सवाल पूछने का अधिकार खतरे में है। मजे की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने सवाल पूछकर सवाल पूछने के अधिकार को ख़तरे में डाला है। राहुल गांधी के पास इस बात के क्या सबूत हैं कि 2 हजार वर्ग किमी जमीन चीन ने हड़प ली है? सुप्रीम कोर्ट ने नेता प्रतिपक्ष को सलाह देते हुए भी सवाल पूछने के अधिकार को चोट पहुंचाई है। नेता प्रतिपक्ष को सदन में सवाल पूछना चाहिए, न कि सदन से बाहर?
सुप्रीम कोर्ट ने ‘सच्चा भारतीय’ को लेकर भी नेता प्रतिपक्ष को अपमानित किया है। नेता प्रतिपक्ष की भारतीयता पर सवाल उठाकर लोकतंत्र में बहुत बड़ी चिंता को सुप्रीम कोर्ट ने जन्म दिया है। ऐसा लग रहा है मानो मुकदमा राहुल गांधी और चीन के बीच हो। राहुल गांधी ने गुस्ताखी कर दी है यह कहकर कि चीन ने भारत की जमीन हड़प ली है। “आपके पास क्या सबूत हैं?”-
यह प्रश्न पूछे जा सकते हैं अगर मामला विचाराधीन हो। क्या चीन ने या चीन की तरफ से किसी ने राहुल गांधी के बयान को चुनौती दी थी? सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर कि “आप सच्चे भारतीय होते तो ऐसा नहीं कहते।” सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के लिए स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वे सच्चे भारतीय नहीं हैं। क्या चीन ने भारत की जमीन नहीं हड़पी है? सबूत हो, तभी उन्हें ऐसा बोलना चाहिए। इस मामले में सबूत क्या होंगे? क्या चीन लिखकर देगा कि उसने भारत की जमीन हड़प ली है? क्या भारत लिखित रूप से मान लेगा कि चीन ने भारत की जमीन हड़प ली है?
अगर ऐसा नहीं हो सकता तो राहुल गांधी कहां से सबूत लाएंगे? मगर, यह प्रश्न सबूत देने का है ही नहीं। प्रश्न यह है कि अरुणाचल के लोग, वहां के सांसद, वहां के जनप्रतिनिधि जो कह रहे हैं गलत है? गलवान से स्थानीय लोगों ने जो कुछ जानकारियां साझा की हैं क्या वे इस बात की पुष्टि नहीं करती कि चीन भारत की जमीन हड़प रहा है?
क्या डोकलाम और गलवान में जमीन हड़पने की चीनी कोशिश नहीं हुई और क्या भारतीय सेना ने उन कोशिशों को विफल नहीं किया? अगर इन सवालों के उत्तर ‘हां’ हैं तो राहुल गांधी के सवाल कैसे गलत हो सकते हैं? सवाल यह भी है कि क्या चीन ने भारत की जमीन हड़पी ही नहीं है? अगर हां, तो इस बारे में बोलने के लिए सबूत लेकर आना होगा? स्थानीय लोगों की आवाज़ नेता प्रतिपक्ष ना उठाएं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेता सदन हैं। उनका बहुचर्चित बयान सबको याद है और रहेगा- “न कोई घर में घुसा, न कोई घुसा हुआ है।“ यह बयान भी सदन में दिया गया बयान नहीं था बल्कि सर्वदलीय बैठक में दिया गया बयान था। सुप्रीम कोर्ट ने नेता सदन से कभी सबूत पास रखकर बात करने की बात तो नहीं कही! न ही यह पूछा कि सदन में उन्होंने यही बातें क्यों नहीं कीं?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के दायरे में यह बात आती ही नहीं कि सदन का सदस्य सदन के भीतर क्या बोले। सुप्रीम कोर्ट इस बाबत कुछ पूछ भी नहीं सकता। मगर, यह बात नेता सदन के लिए सुप्रीम कोर्ट को याद रहा मगर नेता प्रतिपक्ष के लिए वह भूल क्यों गया?‘ सच्चे-झूठे भारतीय’ अब सुप्रीम कोर्ट से तय होंगे? सुप्रीम कोर्ट ने एक नई नजीर पेश की है। ‘सच्चा भारतीय’ होने या नहीं होने का वह प्रमाणपत्र बांटने लगा है। भारतीयता का प्रश्न क्या इस बात से जुड़ सकता है कि किसी सवाल पर एक व्यक्ति की सोच क्या है?
सरकार से सवाल करना देश के हर नागरिक का अधिकार है और नेता प्रतिपक्ष का तो कर्त्तव्य भी है। यह सच है कि जब सदन चल रहा हो तो सरकार के मंत्री और प्रधानमंत्री और यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष और विपक्ष के नेताओं को भी सदन में बोलने की परंपरा रही है। मगर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 11 साल में दर्जनों बार सदन चलने के दौरान विदेश में रहे। देश में रहकर भी उन्होंने सदन में बोलने के बजे महत्वपूर्ण विषयों पर सदन से बाहर बोला। क्या पुलवामा के शहीदों के नाम पर देश में पहली बार मतदान करने वालों से वोट मांगने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन से बाहर नहीं किया था? ऐसे उदाहरणों की भरमार है।
सुप्रीम कोर्ट ने चीन पर राहुल गांधी के जिस बयान के लिए आड़े हाथों लिया है वह बयान उन्होंने संसद के भीतर भी दिया है और बाहर भी। क्या सुप्रीम कोर्ट इस बात से अनजान है? अनजान है तो टिप्पणी बहुत लापरवाह है और अगर सुप्रीम कोर्ट भिज्ञ है तो सवाल पैदा होता है कि क्या नेता प्रतिपक्ष को केवल संसद में ही बोलने का अधिकार है? क्या नेता प्रतिपक्ष जो बात संसद में रख चुके हैं उसे सड़क पर नहीं बोल सकते? ऐसी सीमा तय करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास कैसे आया?
राहुल गांधी के लिए मुश्किल घड़ी
बिना जांच कराए राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया क्लीन चिट हो या फिर मेयर के चुनाव में वोट चोरी पकड़ लेने के बावजूद मुजरिम को कोई सज़ा नहीं देने की बात हो, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कदाचार समझ लेने और उसे रद्द कर देने के बावजूद किसी जांच का आदेश नहीं देना, सुप्रीम कोर्ट के जज के घर से रकम निकलने को लेकर उठ रहे सवाल, महाराष्ट्र की सरकार को अवैध बताकर भी उस सरकार को चलते रहने देना, उल्टे उद्धव ठाकरे से पूछना कि उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया...ऐसे बहुतेरे उदाहरण हैं जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट से सच्चे-झूठे न्याय की बात पूछते हैं।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए मुश्किल की घड़ी है। सुप्रीम कोर्ट उनसे ही अपेक्षा कर रही है कि वह सबूत लेकर बात करें। फिर जांच एजेंसियां क्या करेंगी? सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से सवाल क्यों नहीं पूछता कि चीन ने क्या भारतीय भूभाग को हथिया रखा है? जो लोग सरेआम कहते हैं कि पंडित नेहरू ने पाकिस्तान को पीओके दे दिया, उनके लिए क्या कभी सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि इसके क्या सबूत उन लोगों के पास हैं? दरअसल नेता प्रतिपक्ष क्या बोलें या न बोलें इसकी चिंता करना सुप्रीम कोर्ट का काम भी नहीं है। राहुल गांधी के बोलने से आपत्ति किसे है? चीन या भारत सरकार को आपत्ति हो, ऐसी बात सामने नहीं आयी है। फिर सुप्रीम कोर्ट किसके पक्ष में राहुल गांधी की जुबान पर अंकुश लगा रहा है?