क्या डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेश (डीआरडीओ) के पूर्व प्रमुख वी. के. सारस्वत अंतरिक्ष में उपग्रह को मार गिराने वाली मिसाइल के परीक्षण के मुद्दे पर झूठ बोल रहे हैं? पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन के खुलासे से ऐसा ही लगता है।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को यह दावा किया कि भारत ने उपग्रह को निशाना बनाने वाली मिसाइल यानी एसैट का सफल परीक्षण कर लिया है और इसने 'लो अर्थ ऑर्बिट' में अपने ही एक पुराने और बेकार हो चुके उपग्रह को नष्ट कर अपनी क्षमता का परिचय दे दिया है। इसके बाद इस मुद्दे पर राजनीति तेज़ हो गई। नीति आयोग के सदस्य और डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख सारस्वत ने कहा कि भारत ने पहले ही यह क्षमता विकसित कर ली थी, पर पहले की सरकारों के पास इसका परीक्षण करने का राजनीतिक साहस नहीं था। उन्होंने कहा कि वे जब डीआरडीओ प्रमुख थे, उन्होंने केंद्र सरकार से इसकी अनुमति माँगी, पर उन्हें वह अनुमति नहीं दी गई थी। 

उस समय के एनएसए और अब रिटायर हो चुके मेनन ने इससे इनकार किया है। उन्होंने 'द वायर' से बात करते हुए कहा कि वह इस तरह की बात पहली बार सुन रहे हैं। 

मैं यह बात पहली बार सुन रहा हूँ कि डीआरडीओ ने एसैट के परीक्षण की अनुमति सरकार से माँगी थी। सारस्वत ने एसैट के परीक्षण की अनुमति मुझसे कभी नहीं माँगी थी।

सारस्वत ने एक अख़बार से कहा था, 'मुझे याद है कि मैंने एसैट के परीक्षण के लिए मंत्रियों के सामने और एनएसए के सामने भी प्रेजेन्टेशन रखा था, पर इसके लिए ज़रूरी अनुमति मुझे कभी नहीं मिली। कोई कारण नहीं बताया गया, बस चुप्पी छाई रही।'  लेकिन मेनन ने इससे साफ़ इनकार कर दिया है।  

सारस्वत ने अनौपचारिक रूप से ऐसा कहा था। पर एसैट के परीक्षण के लिए कोई अनुमति नहीं माँगी गई थी।

यह जानना दिलचस्प है कि सारस्वत ने साल 2012 में 'इंडिया टुडे' को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत ने उपग्रह को नष्ट करने वाली मिसाइल बनाने की क्षमता हासिल तो कर ली है, पर हम उसका परीक्षण नहीं करेंगे क्यों ऐसा करने से नष्ट हुए उपग्रह का मलबा अंतरिक्ष में फैल जाएगा और अंतरिक्षण प्रदूषित हो जाएगा।