अब ये साफ़ हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झुक गये हैं। भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने रूस से तेल आयात बंद कर दिया है और निजी कंपनियाँ भी इसी राह पर हैं। कुछ दिन पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा भी था कि पीएम मोदी ने उनसे रूस से तेल न ख़रीदने का वादा किया था लेकिन विदेश मंत्रालय ने ऐसी किसी बातचीत की जानकारी से इनकार कर दिया था।

मोदी-ट्रंप दोस्ती

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पर जिस तरह से ख़ुद को न्योछावर किया था, उसकी दूसरी मिसाल नहीं है। सितंबर 2019 में ह्यूस्टन के NRG स्टेडियम में ‘हाउडी मोदी’ आयोजन हुआ, जहाँ 50,000 भारतीय-अमेरिकियों के सामने मोदी ने ट्रंप की तारीफ की और “अबकी बार ट्रंप सरकार” का नारा लगाया था। यह 2020 के अमेरिकी चुनाव के लिए ट्रंप के लिए समर्थन जुटाना था। फिर फरवरी 2020 में अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में ‘नमस्ते ट्रंप’ हुआ, जिसमें 1,10,000 लोग जुटे। कोविड की आहट के बावजूद यह दुनिया का सबसे बड़ा स्वागत समारोह था लेकिन 2020 में ट्रंप चुनाव हार गए और जनवरी 2025 में दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद उनका रुख़ ‘मित्र मोदी’ के प्रति बदला हुआ है।
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रूसी तेल पर ट्रंप की धमकी

रूस और यूक्रेन के बीच तनाव तो फरवरी 2014 से था लेकिन 24 फरवरी 2022 को रूस के आक्रमण के साथ यह पूर्ण युद्ध में बदल गया। ट्रंप ने दावा किया था कि वे छह महीने में युद्ध खत्म कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ट्रंप मानते हैं कि भारत, रूस से सस्ता तेल खरीदकर, उसकी ‘युद्ध मशीन’ को फंड कर रहा है। इसी वजह से अगस्त 2025 में ट्रंप ने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ (कुल 50%) लगाया और धमकी दी कि अगर रूस से तेल खरीदना बंद नहीं हुआ, तो टैरिफ 100% तक बढ़ेगा। ट्रंप का कहना है कि भारत ने 2024 में रूस से $52 बिलियन का तेल खरीदा, जिससे पुतिन को युद्ध चलाने की ताकत मिली।

अमेरिका का यह भी दावा है कि भारतीय कंपनियाँ सस्ता रूसी तेल खरीदकर रिफाइन करती हैं और यूरोप में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। सवाल है कि क्या ट्रंप का यह दावा सही है? और अगर सही है तो भारत ने क्या जवाब दिया?

रूस से तेल आयात

2021-22 में भारत कुल तेल आयात का सिर्फ 2% रूस से ख़रीदता था। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने छूट ($10-15 प्रति बैरल) पर तेल बेचना शुरू किया। नतीजा? 2022-23 में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, जिसकी हिस्सेदारी 40% तक पहुँची। 2024 में भारत ने रूस से 1.6 मिलियन बैरल प्रति दिन खरीदा, जो कुल आयात (4.5 मिलियन bpd) का 36% था। इससे भारत ने 2022-25 के बीच $13-17 बिलियन की बचत की। रिफाइंड तेल यूरोप को बेचकर $36 बिलियन कमाये गये।

लेकिन 2025 में अमेरिकी प्रतिबंधों (Rosneft और Lukoil पर) और ट्रंप की धमकियों के बाद तस्वीर बदली। रूस का हिस्सा 34% तक गिर गया। सरकारी और निजी कंपनियों ने खरीद कम की या रोक दी।

सरकारी कंपनियाँ

  • Indian Oil Corporation (IOC): जुलाई 2025 से स्पॉट मार्केट में रूसी तेल खरीद बंद। पहले 0.8 मिलियन bpd (16%)।
  • Bharat Petroleum (BPCL): जुलाई 2025 से खरीद बंद। पहले 0.6 मिलियन bpd (12%)।
  • Hindustan Petroleum (HPCL): जुलाई 2025 से स्पॉट खरीद रोकी। पहले 0.25 मिलियन bpd (5%)।
  • Mangalore Refinery (MRPL): जुलाई 2025 से खरीद बंद। पहले 10-15% आयात।

निजी कंपनियाँ

  • Reliance Industries: 23 अक्टूबर 2025 को कहा कि रूसी आयात का “पुनर्संतुलन” हो रहा है। पहले 1.7 मिलियन bpd (34%)।
  • Nayara Energy: जुलाई 2025 से प्रभावित, लेकिन ट्रेडर्स के ज़रिए खरीद जारी। पहले 15% आयात।

ट्रंप का दावा

15 अक्टूबर 2025 को व्हाइट हाउस में प्रेस से बात करते हुए ट्रंप ने कहा, “मैं भारत के तेल खरीदने से खुश नहीं था, और मोदी ने आज मुझे आश्वासन दिया है कि वे रूस से तेल नहीं खरीदेंगे। मोदी एक महान व्यक्ति हैं, वे ट्रंप से प्यार करते हैं।” यह बयान Reuters, CNN, BBC, और The Washington Post जैसे अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्थानों की सुर्खी बना लेकिन 16 अक्टूबर को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमें ऐसी कोई बातचीत की जानकारी नहीं है। भारत ऊर्जा सुरक्षा और बाजार के आधार पर आयात करता रहेगा।”

यह खंडन कमज़ोर था। भारत ने न तो ट्रंप के दावे को पूरी तरह नकारा, न ही पुष्टि की। लेकिन यह तो साफ़ हो ही गया कि सरकारी कंपनियों ने रूसी तेल ख़रीदना बंद कर दिया है। विपक्ष ने इसे “मोदी का सरेंडर” बताया। सवाल उठा कि अगर भारत स्वतंत्र नीति पर चल रहा है, तो सरकारी रिफाइनरियों ने जुलाई 2025 से रूसी तेल क्यों रोका? और निजी कंपनियाँ क्यों पीछे हट रही हैं?
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नुकसान और विकल्प

रूस से सस्ता तेल बंद होने से भारत का आयात बिल $3-5 बिलियन प्रति वर्ष बढ़ सकता है। कच्चा तेल भारत के आयात बिल का 20-25% है। अगर सऊदी अरब या इराक से तेल खरीदा तो क़ीमत $5-10 प्रति बैरल ज़्यादा होगी। इससे पेट्रोल-डीजल महँगा हो सकता है, मुद्रास्फीति बढ़ेगी और चालू खाता घाटा (CAD) 2% तक जा सकता है। फिर भी, भारत के पास विकल्प हैं:
  • OPEC देश: इराक (18%), सऊदी (15%), UAE (10%) से आयात बढ़ सकता है।
  • अमेरिका: 2025 में 0.3 मिलियन bpd, बढ़ाकर 0.5 मिलियन।
  • ब्राजील, पश्चिम अफ्रीका: नए स्रोत, लेकिन महँगे।
  • दीर्घकालिक: सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन तेल निर्भरता कम करेंगे।

ट्रंप से किनारा करते मोदी

मोदी और ट्रंप की आखिरी मुलाकात 13 फरवरी 2025 को व्हाइट हाउस में हुई थी। दोनों ने $500 बिलियन व्यापार लक्ष्य (2030 तक) पर चर्चा की। लेकिन उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार ने अडानी घोटाले पर सवाल पूछा, जिससे माहौल असहज हुआ। ट्रंप ने बात संभाली, लेकिन अब मोदी ट्रंप से दूरी बनाते दिख रहे हैं।

मोदी ने कई सम्मेलनों से किनारा कर लिया जहाँ जहाँ ट्रंप मौजूद थे या हो सकते थे:

  • ASEAN समिट (कुआलालामपुर, मलेशिया, 26-28 अक्टूबर 2025): मोदी वर्चुअल जॉइन करेंगे, ट्रंप वहाँ होंगे। कारण: दीवाली।
  • गाजा पीस समिट (शर्म अल-शेख, मिस्र, 13 अक्टूबर 2025): मोदी नहीं गए, ट्रंप सह-अध्यक्ष थे। कारण: घरेलू प्रतिबद्धताएँ।
  • UNGA सेशन (सितंबर 2025): मोदी की जगह जयशंकर ने 27 सितंबर को संबोधित किया।
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मुश्किल बढ़ाते ट्रंप

ट्रंप ने मई 2025 में अब तक 40 बार दावा किया कि उन्होंने भारत-पाक युद्ध रोका। “Operation Sindoor” को लेकर ट्रंप ने कहा, “मैंने 200% टैरिफ की धमकी दी, 7 प्लेन गिरे थे, फिर शांति हुई।” भारत ने इसे खारिज किया, कहा कि पाकिस्तान के अनुरोध पर युद्ध रुका। ट्रंप ने UNGA में भी “8 युद्ध रोके” का दावा किया, जिसमें भारत-पाक शामिल था। ये दावे मोदी की मजबूत छवि को चुनौती देते हैं। पीएम मोदी ने कभी कड़ाई के साथ इसका खंडन नहीं किया।

निश्चित ही अमेरिका से वैर मोल लेना कूटनीतिक दृष्टि से ठीक नहीं है लेकिन ट्रंप के बयानों से भारत की संप्रभुता पर चोट पहुँचती है। पीएम मोदी की चुप्पी से असहजता और बढ़ती है। लोगों को इंदिरा गाँधी की याद है जिन्होंने बांग्लादेश युद्ध के समय अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को मुँहतोड़ जवाब दिया था। बतौर प्रधानमंत्री पीएम मोदी से इस परंपरा के पालन की उम्मीद करना ग़लत नहीं है।