बिहार में विधान सभा चुनाव से ठीक पहले सघन मतदाता सर्वे के चुनाव आयोग के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फ़ैसले से विपक्ष को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन मतदाता सूची से बड़ी संख्य में लोगों के बाहर होने का ख़तरा अभी ख़त्म नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक और बात सामने आई। क्या गहन मतदाता सर्वेक्षण के बहाने असम की तरह एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने की कोशिश कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि एनआरसी बनाने का काम गृह मंत्रालय का है, चुनाव आयोग इसमें दखल नहीं दे।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी मतदाता प्रमाण के रूप में स्वीकार करने पर विचार करने के लिए कहा है। यह भी आदेश दिया है कि अगर चुनाव आयोग इन्हें वैध नहीं मानता है तो उसका कारण बताए। कोर्ट ने अगली सुनवाई, 28 जुलाई से पहले मतदाता सूची प्रकाशित करने पर भी रोक लगा दी है। विपक्ष इसे अपनी जीत मान सकता है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या बिहार के करीब 8 करोड़ मतदाता आयोग द्वारा तय सीमा यानी 25 जुलाई तक नया फार्म और निवासी होने का सबूत दे पायेंगे? बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधान सभा चुनाव होना है। आयोग के तय कार्यक्रम के मुताबिक़ 25 जुलाई तक फ़ार्म जमा होंगे और अगस्त में उसकी छानबीन के बाद मतदाता सूची जारी की जाएगी। बिहार की विपक्षी पार्टियाँ इसका विरोध कर रही हैं। कांग्रेस, आरजेडी और वामपंथी पार्टियों ने 9 जुलाई को इसके विरोध में पूरे राज्य में प्रदर्शन आयोजित किया था।
एसआईआर में क्या है समस्या?
चुनाव आयोग ने इस साल जनवरी में बिहार की संशोधित मतदाता सूची जारी कर दी थी। इसमें थोड़े बहुत नए मतदाताओं का नाम जोड़ने और मृत या राज्य छोड़कर जाने वाले मतदाताओं को हटाने के बाद अंतिम सूची जारी की जानी थी। जून के अंत में आयोग ने मतदाता सूची के गहन सर्वेक्षण का फैसला किया। जाहिर है कि आयोग जनवरी की अपनी ही सूची से संतुष्ट नहीं था। सूची में विदेशियों का नाम होने की आशंका जाहिर की जा रही थी। बीजेपी लंबे समय से आरोप लगा रही है कि बिहार में बड़ी संख्य में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुस आए हैं और उनका नाम मतदाता सूची में भी शामिल हो गया है। राज्य की सीमा से लगे जिलों में घुसपैठियों की बड़ी आबादी बतायी जा रही है। इन जिलों में मुसलमानों की आबादी काफ़ी अधिक है जिसके चलते बीजेपी की इन जिलों में जीत की संभावना कम ही रहती है।
विपक्ष का यह भी आरोप था कि जिन जातियों और क्षेत्रों में बीजेपी की जीत नहीं होती है उन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट में बदलाव की तैयारी थी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का आरोप है कि बीजेपी महाराष्ट्र की तरह अंतिम समय पर मतदाता सूची में बदलाव करके विपक्ष को हराने की तैयारी कर रही थी। चुनाव आयोग ने मतदाता होने के सबूत के तौर पर जिन 11 दस्तावेजों की मांग की थी, उसमें से ज्यादातर लोगों के पास है ही नहीं। उदाहरण के तौर पर पासपोर्ट बिहार के क़रीब दो फीसदी लोगों के पास है। जो दस्तावेज सबसे ज़्यादा लोगों के पास हो सकता है वो हाई स्कूल का सर्टिफिकेट है। वो भी 50 प्रतिशत से कम ही लोगों के पास होने की संभावना है। जो दस्तावेज सबसे ज़्यादा लोगों के पास हैं वो आधार, वोटर और राशन कार्ड हैं जिसे चुनाव आयोग वैध दस्तावेज नहीं मान रहा था। आयोग इन्हें वैध मान लेता है तो समस्या काफ़ी कम हो जाएगी।
प्रवासी फँसेंगे
अनुमान है कि बिहार के क़रीब दो करोड़ वयस्क लोग राज्य के बाहर नौकरी या रोज़गार करते हैं। इनमें से काफ़ी लोग अपने मताधिकार का प्रयोग बिहार में ही करते हैं। इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्य में लोग बिहार आकर मतदाता सूची में नाम डलवा पाएंगे, इसमें संदेह है। दूर-दराज के गांवों में रहने वाले ग़रीब लोगों का नाम भी जल्दीबाजी में छूटने का डर है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि ‘समस्या गहन सर्वेक्षण को लेकर नहीं है बल्कि समय को लेकर है।’ विपक्ष की मांग है कि विधान सभा चुनाव से पहले गहन सर्वेक्षण का काम पूरी तरह रोक दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम फ़ैसले में सर्वे पर रोक नहीं लगायी है, लेकिन अंतिम सूची प्रकाशित करने पर रोक लगा दी है। यह विपक्ष के लिए राहत की बात है। अंतिम सूची छपने के बाद अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं करती हैं। अंतिम सूची में ज़्यादा लोगों के नाम कटने या बढ़ने पर विपक्ष उसे अगली सुनवाई में कोर्ट के सामने पेश कर सकता है।
एनआरसी की तैयारी का आरोप
विपक्ष का यह भी आरोप है कि चुनाव आयोग के गहन मतदाता सर्वेक्षण के नाम पर सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी तैयार करने की कोशिश कर रही है जिसका विपक्ष विरोध कर रहा है। असम में एनआरसी के लिए इसी तरह के दस्तावेज मांगे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, ”आप (चुनाव आयोग) वोटर लिस्ट में किसी का नाम सिर्फ़ देश की नागरिकता साबित होने के बाद करेंगे तो फिर ये बड़ी कसौटी होगी। यह गृह मंत्रालय का काम है आप उसमें मत जाइए।” विपक्ष मानता है कि बिहार से एक प्रयोग शुरू करने की कोशिश हो रही है। यहां सफलता मिल गयी तो नागरिकता संशोधन क़ानून सीएए भी देश भर में लागू करने की कोशिश होगी।