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कोरोना : डब्ल्यूएचओ में सुधार की माँग कर मोदी ने चीन को लिया निशाने पर?

क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली में सुधार की माँग कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन पर निशाना साधा है? अमेरिका और यूरोपीय देश चीन के ऊहान शहर से दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस के कहर से त्रस्त हैं और लापरवाही के लिये चीन को दोषी ठहराने में संकोच कर रहे हैं। 

भारत ने गत 26 मार्च को जी-20 के शिखर वीडियो सम्मेलन के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन को और ताक़त प्रदान करने की माँग कर अप्रत्यक्ष रूप से.कहा है कि यदि चीनी सरकार के दबाव में डबल्यूएचओ नहीं आता तो कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिये एहतियाती कार्रवाई दिसम्बर में ही होने लगती और कोरोना वायरस को चीन से बाहर जाने से रोका जा सकता था?  
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डब्ल्यूएचओ पर आरोप

वास्तव में डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस अधेनोम पर आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने  कोरोना वायरस से निबटने के लिये चीन सरकार के प्रयासों की सराहना भी की और इस तरह कोरोना वायरस को चीन से बाहर फैलने से रोकने में नाकाम रहे। चीन ने यदि शुरु में ही कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाया होता तो यह वायरस आज पूरी दुनिया पर कहर नहीं ढा रहा होता।
बीजिंग की कोशिश है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय कोरोना वायरस फैलने की तोहमत चीन पर न डाले। वह अमेरिका सहित दुनिया के सभी ताक़तवर देशों पर दबाव डाल रहा है कि कोरोना वायरस का नाम चीन से न जोड़ा जाए।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी-20 के शिखर नेताओं के सामने यह प्रस्ताव रख कर चीन को आड़े हाथों लिया है कि उसे नाकामी छिपाने में डब्ल्यूएचओ ने साथ दिया।

चोर की दाढ़ी में तिनका!

प्रधानमंत्री मोदी के कहने का तात्पर्य यह था कि यदि संयुक्त राष्ट्र के तहत काम करने वाली संस्था के पास स्वायत्त अधिकार होता तो वह सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य चीन के दबाव में नहीं आता।
वास्तव में चीन ने तो कोरोना वायरस की वजह से पैदा विश्व संकट पर चर्चा करने के लिये 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने का प्रस्ताव भी  आगे नहीं बढने दे कर चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत साबित की है।   

शर्मिंदा चीन

वास्तव में कोरोना वायरस की उत्पति चीन के ऊहान में होने और इसे फैलने से रोकने में नाकाम रहने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच हो रही छीछालेदर से चीन काफी परेशान और शर्मिंदा है।
अपनी आर्थिक ताक़त के बलबूते चीन इस बात की भरसक कोशिश कर रहा है कि कोरोना वायरस का दाग उसके दामन पर न लगे।
जहाँ चीनी सोशल मीडिया पर कोराना वायरस की वजह से चीन को बदनाम करने वाले सभी पोस्ट सेंसर कर दिये जा रहे हैं, विदेशी सोशल मीडिया और वेबसाइटों को भी चीन में सेंसर किया जा रहा है।

चीन की कोशिश

अपने प्रभावों का इस्तेमाल कर चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को पहले तो शुरू के सप्ताहों में वायरस को महामारी के तौर पर घोषित करने से रोका और अब उसकी कोशिश है कि कोरोना वायरस के नाम में चीन नहीं जुड़ा हो।
बीते 24 मार्च को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने जब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर को फ़ोन किया तो कोरोना वायरस के बारे में विशेष चर्चा करते हुए कहा कि कोरोना वायरस का नाम चीन से जोड़ना ठीक नहीं होगा।
भारतीय विदेश मंत्री ने इससे सहमति जताई कि वायरस का नाम किसी देश या समुदाय से नहीं जोड़ा जाना चाहिये। इसके बावजूद नई दिल्ली में चीनी राजदूत सुन वेई तुंग ने ट्वीट कर भारत से कहा कि वह इसका विरोध करे। चीनी राजदूत  ने कहा कि कोरोना वायरस का नाम चीन से जोडना तंग मानसिकता का परिचायक है।

पहले क्या हुआ है?

वास्तव में सदियों से  कई तरह के वायरस जनित रोग और महामारी देशों के नाम पर रखे जाते रहे हैं क्योंकि उनकी उत्पति उन देशों से होकर दुनिया भर में फैली। इनमें कुख्यात  ‘जर्मन मीजल्स’, ‘जापानी इनसेफेलाइटिस’, ‘स्पेनिश फ्लू’, ‘ग्रेट लंदन प्लेग’ आदि आज तक प्रचलित हैं।
लेकिन चीन के ऊहान शहर से फैले कोरोना वायरस को ‘चीनी वायरस’ या ‘ऊहान वायरस’ के नाम से चर्चा किये जाने पर चीन  ने गहरा एतराज किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने जब कोरोना वायरस को चीनी वायरस के नाम से पुकारा और अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कोरोना वायरस को ऊहान वायरस के नाम से पुकारा तो चीन इतना चिढ़ गया कि उसने अमेरिका पर आरोप लगा दिया कि अमेरिकी सेना ने ही ऊहान शहर में यह वायरस छोड़ा।
चीन इस वायरस को प्राकृतिक तौर पर पैदा हुआ बताता रहा है, अंतरराष्ट्रीय सामरिक हलक़ों में आरोप लगाया गया था कि कोरोना वायरस चीन के जैव युद्ध कार्यक्रम का हिस्सा था।

अमेरिकी वायरस?

पिछले  साल अक्टूबर में ऊहान शहर में अंतरराष्ट्रीय सैनिक खेल हुए थे, जिसमें अमेरिका के तीन सौ सैनिकों का एक दल भाग लेने गया था।
अमेरिकी सैनिक दल अक्टूबर के अंत में ही स्वदेश लौट गया था। पहली बार कोरोना वायरस का पता दिसम्बर के शुरु में ही चला। यदि अमेरिकी सेना वहाँ वायरस छोड़ कर गई होती तो कोरोना वायरस   नवम्बर के शुरु में ही उजागर हो गया होता। चीन ने तो पहली बार 23 जनवरी को इस वायरस के फैलने की बात स्वीकार की जब कि दिसम्बर के अंत में चीनी विशेषज्ञों ने इस वायरस के फैलने की चेतावनी दे दी थी। 

सच क्या है?

लेकिन चीन के आरोपों से अमेरिका भी चिढ़ गया औऱ उसने वाशिंगटन में चीनी राजदूत को अपने विदेश मंत्रालय में बुलाकर फटकार भी लगाई।
भले ही डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस को नॉवल कोविड-19 की संज्ञा दी और चीन को इस आरोप से बरी कर दिया है कि इसका जन्म ऊहान में मानव इंजीनियरी से हुआ, यह साबित नहीं हो सकेगा कि इस वायरस का जन्म कैसे हुआ।
लेकिन इस सच्चाई से चीन भी कैसे इनकार कर सकेगा कि कोरोना वायरस पहली बार ऊहान में ही फैला जहाँ तीन हज़ार से अधिक लोग इसकी चपेट में आ गए। इसलिये अंतररराष्ट्रीय समुदाय द्वारा कोरोना वायरस को चीन से जोड़ कर देखना ग़लत नहीं कहा जा सकता। 

चीन की आर्थिक और सैनिक ताक़त के आगे दुनिया का कोई भी देश यह हिम्मत नहीं कर रहा कि वह कोरोना वायरस को चीन के नाम से पुकारे। ऐसे में जी-20 शिखर वीडियो सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा डब्ल्यूएचओ पर टिप्पणी करना काफी अर्थ रखता है। 

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रंजीत कुमार
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