अली ख़ान महमूदाबाद के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले ने भारतीय नागरिकों के अभिव्यक्ति के अधिकार को ख़तरनाक तरीक़े से सीमित कर दिया है। यह फ़ैसला कुछ वैसा ही है जैसे कैद से निकालकर एक लंबी रस्सी से आपके पैर बांध दिए जाएँ और आपके मुँह पर पट्टी बाँध दी जाए।यह फ़ैसला आज़ादी देने के नाम पर आज़ादी छीन लेने का नया तरीक़ा है।लेकिन यह सिर्फ़ अली ख़ान की आज़ादी का ही मामला नहीं।यह फ़ैसला हर लिखनेवाले को चेतावनी है कि वे अपनी शैली में नहीं लिख सकते और उन्हें लिखते वक्त बहुसंख्यक आबादी की भावना का ख्याल रखना पड़ेगा।