बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की ओर से कौन सा दल कितनी सीट पर लड़ेगा, इसके लिए चल रहे मंथन के बीच बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार और उनकी अध्यक्षता में जेडीयू के दर्जे को लेकर जिच जारी है जिसमें चिराग पासवान और जीतन राम मांझी का दबाव भी अपनी भूमिका निभा रहा है। 
2020 के विधानसभा चुनाव और आगामी विधानसभा चुनाव की तुलना की जाए तो एनडीए में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दर्जे को लेकर एक साफ पसोपेश नजर आ रहा है। 2020 में जहां एनडीए ने खुलकर नीतीश कुमार को अपना चेहरा घोषित किया था। अब 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार के चेहरे पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से कभी हां, कभी ना और कभी चुप कर रवैया देखने को मिल रहा है।
शायद यही वजह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और जदयू को स्पष्ट रूप से बड़े भाई का दर्जा देकर एनडीए में 115 सीटें दी गई थीं और भारतीय जनता पार्टी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार बताया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू में इस बात को लेकर रस्साकशी है कि एक दो सीट के फर्क से ही कौन पार्टी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती है। एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर एक बड़ी समस्या चिराग पासवान की पार्टी की वजह से भी आई है क्योंकि पिछले चुनाव में चिराग पासवान की अपने पिता रामविलास पासवान की तत्कालीन पार्टी को एनडीए में रहते हुए अलग से चुनाव लड़ाया था और 134 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे।
ताज़ा ख़बरें
राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है उसके मुताबिक जदयू को 100 से 102 सीटों देने की बात चल रही है जो स्पष्ट रूप से 2020 की 115 सीटों से काफी कम है। उधर भारतीय जनता पार्टी के बारे में बताया जा रहा है कि वह 100 से 101 सीटों पर लड़ना चाहती है। इस तरह इस बार के चुनाव में नीतीश कुमारन की पार्टी जेडीयू अगर बड़े भाई के रोल में रहता भी है तो यह महज एक-दो सीटों के फर्क से होगा। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी जेडीयू पर कम सीटें लड़ने का दबाव बना रही है ताकि चिराग पासवान की पार्टी को ठीक-ठाक सीटें मिल सकें।
ध्यान देने की बात यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में नीतीश कुमार की पार्टी ने 115 सीटों पर उम्मीदवार तो दिए थे लेकिन उनमें से केवल 43 को जीत मिल सकी जबकि 2015 के चुनाव में जेडीयू ने 71 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह बताया गया था कि चिराग पासवान ने जदयू के लगभग हर उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार दिया था जिसमें चिराग पासवान के उम्मीदवार तो नहीं जीते लेकिन यह नीतीश कुमार के उम्मीदवारों की हार का एक महत्वपूर्ण कारण बना।
दूसरी तरफ 2020 में 110 सीटों पर चुनाव लड़कर भारतीय जनता पार्टी ने 74 सीटों पर जीत हासिल की थी जो उसकी 2015 की 53 सीटों से काफी अधिक मानी गयी। ध्यान रहे कि 2015 में भारतीय जनता पार्टी एनडीए में अकेले पड़ गई थी और नीतीश कुमार ने महागठबंधन में राजद के साथ चुनाव लड़ा था। एनडीए में जहां चिराग पासवान की पार्टी को सीट देने की जरूरत से तनाव बढ़ा है वहीं मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) इस बार एनडीए में नहीं है, जिसने 2020 में एनडीए में रहते हुए 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए थे जिसमें चार को जीत मिली थी।
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को जहां 125 सीटें मिली थीं वहीं महागठबंधन ने 112 सीटें लाई थीं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दोनों के वोट प्रतिशत में अंतर दशमलव में था। एनडीए को लगभग 37.26% वोट मिले थे जबकि महागठबंधन को 37.23%। यानी राज्य में वोट प्रतिशत के लिहाज से बहुत अंतर नहीं था लेकिन सीटों में 13 का अंतर आ गया। उस समय एआईएमआईएम के पांच उम्मीदवार चुनाव जीते थे और एक उम्मीदवार रामविलास पासवान की तत्कालीन लोक  जनशक्ति पार्टी के टिकट पर जीता था।
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिए एक और बड़ा फर्क यह था कि तब उपेंद्र कुशवाहा अपनी तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन में थे। इस बार उपेंद्र कुशवाहा अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के साथ एनडीए में हैं और इस समय राज्यसभा के सदस्य भी हैं।
इस तरह एनडीए में सीट शेयरिंग के मामले पर जहां भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू में तनाव है, वहीं चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की सीटों पर भी कोई स्पष्ट फैसला सामने नहीं आया है।  इस मामले में चिराग पासवान लगातार दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं जो इस समय केंद्र में मंत्री हैं और एनडीए का हिस्सा हैं लेकिन वह विशेष कर अपराध के मामले में नीतीश कुमार सरकार की आलोचना भी करते रहे हैं।
चिराग पासवान वैसे तो वह 243 सीटों पर तैयारी की बात कर रहे हैं लेकिन बताया जा रहा है कि उनकी इच्छा है कि उन्हें कम से कम 40 सीटें दी जाएं। जाहिर है इतनी सीटें देने के बाद एनडीए में जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के लिए बहुत कम गुंजाइश बनेगी। क्योंकि अगर यह मान लिया जाए कि भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू को मोटे तौर पर 100-100 सीटें मिलती हैं तो इसके बाद केवल 43 सीटें बच जाती हैं। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि चिराग पासवान की पार्टी को 20-25 से ज्यादा सीटें नहीं मिल सकती हैं।
उधर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी का दुख यह है कि उनकी पार्टी को राज्य स्तर की मान्यता नहीं मिल पा रही है क्योंकि कम सीटों पर लड़ने की वजह से उनका वोट प्रतिशत बहुत कम है। एक तरफ जहां चिराग पासवान का स्पष्ट झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर है तो दूसरी ओर जीतन राज मांझी नीतीश कुमार के खेमे में हैं। 
जीतन राम मांझी का कहना है कि उन्हें कम से कम 20 सीटें मिलनी चाहिए। भारतीय जनता पार्टी और जदयू को मिलने वाली संभावित सीटों के बाद दूसरे दलों के लिए केवल 40 सीटें बचती हैं। ऐसे में अगर चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को खुश करने लायक सीटें दे भी दी जाएं तो उपेंद्र कुशवाहा का मामला फंस जाता है। बताया जाता है कि उपेंद्र कुशवाहा भी कम से कम 10 सीटें चाहते हैं। 
बिहार से और खबरें
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार में एनडीए की सीट शेयरिंग को लेकर लगातार विचार विमर्श कर रहे हैं लेकिन अगर यह खींचतान लंबी चलती है तो इससे एनडीए को नुकसान हो सकता है। सीटों की संख्या के अलावा एनडीए में इस बात पर भी काफी तनातनी है कि कौन सी सीट किसे मिले।