हरियाणा के गुरुग्राम में कथित तौर पर अवैध घुसपैठियों के खिलाफ पुलिस की ताजा कार्रवाई ने बांग्ला भाषी समुदाय में डर का माहौल पैदा कर दिया है। इस अभियान के तहत कई बांग्ला भाषी लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिसके चलते डर और अनिश्चितता के कारण सैकड़ों मजदूर अपने परिवारों के साथ पश्चिम बंगाल लौट रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम के सेक्टर 49 का बंगाली मार्केट अब खाली हो रहा है। यहाँ रहने वाले क़रीब 500 से ज़्यादा बंगाली प्रवासी मज़दूरों में से अधिकतर वापस जा चुके हैं। लोगों में दहशत ऐसी है कि कुछ तो जल्दी से जल्दी भागने के लिए घर से पैसे मंगाकर फ्लाइट से बंगाल जा रहे हैं।

ऐसी स्थिति में गुरुग्राम में सफाई, निर्माण और अन्य अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की भारी कमी हो गई है। साथ ही, कुछ मामलों में बांग्ला भाषी लोगों को बांग्लादेश भेजने की घटनाएँ भी सामने आई हैं और इससे भी बांग्ला भाषी लोगों में तरह-तरह की आशंकाएँ पैदा हो रही हैं। इसी बीच, गुरुग्राम में हाल की घटनाओं ने दहशत पैदा कर दी है।

'अवैध घुसपैठिए' पर पुलिस का अभियान

पिछले एक सप्ताह से गुरुग्राम पुलिस ने कथित अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत अब तक 250 से अधिक संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें से अधिकांश बांग्ला भाषी हैं। मीडिया रिपोर्टों में पुलिस सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि इनमें से कई लोगों को सामुदायिक केंद्र जैसी जगहों पर रखा गया है, जहाँ उनके दस्तावेजों का सत्यापन किया जा रहा है। पुलिस ने कहा है कि वह केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का पालन कर रही है। रिपोर्टों के अनुसार पुलिस ने कहा है कि किसी को अनावश्यक रूप से हिरासत में नहीं लिया जा रहा है और सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद वैध दस्तावेज वाले लोगों को रिहा कर दिया जा रहा है।

हालाँकि, इस अभियान ने बांग्ला भाषी समुदाय में भय पैदा कर दिया है। पश्चिम बंगाल और असम से आए कई मजदूरों का कहना है कि उन्हें केवल बांग्ला बोलने के आधार पर संदिग्ध मानकर हिरासत में लिया जा रहा है। गुरुग्राम के सोहाना गांव में हाल ही में 13 बांग्ला भाषी मुस्लिम मजदूरों को हिरासत में लिया गया, जिसके बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दावा किया कि ये सभी भारतीय नागरिक हैं और उनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे वैध दस्तावेज हैं। संगठन ने प्रशासन से मुलाकात कर इन लोगों को रिहा करने की मांग की है।

डर के कारण पलायन और कामगारों की कमी

इस अभियान का सबसे बड़ा प्रभाव गुरुग्राम के अनौपचारिक क्षेत्रों पर पड़ा है। शहर में सफाई, कचरा संग्रह, निर्माण कार्य और घरेलू कामों में बांग्ला भाषी मजदूरों की बड़ी संख्या कार्यरत है। लेकिन हिरासत में लिए जाने के डर से कई मजदूरों ने काम छोड़ दिया है और अपने परिवारों के साथ पश्चिम बंगाल लौट रहे हैं। मीडिया से पिछले 10 वर्षों से गुरुग्राम में कचरा संग्रह का काम कर रहे जहांउर इस्लाम ने कहा, 'पुलिस ने मुझे पांच दिन पहले हिरासत में लिया था। हमें नहीं बताया गया कि हमें क्यों पकड़ा गया। अब हम डर के मारे काम पर नहीं जा रहे।'

बांग्ला भाषी लोगों में दहशत के कारण गुरुग्राम में कई जगहों पर कचरे के ढेर जमा हो गए हैं और निर्माण कार्यों में भी देरी हो रही है। स्थानीय ठेकेदारों का कहना है कि मजदूरों की कमी के कारण कई परियोजनाएँ प्रभावित हो रही हैं।

बांग्ला भाषियों की पीड़ा

पिछले छह साल से शहर में कार की सफाई कर गुजारा करने वाले करीमुल इस्लाम पालरा के कई निवासियों में शामिल थे जो अपना बैग पैक करके जा रहे थे। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार करीमुल ने कहा कि शायद यह आखिरी बार है जब वे गुरुग्राम देख रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार करीमुल ने कहा, 'मेरे पास आधार, वोटर आईडी जैसे दस्तावेज हैं, लेकिन कोई सुन नहीं रहा। लोग बिना वजह पकड़े जा रहे हैं और हिरासत में लिए जा रहे हैं। मुझे अपने परिवार से फ्लाइट टिकट के लिए पैसे मांगने पड़े, क्योंकि इतने कम समय में ट्रेन उपलब्ध नहीं थी।'

टीओआई ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि पिछले छह दिनों में शहर में करीब 400 लोगों को दस्तावेजों की जांच के लिए पकड़ा गया है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 250 लोग अभी भी सेक्टर 10A, बादशाहपुर, सेक्टर 40 और मानेसर के चार कम्युनिटी सेंटरों में हैं, जो हिरासत केंद्र के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं।

पिछले 15 साल से बलियावास में रह रहे असम के समिनुल इस्लाम ने कहा, 'अचानक हमें अवैध बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है। हमारे कई रिश्तेदारों को कम्युनिटी सेंटरों में हिरासत में लिया गया है, भले ही उनके पास नागरिकता के दस्तावेज हैं। हम भारतीय हैं, अपराधी नहीं।'

बंगाली बोलने वाले निशाने पर! 

इन कॉलोनियों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों का कहना है कि डर की वजह यह धारणा है कि बंगाली बोलने वाला कोई भी व्यक्ति इस जांच अभियान में निशाना बन सकता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि सेक्टर 58 के बलियावास में करीब 200 प्रवासी असम के लिए समूहों में जा चुके हैं। कुछ ने पुलिस पर अपने परिवार वालों के साथ मारपीट और बिना वजह उन्हें पकड़ने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि उन्हें 'अपराधी की तरह व्यवहार' से ठेस पहुंची है।

हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम के सेक्टर-56 की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाली खातून ने कहा कि उनके पति आवासीय सोसाइटी में गाड़ियाँ साफ़ करने गए थे। इसी दौरान पुलिस उनको अपने साथ ले गई। उन्होंने कहा कि जब उनको पता चला कि वह हिरासत केंद्र में हैं तो आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज लेकर वह वहाँ पहुँचीं। इसके बाद पुलिस ने उनको हिरासत केंद्र से रिहा किया।

न्यूज़लाउंड्री की रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम के सेक्टर 49 का बंगाली मार्केट अब खाली हो रहा है। यहाँ पहले 500 से ज्यादा बंगाली प्रवासी मज़दूर रहते थे और अब तक करीब 400 लोग इलाका छोड़ चुके हैं। इनमें से कुछ लोग कारों में गए, कुछ ऑटो में निकले तो कई पैदल ही रवाना हुए। न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में सफाईकर्मी रहमान ने कहा, 'मैं तीन दिन से काम पर नहीं गया हूं। मेरी तनख्वाह सिर्फ 12,000 रुपये है। हर एक दिन की कमाई मायने रखती है। ये सब कुछ कोविड लॉकडाउन जैसा ही लग रहा है।' पश्चिम दिनाजपुर से आए 54 वर्षीय निर्माण मज़दूर जमालुद्दीन ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे को भी कुछ दिन कॉलेज न जाने की सलाह दी है, क्योंकि उन्हें पुलिस जांच का डर है।

बांग्लादेश भेजने और वापस लाने के मामले

गुरुग्राम ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में भी बांग्ला भाषी लोगों को अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिया मानकर हिरासत में लिया गया है। कुछ मामलों में, इन लोगों को बांग्लादेश भेज दिया गया, लेकिन बाद में उनकी भारतीय नागरिकता साबित होने पर उन्हें वापस लाना पड़ा। मिसाल के तौर पर मुंबई में पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के फाजर मंडल और उनकी पत्नी तसलीमा मंडल को जून 2025 में मुंबई पुलिस ने बांग्ला बोलने के आधार पर हिरासत में लिया और बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड्स को सौंप दिया। हालांकि, उनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे वैध दस्तावेज थे। पश्चिम बंगाल सरकार के हस्तक्षेप और बोंगांव पुलिस के प्रयासों से 15 जून को उन्हें भारत वापस लाया गया।

इसी तरह, बेंगलुरु में पश्चिम बंगाल के पलाश अधिकारी और उनके परिवार को बांग्ला बोलने के कारण बांग्लादेशी समझकर जेल में डाल दिया गया। तीन महीने तक जेल में रहने के बाद भी उनकी रिहाई नहीं हुई, और परिवार ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मदद की गुहार लगाई।

हाल में ममता ने बंगाली प्रवासियों के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ विरोध मार्च निकाला।

ममता बनर्जी ने बनाया मुद्दा

इस मुद्दे ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर बांग्ला भाषी लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, 'बांग्ला बोलना कोई अपराध नहीं है। अगर बांग्ला बोलने वालों को बांग्लादेशी समझा जाएगा, तो यह पश्चिम बंगाल और बांग्ला भाषा का अपमान है।' ममता ने इसे आपातकाल जैसी स्थिति से तुलना करते हुए चेतावनी दी कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस उत्पीड़न के खिलाफ सड़कों पर उतरेगी।

वहीं, बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह अभियान केवल अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए है। बीजेपी नेता दिलीप घोष ने कहा, 'हमारी सरकार ने बांग्ला भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। हम बांग्ला भाषियों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई जरूरी है।'

इस अभियान ने न केवल बांग्ला भाषी समुदाय में भय पैदा किया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या भाषा के आधार पर किसी को संदिग्ध मानना उचित है। कई सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि ऐसी कार्रवाइयों में पारदर्शिता बरती जाए और वैध दस्तावेज वाले लोगों को परेशान न किया जाए।