पीएम नरेंद्र मोदी ने बुधवार को पेट्रोल-डीजल के रेट का मुद्दा उछाला और विपक्ष को घेरने की कोशिश की। उनके भाषण का मूल सार यह है कि अगर विपक्ष दल शासित राज्य अपना वैट घटा दें तो उन राज्यों में पेट्रोल डीजल सस्ता हो जाएगा। हालांकि पेट्रोल - डीजल की कीमतें तेल कंपनियां तय कर रही हैं। जो केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन काम करती हैं। उसमें राज्य अपना टैक्स वसूलते हैं, पेट्रोल पंप वाले जिसकी भरपाई आम उपभोक्ता से करती हैं। यही पेच है। पीएम यह तो कह रहे हैं कि राज्य अपना वैट छोड़े लेकिन तेल कंपनियों से रेट कंट्रोल करने को नहीं कह रहे हैं। हाल ही में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान साढ़े चार महीने तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़े। लेकिन 10 मार्च को जब पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आ गए तो पेट्रोल-डीजल के दाम फिर से बढ़ने लगे। केंद्र सरकार ने इसकी वजह यूक्रेन-रूस युद्ध को बताया। हालात ये हैं कि पेट्रोल-डीजल की वजह से जिस तरह महंगाई बढ़ी है, उसे भी यूक्रेन-रूस युद्ध से सत्तारूढ़ दल के नेता जोड़ने में देर नहीं लगाते।
किन राज्यों का लिया नाम
पीएम मोदी ने कोविड स्थिति को लेकर बुधवार को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक के दौरान पीएम वैट घटाने की अपील की। मोदी ने इन राज्यों का नाम लिया - महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड, तमिलनाडु। पेट्रोल और डीजल की कीमतें 27 अप्रैल को लगातार 21वें दिन स्थिर रहीं। सरकार ने 22 मार्च को रेट में बदलाव साढ़े चार महीने के लंबे अंतराल के बाद किया था। अभी तक 10 प्रति लीटर पेट्रोल पर बढ़ चुके हैं। पेट्रोल के दाम 22 मार्च से अब तक 14 बार बढ़े हैं। आखिरी बढ़ोतरी 6 अप्रैल को 80 पैसे प्रति लीटर की हुई थी।
दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 105.41 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 96.67 रुपये प्रति लीटर है।
इस तरह पेट्रोल-डीजल का मुद्दा बुधवार को राजनीति का शिकार हो गया। जाहिर है इस पर विपक्ष भी अपनी प्रतिक्रिया देगा। विपक्षी शासित राज्य अपनी बात कहेंगे। लेकिन उपभोक्ता को इन बातों से कोई मतलब नहीं। उसे दिल्ली में पेट्रोल तो 105 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा खरीदना पड़ रहा है। उसे इससे मतलब नहीं है कि कौन वैट घटा रहा है और कौन नहीं घटा रहा है।
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