यदि यह पुष्ट हो जाए कि देश में कोरोना की यह भयावह दूसरी लहर 'डबल म्यूटेंट' के कारण ही है तो इसके लिए एक बड़ी लापरवाही ज़िम्मेदार होगी। इतनी बड़ी लापरवाही किसकी होगी? इसका जवाब विशेषज्ञों के इस तथ्य से मिल जाएगा- जिस 'डबल म्यूटेंट' पर इतना शोर है इसका पता पिछले साल 5 अक्टूबर को ही चल गया था। यह संभव हुआ था जीनोम सिक्वेंसिंग से। लेकिन इस जीनोम सिक्वेंसिंग का काम तब आगे नहीं बढ़ सका था। इसका मतलब है कि लापरवाही बरती गई। इसके लिए फंड नहीं दिया गया, कोई निर्देश नहीं दिया गया था। नीति नहीं बनाई गई थी। जनवरी तक ऐसा ही चलता रहा, लेकिन जब कोरोना बढ़ना शुरू हुआ तो ज़िम्मेदारों की नींद खुली! लेकिन अब तो विशेषज्ञों को अंदेशा है कि अब 'ट्रिपल म्यूटेंट' जैसा स्ट्रेन आ गया है। सवाल है कि इस लापरवाही का कितना बड़ा नुक़सान हुआ?