमाम दूसरे करों को खत्म कर जीएसटी को चार स्लैब्स – 5%, 12%, 18%, और 28% – में लागू किया गया।
हालाँकि, जीएसटी लागू होने के बाद पहाड़ जैसी परेशानियों से ख़ासतौर पर छोटे दुकानदारों को गुज़रना पड़ा। इसकी जटिल रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, तकनीकी दिक्कतें, और चार स्लैब्स की वजह से उन्हें काफ़ी परेशानी हुई। व्यापारियों को रिटर्न फाइल करने के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की मदद लेनी पड़ी। इसकी जटिलता की वजह से विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, ने इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ करार दिया। राहुल गांधी का कहना था कि जीएसटी की ऊंची दरें और जटिल संरचना छोटे व्यापारियों और आम लोगों पर बोझ डाल रही हैं।
जीएसटी 2.0
3 सितंबर, 2025 को जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में एक ऐतिहासिक फ़ैसला लिया गया। चार स्लैब्स को घटाकर दो स्लैब्स – 5% और 18% – कर दिया गया। तंबाकू, लग्जरी कार, यॉट, और हेलिकॉप्टर जैसे सामानों पर 40% का एक विशेष स्लैब रखा गया।
जीरो टैक्स स्लैब को भी गिना जाए तो कुल मिलाकर चार स्लैब्स अभी भी हैं, लेकिन मुख्य रूप से दो स्लैब्स की बात हो रही है। ये नई दरें 22 सितंबर, 2025 से लागू होंगी, जो नवरात्रि का पहला दिन है।
2016 में संविधान के 101वें संशोधन के तहत बनी जीएसटी काउंसिल इन फैसलों का केंद्र है। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण करती हैं, और इसमें सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के वित्त मंत्री शामिल हैं। किसी भी फैसले के लिए तीन-चौथाई बहुमत जरूरी है, जिसमें केंद्र का वोट एक-तिहाई और राज्यों का दो-तिहाई वजन रखता है।
इस सुधार की नींव 2021 में पड़ी, जब काउंसिल ने एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GoM) बनाया था। लेकिन प्रगति धीमी थी। फिर 15 अगस्त, 2025 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में जीएसटी सुधारों को ‘दिवाली गिफ्ट’ बताया। उसी दिन वित्त मंत्रालय ने GoM को प्रस्ताव भेजा, जिसे 3 सितंबर को मंजूरी मिल गई।
ट्रंप टैरिफ़ का जवाब
क्या ये नई दरें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 50% टैरिफ का जवाब हैं? कई विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के लगाये पचास फ़ीसदी टैरिफ़ ने भारत के निर्यात पर दबाव डाला है। जीएसटी कट्स का मकसद घरेलू मांग को बढ़ाना है, ताकि निर्यात में कमी की भरपाई हो सके। सस्ती चीजों से खरीदारी बढ़ेगी और खरीदारी से मांग।
हालाँकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ किया कि ये सुधार लंबे समय से प्लान किए गए थे और ट्रंप के टैरिफ्स से इनका कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन सरकार की इस सफाई पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि जीएसटी की आलोचना को पहले कभी गंभीरता से नहीं लिया गया।
अर्थव्यवस्था पर असर
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक अनुसंधान विभाग के विश्लेषण के अनुसार, कुल 453 वस्तुओं पर जीएसटी दरों में बदलाव हुआ। इनमें से 413 (लगभग 91%) की दरें घटाई गईं, जबकि 40 वस्तुओं की दरें बढ़ीं। 257 रोजमर्रा की वस्तुएं, जैसे टूथपेस्ट, शैंपू, और साइकिल, 12% से घटाकर 5% स्लैब में लाई गईं। 17 वस्तुओं को 28% से बढ़ाकर 40% स्लैब में डाला गया, लेकिन मुआवजा सेस के साथ पहले इनकी प्रभावी दर 45-50% थी, जो अब घटकर 40% हो जाएगी।
कई क्षेत्रों ने इन सुधारों का स्वागत किया। हेल्थकेयर उद्योग ने चिकित्सा उत्पादों पर जीएसटी 12% से 5% करने की सराहना की, क्योंकि इससे मरीजों को सीधा लाभ होगा।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने भी इसे स्वच्छ ऊर्जा के लिए प्रगतिशील कदम बताया। रियल एस्टेट और ऑटो निर्माताओं ने सीमेंट, कार, और बाइक्स पर टैक्स घटने से मांग बढ़ने की उम्मीद जताई।
लेकिन कुछ क्षेत्रों ने आपत्तियाँ भी जताईं। टेक्सटाइल उद्योग ने ₹2,500 से ज्यादा कीमत वाले परिधानों पर 18% टैक्स की आलोचना की। ऑटो डीलरों ने चिंता जताई कि उपभोक्ता खरीदारी 22 सितंबर तक टाल सकते हैं। बीमा क्षेत्र को इनपुट टैक्स क्रेडिट हटने से लागत बढ़ने का डर है। एयरलाइंस ने गैर-इकॉनमी सीटों पर बढ़े टैक्स की आलोचना की और एमएसएमई ने मजदूरी शुल्क पर जीएसटी 12% से 18% होने से लागत बढ़ने की शिकायत की।
राज्यों की चिंताएं
केंद्र सरकार ने अनुमान लगाया है कि जीएसटी कट्स से सालाना 48,000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होगा। एसबीआई का अनुमान है कि यह नुकसान सिर्फ 3,700 करोड़ रुपये होगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि अगर खपत में 10% की वृद्धि होती है, तो जीडीपी में 20 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त योगदान होगा, जिससे फायदा नुकसान से ज्यादा होगा।
लेकिन विपक्षी राज्यों – जैसे केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, और पश्चिम बंगाल – का अनुमान है कि उन्हें 1.5-2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। केरल ने कहा कि सीमेंट और ऑटो जैसे क्षेत्रों से 2,500 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार, आठ विपक्षी राज्यों को 15-20% राजस्व नुकसान की आशंका है।
जीएसटी काउंसिल ने इन चिंताओं को संबोधित करने के लिए मुआवजा सेस को मार्च 2026 तक बढ़ाने और ‘सिन’ गुड्स पर अतिरिक्त लेवी का सुझाव दिया। राज्यों ने मांग की कि 40% स्लैब पर सेस लगाकर उसकी राशि उन्हें दी जाए, लेकिन काउंसिल ने इस पर सहमति नहीं जताई। अब राज्यों को अपने स्रोत ढूंढने होंगे या सोलहवें वित्त आयोग पर निर्भर रहना होगा।
वित्त आयोग
वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो हर पांच साल में केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे की सिफारिश करता है। वर्तमान में 15वां वित्त आयोग (2021-2026) कार्यरत है, जो केंद्र के कर पूल का 41% राज्यों को देने की सिफारिश करता है। सोलहवां वित्त आयोग संभवतः 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में गठित होगा, और इसकी रिपोर्ट 2027 तक आएगी।
विपक्षी राज्य चाहते हैं कि यह आयोग जीएसटी नुकसान की भरपाई के लिए विशेष अनुदान और ज्यादा हिस्सेदारी की सिफारिश करे। लेकिन केंद्र ने अभी तक इस पर कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं दिखायी।
जीएसटी 2.0 भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा कदम है। यह आम लोगों, मध्यम वर्ग, और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों को राहत दे सकता है। लेकिन राज्यों के लिए 1.5-2 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान और छोटे दुकानदारों की चुनौतियां चिंता का विषय हैं। बहरहाल, असल सवाल यह है कि क्या कीमतों में कमी लोगों को खर्च करने के लिए प्रेरित करेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य इसी सवाल के जवाब में छिपा है क्योंकि मौजूदा हालत में लोगों की क्रय शक्ति देखते हुए उनका बाज़ार में खुले हाथ खर्च कर पाना आसान नहीं लगता।