पांच राज्यों के लिए विधानसभा चुनावों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ही सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में बगावत के स्वर सुनाई देते हैं। इसे लेकर नुक्ताचीनी करने का कोई अर्थ नहीं है। चुनावों के समय की जाने वाली बगावतों का बहुत आंशिक असर होता है लेकिन यदि बगावत संगठित रूप से होती है तो राजनीतिक परिदृश्य बदलने में ज़्यादा देर नहीं लगती। बावजूद इसके कुछ बगावतें भीगी बारूद की तरह फुस्स होकर रह जाती हैं।

भाजपा प्रत्याशियों की हर नई सूची बगावत की ख़बर लेकर आती है। लेकिन भाजपा की बगावत क्या संगठित रूप में आता है? जानिए, आख़िर क्यों पार्टी में विभाजन कोई ख़तरा नहीं।
बगावतों का इतिहास हर राज्य में है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक। बगावत की बयार अक्सर चलती है किन्तु आंधी में यदा-कदा तब्दील हो पाती है। बगावत जब आंधी में तब्दील होती है तब अनेक अवसरों पर राजनीतिक दलों का विभाजन भी होता है। सबसे ज्यादा विभाजन का दंश कांग्रेस ने सहा है। भाजपा में भी अनेक विभाजन हुए लेकिन भाजपा छोड़कर जिन नेताओं ने भी अपने दल बनाये वे ज्यादा दिन अपना वजूद बचाकर नहीं रख सके।