वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार मिला, जिसे उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को समर्पित कर दिया। और अब ख़बर आयी है कि ट्रंप ने CIA को वेनेजुएला के खिलाफ गुप्त सैन्य कार्रवाई की मंजूरी दे दी है। वैसे, यह अभियान सितंबर से ही जारी है जिसमें अब तक 27 लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में इस आरोप में दम लगता है कि नोबल शांति पुरस्कार भी एक रणनीति का हिस्सा है। विपक्ष के नेता के सम्मान और ट्रंप के वेनेज़ुएला में सैन्य हस्तक्षेप की तैयारी में सीधा सम्बंध है। वेनेज़ुएला में दुनिया का सबसे बड़ा तेल भंडार है जिसे मचाडो अमेरिकी कंपनियों के हवाले करने का वादा कर रही हैं।
CIA को हरी झंडी
15 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस से एक बड़ा फरमान जारी किया। दुनिया भर में सत्ता पलट के लिए बदनाम अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA यानी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी को वेनेजुएला में खुफिया कार्रवाई की इजाजत दे दी गई। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, ये ऑपरेशन ट्रंप के स्टेट सेक्रेटरी मार्को रुबियो और सीआईए चीफ जॉन रैटक्लिफ ने तैयार किया। ट्रंप ने दो मुख्य वजहें बतायीं:
  • वेनेजुएला ने अपनी जेलों के कैदियों को अमेरिका में छोड़ दिया है।
  • वेनेजुएला से समुद्र के रास्ते भारी मात्रा में ड्रग्स आते हैं, और अब हम इन्हें जमीन के रास्ते भी रोकेंगे।

गुप्त सैन्य कार्रवाई पहले से ही जारी! 

इस मंजूरी से CIA वेनेजुएला में एकतरफा या व्यापक अमेरिकी सैन्य गतिविधि के हिस्से के तौर पर अभियान चला सकेगी। लेकिन हकीकत ये है कि वेनेजुएला के खिलाफ कोवर्ट (गुप्त) कार्रवाइयां सितंबर से ही जारी हैं। कैरेबियन सागर में अमेरिकी सुरक्षा बलों ने ड्रग तस्करी के शक में कई नावों पर कम से कम पाँच हमले किए, जिसमें 27 लोगों की मौत हुई। ट्रंप ने इन्हें "नार्को-टेररिस्ट" कहा, जो अमेरिका में ड्रग्स सप्लाई करना चाहते थे। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इन्हें "गैर-कानूनी हत्याएँ" करार दिया।

वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने इसे संप्रभुता पर हमला बताया। कई दक्षिण अमेरिकी देशों ने भी इसे लेकर अमेरिका की निंदा की। मादुरो ने शांति की अपील करते हुए सेना और 45 लाख की जन मिलिशिया को अलर्ट कर दिया है। लेकिन इस ऑपरेशन से वेनेजुएला की मुख्य विपक्षी नेता मचाडो बेहद खुश हैं कि ट्रंप ने उनकी अपील सुन ली।

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नोबेल की रणनीति!

वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। ट्रंप खुद इस सम्मान पर अपना हक जताते थे—कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि उन्हें नोबेल मिलना चाहिए। लेकिन ये दिया गया मचाडो को, जिन्होंने इसे ट्रंप को ही समर्पित कर दिया। मचाडो, राष्ट्रपति निकोलस मादुरो पर तानाशाही का आरोप लगाती हैं और कहती हैं कि चुनाव में धांधली से मादुरो सत्ता में हैं। 58 साल की मचाडो विपक्षी पार्टी Vente Venezuela की लीडर हैं। 2010 में नेशनल असेंबली के लिए चुनी गईं। 2017 में उन्होंने Soy Venezuela विपक्षी गठबंधन बनाया। 2024 चुनाव में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनना चाहती थीं, लेकिन कोर्ट ने रोक दिया। उन्होंने ट्रंप से मदद की गुहार लगाते हुए साफ वादे किये हैं। उन्होंने कहा-
  • निकोलस मादुरो को सत्ता से हटाने के लिए ट्रंप से सहायता चाहिए।
  • उनकी सरकार आने पर तेल उत्पादन दोगुना कर इसका व्यापार निजीकरण होगा।
  • निजी तेल कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट देकर 140 लाख करोड़ रुपये का विदेशी निवेश लाया जाएगा।

ये आश्चर्यजनक है कि एक नेता उसी अमेरिका को हस्तक्षेप के लिए आमंत्रित कर रही है, जिसने लैटिन अमेरिका में बार-बार तख्तापलट कराए और संसाधनों की लूट की। उनकी बातों से साफ है- ड्रग माफिया बहाना है, असल खेल तेल का है।

वेनेज़ुएला का तेल भंडार

वेनेजुएला—दक्षिण अमेरिका का उत्तरी कोना, कैरेबियन सागर से सटा देश है जिसका क्षेत्रफल 9.16 लाख वर्ग किमी और आबादी 2.8 करोड़ है। 1811 में इसे स्पेन से आजादी मिली। 1958 से लोकतंत्र है लेकिन 1990 के दशक से संकट गहरा गया। अमेरिकी कंपनियों के विरोध और बदले में लगे अमेरिकी प्रतंबिधों ने महंगाई और ग़रीबी बढ़ायी है। वेनेज़ुएला में दुनिया का सबसे बड़ा तेल भंडार (300 बिलियन बैरल) है, जिस पर अमेरिका की नजर टिकी है।

मौजूदा राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की नज़र में मचाडो अमेरिकी एजेंट हैं। नोबेल मिलने के बाद वेनेजुएला ने नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में दूतावास बंद कर दिया (नॉर्वे की नोबेल समिति पुरस्कार देती है)। 1962 में काराकास में जन्मे मादुरो बस ड्राइवर से ट्रेड यूनियन लीडर बने। 2006 में फॉरेन मिनिस्टर, 2012 में उपराष्ट्रपति और 2013 में प्रेसिडेंट। वे पूर्व राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज के उत्तराधिकारी हैं, जिनकी क्रांतिकारी दास्तान लैटिन अमेरिका में किंवदंती है—हालांकि अमेरिका उन्हें तानाशाह मानता था।

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शावेज ने बदली वेनेजुएला की राजनीति 

शावेज ने वेनेजुएला की राजनीति बदल दी थी। वे पहले सेना में अफसर थे और क्यूबा की क्रांति और फिदेल कास्त्रो से प्रभावित थे। 1992 में उन्होंने तख्तापलट का असफल प्रयास किया था। गिरफ्तारी के बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ी। 1998 में राष्ट्रपति का चुनाव उन्होंने शानदार तरीक़े से जीता था। 1999 में उन्होंने नई संविधान सभा बुलायी। नये संविधान को 15 दिसंबर को जनता ने मंज़ूरी दी जिसमें गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य, जमीन का अधिकार मिला। 2005 में शावेज़ ने ‘21वीं सदी का सोशलिज्म’ की सैद्धांतिक घोषणा की। यह लोकतांत्रिक, पार्टिसिपेटरी (लोगों की भागीदारी), इकोलॉजिकल (पर्यावरण-अनुकूल), फेमिनिस्ट (महिलाओं के अधिकार) समाजवाद था। वेनेज़ुएला के तेल निर्यात से हुई कमाई से मिशन प्रोग्राम्स चले। लाखों को घर, स्कूल, डॉक्टर मिले। PDVSA (तेल कंपनी) का राष्ट्रीयकरण किया।

लेकिन इससे अमेरिकी कारपोरेट कंपनियाँ नाराज हो गयीं। शावेज का अमेरिका-विरोध चुभ रहा था। उन्हें सत्ता से हटाने की तैयारी होने लगी। 2001 से CIA ने  तख्तापलट की कोशिशें शुरू कर दीं और 11 अप्रैल 2002 को तख्तापलट हो गया। विपक्षी प्रदर्शन से शुरुआत हुई जिसमें 19 लोगों की मौत हुई। अमेरिका-समर्थित पेड्रो कारमोना ने खुद को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित किया और शावेज़ गिरफ्तार हो गये। लेकिन 47 घंटे में जनता के विरोध और शावेज़ के वफ़ादार सैनिकों के विद्रोह के चलते शावेज़ फिर सत्ता में लौट आये। तख्तापलट में CIA फंडिंग के साफ़ सबूत मिले। 20 सितंबर 2006 को शावेज़ ने UN में ऐतिहासिक भाषण दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा- "कल यहां शैतान आया था, सल्फर की गंध आ रही है!" 2007 में उन्होंने PSUV (यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी ऑफ वेनेजुएला) बनायी। 2011 में कैंसर के शिकार बने लेकिन अगले साल फिर राष्ट्रपति चुने गये पर 5 मार्च 2013 को उनकी मौत हो गयी जिसके बाद उपराष्ट्रपति मादुरो ने सत्ता संभाली।
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अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोध

शावेज की कहानी बताती है कि वेनेजुएला का मौजूदा संकट ऐतिहासिक सिलसिले की कड़ी है। मचाडो वही करना चाहती हैं जिसके खिलाफ शावेज लड़े। तेल पर जनता का हक अमेरिका को तानाशाही लगता है— यानी लूट की छूट न हो तो तानाशाही! वरना मध्य पूर्व-अफ्रीका के तानाशाहों से अमेरिका गलबहियां करता है। वेनेज़ुएला के ख़िलाफ़ अमेरिकी कार्रवाई के फ़ैसले का दक्षिण अमेरिका के कई देशों ने विरोध किया है। उन्हें याद है कि कैसे सीआईए तख्तापलट कराती रही है। 1973 में चिली में हुआ ख़ूनी तख्तापलट की याद सबको है। उनका मानना है कि वेनेज़ुएला के ख़िलाफ़ कार्रवाई अमेरिकी साम्राज्यवाद की नज़ीर है।

इससे यह भी लगता है कि नोबेल पुरस्कार भी राजनीति से ऊपर नहीं है। यह नहीं भूलना चाहिए कि महात्मा गांधी को कभी नोबल नहीं मिला था क्योंकि वह ब्रिटिश साम्राज्य से टकराव माना जाता। वहीं मचाडो को सम्मान देना अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने समर्पण ही है। कम से कम दक्षिण अमेरिकी जनता यही मानती है। मीडिया दुष्प्रचार के बावजूद यह धारणा तोड़ना अमेरिका के लिए मुश्किल हो रहा है।