क्या स्वदेशी का अर्थ सरकारी कंपनी का काम छीनकर निजी कंपनी को देना और उस पर सरकारी ख़ज़ाना लुटाना है। मोदी सरकार की ज़ोहो कारपोरेशन पर मेहरबानी तो कुछ ऐसा ही साबित कर रहा है। ख़ास बात ये है कि इस सॉफ्टवेयर कंपनी के संस्थापक श्रीधर वेम्बू आरएसएस से काफ़ी क़रीब हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सरकारी कर्मचारियों का ईमेल इस कंपनी में शिफ़्ट करने का फ़ैसला कितना जायज़ है। क्या यह सरकार के तमाम दस्तावेज़ों और डेटा को एक निजी कंपनी को सौंपना नहीं है। साथ ही, क्या इस कंपनी के ज़रिए आरएसएस सरकारी डेटा में सेंध लगा सकता है?

ज़ोहो पर सरकारी ईमेल

पिछले एक साल में केंद्र सरकार के 12 लाख कर्मचारियों के ईमेल सरकारी NIC.in से हटाकर प्राइवेट कंपनी ज़ोहो पर शिफ्ट हो गये। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) भी शामिल है। यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह का पर्सनल ईमेल भी ज़ोहो पर पहुंच चुका है। डोमेन तो nic.in या gov.in ही है, लेकिन स्टोरेज, एक्सेस और प्रोसेसिंग सब ज़ोहो के जिम्मे। हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने 3 अक्टूबर 2025 को आदेश जारी किया – Zoho Suite का इस्तेमाल करो।
केंद्र सरकार में कुल 34.6 लाख कर्मचारी हैं, जबकि केंद्र-राज्य मिलाकर 2.15 करोड़। ज़ोहो को प्रति कर्मचारी लगभग 300 रुपये सालाना फीस मिल रही है, यानी सिर्फ केंद्रीय कर्मचारियों के ईमेल के लिए सरकार जोहो को फ़ीस बतौर हर साल 1 अरब 3 करोड़ 80 लाख रुपये देगी। ये शिफ्ट 2023 में डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन (DIC) के साथ 7 साल के अनुबंध के कारण हुआ। NIC के डोमेन से PMO समेत सभी सरकारी ईमेल ज़ोहो पर चले गए। सरकारी फाइल्स और दस्तावेजों तक अब ज़ोहो की पहुंच है। सरकार स्वदेशी की बात करती है लेकिन एनआईसी जैसी स्वदेशी और सरकारी कंपनी की जगह एक प्राइवेट कंपनी पर मेहरबानी करना तमाम सवाल खड़े कर रहा है।

NIC: इंदिरा गांधी की दूरदर्शिता

1976 को आमतौर पर इमरजेंसी के लिए याद किया जाता है, लेकिन उसी साल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक दूरदर्शी फैसला लिया। नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) की स्थापना हुई, जो डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस का आधार बनी। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन NIC भारत सरकार का प्रमुख IT संगठन है। ये ई-गवर्नेंस, ICT इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल सेवाएं विकसित करता है – केंद्र से ब्लॉक स्तर तक। 

सभी सरकारी ईमेल NIC के जरिए चलते थे। NIC ने डिजिटल क्रांति को संभव बनाया, लेकिन अब सरकार इसे 'टाटा-बाय-बाय' कर रही है।

ज़ोहो क्या है?

ज़ोहो कॉर्पोरेशन 1996 में श्रीधर वेम्बू ने तमिलनाडु के तेंकासी में शुरू की। ये क्लाउड-बेस्ड सॉफ्टवेयर कंपनी है, जो Zoho Mail, CRM, Projects जैसे टूल्स बनाती है। SMBs पर फोकस, सस्ते और यूजर-फ्रेंडली सॉफ्टवेयर के लिए मशहूर। हाल ही में इसने अरात्ती मैसेंजर लॉन्च किया – व्हाट्सऐप जैसा। हालाँकि इसमें अभी प्राइवेसी का सवाल उलझा हुआ है। किसी भारतीय कंपनी का तरक्की करना गर्व की बात, लेकिन दो साल पहले मोदी सरकार की 'मेहरबानी' ने इसकी आरसएसएस के संबंधों की पृष्ठभूमि को सार्वजनिक कर दिया है।

वेम्बू और आरएसएस का कनेक्शन

2023 में DIC का जोहो से अनुबंध करना चौंकाने वाला फ़ैसला था। जल्दी ही इसकी असली वजह यानी वेम्बू का आरएसएस से रिश्ता सामने आ गया। 22 नवंबर 2024 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के 70वें राष्ट्रीय अधिवेशन में वेम्बू मुख्य अतिथि थे जो गोरखपुर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में आयोजित था। वेम्बू इस अवसर पर स्वावलंबन, ग्रामीण विकास पर बोले। वे इससे पहले चेन्नई ABVP संगमम में भी शामिल हुए थे। फरवरी 2019 में वेम्बू चेन्नई के RSS आयोजन 'Resurgent Bharath' (RSS IT शाखा) में मुख्य अतिथि थे। वेम्बू RSS से वैचारिक जुड़ाव रखते हैं, स्वदेशी जगरण मंच (RSS की आर्थिक शाखा) के सदस्य (मनीकंट्रोल इंटरव्यू में स्वीकार किया है) भी हैं। वे अपने प्लेटफॉर्म्स से RSS नैरेटिव को बढ़ावा देते और विरोधी आवाज दबाते हैं।

सरवण राजा कांड

ज़ोहो के पूर्व मार्केटिंग मैनेजर सरवण राजा ने अक्टूबर 2018 में वेम्बू से असहमति पर कंपनी छोड़ी। इंट्रानेट ब्लॉग में RSS की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका उजागर करते हुए उन्होंने लिखा था: “RSS हर मंच पर जिंगोइज्म से कब्जा कर रहा, जबकि इतिहास उनकी देशभक्ति पर अलग कहता है।” इस पर वेम्बू भड़क गए। उन्होंने जवाब दिया: “फ्री स्पीच के नाम पर कुछ भी मत कहो... अपना मंच बनाओ। मैं निकालूंगा नहीं, लेकिन असहमत हूं। जब तुम्हारा वैल्यू सिस्टम कंपनी और CEO से उल्टा है, तो यहां क्यों काम करते हो?”
इस घटना के बाद सरवण ने ज़ोहो छोड़ दिया। आरएसएस से संबंध को लेकर सोशल मीडिया पर #BoycottZoho ट्रेंड भी चला लेकिन वेम्बू को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। मोदी सरकार ने 2021 में वेम्बू को पद्मश्री से सम्मानित किया। आलोचकों का कहना है कि ज़ोहो RSS एजेंडे का उपक्रम है –सरकार देश से जुड़े संवेदनशील डेटा को प्राइवेट कंपनी ही नहीं, RSS के हाथों सौंप रही है। एक unregistered NGO हमारी निजता में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है।

निजता की वैश्विक लड़ाई

दुनिया भर की प्रतिष्ठित टेक कंपनियाँ निजता के लिए सरकारों से लंबी लड़ाई लड़ी हैं:
  • क्लिपर चिप (1990s): सरकार ने डिवाइसों में बैकडोर चिप लगाने का प्रस्ताव दिया। कंपनियों ने मजबूत एन्क्रिप्शन विकसित कर इसे विफल कर दिया।
  • बर्नस्टीन केस (1995): गणितज्ञ डैन बर्नस्टीन ने साबित किया कि एन्क्रिप्शन कोड संरक्षित भाषा है। अदालत ने फैसला दिया कि कोड निर्यात नियंत्रण के दायरे में नहीं।
  • Google vs चीन (2009): सेंसरशिप और डेटा मांगों से तंग आकर Google ने चीन से सेवाएँ हटा लीं।
  • Apple vs FBI (2016): सैन बर्नार्डिनो हमले के iPhone को अनलॉक करने से Apple ने इनकार किया। CEO टिम कुक ने सार्वजनिक विरोध किया; FBI थर्ड-पार्टी से एक्सेस कर पाया, लेकिन Apple ने सॉफ्टवेयर अपडेट से कमजोरी ठीक की।
  • स्नोडेन लीक (2013): NSA जासूसी के बाद Google ने एन्क्रिप्शन मजबूत किया।
  • WhatsApp vs Pegasus: Meta ने स्पाइवेयर पेगासस के खिलाफ मुकदमा किया और कमजोरियों को पैच किया।
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इन तमाम कंपनियों ने अपने देश की सरकार से निजता के अधिकार को लेकर संघर्ष किया। लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएँगे कि श्रीधर वेम्बू सरकार के एक तरह से हिस्से ही हैं। 2021 में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB, अजीत डोभाल के नेतृत्व) में नियुक्त किया गया। 2024 में UGC सदस्य हैं।

इन नियुक्तियों को देखते हुए क्या कोई सोच सकता है कि श्रीधर वेम्बू कभी अपने ग्राहक की निजता की परवाह करेंगे अगर सरकार उसे भंग करना चाहे?  वेम्बू तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार बोर्ड में हैं और मोदी सरकार को विपक्ष में उठी हर आवाज़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा लगती है। यानी विपक्षी नेता या कार्यकर्ता अगर ज़ोहो का कोई टूल इस्तेमाल करते हैं तो वे हमेशा सरकार के निशाने पर रहेंगे। सरकार अगर ज़ोहो पर अरबों रुपये लुटा रही है तो उसका हर दरवाज़ा सरकार के लिए खुला ही रहेगा, इसमें शक़ नहीं। कुछ साल पहले Koo को Twitter (अब X) का विकल्प बनाने की कोशिश की गयी थी लेकिन उसे दक्षिणपंथियों का इतना ज़बरदस्त समर्थन मिला कि बाक़ी लोग वहाँ गये ही नहीं। कू अब कहाँ है, कोई नहीं जानता। साख का यही संकट ज़ोहो पर भी मंडरा रहा है जिसे पद्मश्री वेम्बू को समझना चाहिए।