2021-22 में भारत कुल तेल आयात का सिर्फ 2% रूस से ख़रीदता था। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने छूट ($10-15 प्रति बैरल) पर तेल बेचना शुरू किया। नतीजा? 2022-23 में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, जिसकी हिस्सेदारी 40% तक पहुँची। 2024 में भारत ने रूस से 1.6 मिलियन बैरल प्रति दिन खरीदा, जो कुल आयात (4.5 मिलियन bpd) का 36% था। इससे भारत ने 2022-25 के बीच $13-17 बिलियन की बचत की। रिफाइंड तेल यूरोप को बेचकर $36 बिलियन कमाये गये।
लेकिन 2025 में अमेरिकी प्रतिबंधों (Rosneft और Lukoil पर) और ट्रंप की धमकियों के बाद तस्वीर बदली। रूस का हिस्सा 34% तक गिर गया। सरकारी और निजी कंपनियों ने खरीद कम की या रोक दी।
सरकारी कंपनियाँ
- Indian Oil Corporation (IOC): जुलाई 2025 से स्पॉट मार्केट में रूसी तेल खरीद बंद। पहले 0.8 मिलियन bpd (16%)।
- Bharat Petroleum (BPCL): जुलाई 2025 से खरीद बंद। पहले 0.6 मिलियन bpd (12%)।
- Hindustan Petroleum (HPCL): जुलाई 2025 से स्पॉट खरीद रोकी। पहले 0.25 मिलियन bpd (5%)।
- Mangalore Refinery (MRPL): जुलाई 2025 से खरीद बंद। पहले 10-15% आयात।
निजी कंपनियाँ
- Reliance Industries: 23 अक्टूबर 2025 को कहा कि रूसी आयात का “पुनर्संतुलन” हो रहा है। पहले 1.7 मिलियन bpd (34%)।
- Nayara Energy: जुलाई 2025 से प्रभावित, लेकिन ट्रेडर्स के ज़रिए खरीद जारी। पहले 15% आयात।
ट्रंप का दावा
15 अक्टूबर 2025 को व्हाइट हाउस में प्रेस से बात करते हुए ट्रंप ने कहा, “मैं भारत के तेल खरीदने से खुश नहीं था, और मोदी ने आज मुझे आश्वासन दिया है कि वे रूस से तेल नहीं खरीदेंगे। मोदी एक महान व्यक्ति हैं, वे ट्रंप से प्यार करते हैं।” यह बयान Reuters, CNN, BBC, और The Washington Post जैसे अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्थानों की सुर्खी बना लेकिन 16 अक्टूबर को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमें ऐसी कोई बातचीत की जानकारी नहीं है। भारत ऊर्जा सुरक्षा और बाजार के आधार पर आयात करता रहेगा।”
यह खंडन कमज़ोर था। भारत ने न तो ट्रंप के दावे को पूरी तरह नकारा, न ही पुष्टि की। लेकिन यह तो साफ़ हो ही गया कि सरकारी कंपनियों ने रूसी तेल ख़रीदना बंद कर दिया है। विपक्ष ने इसे “मोदी का सरेंडर” बताया। सवाल उठा कि अगर भारत स्वतंत्र नीति पर चल रहा है, तो सरकारी रिफाइनरियों ने जुलाई 2025 से रूसी तेल क्यों रोका? और निजी कंपनियाँ क्यों पीछे हट रही हैं?