सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को न्यायिक अतिक्रमण के आरोपों और कुछ बीजेपी नेताओं द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। एक वकील ने पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुई हिंसा की घटनाओं के संबंध में केंद्र को निर्देश देने की मांग की। इस पर जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पर "कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने के आरोप" लग रहे हैं। जस्टिस गवई भारत के अगले चीफ जस्टिस होने वाले हैं।

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से जुड़ी अपनी लंबित याचिका का उल्लेख करने के बाद अदालत की यह प्रतिक्रिया आई। वकील जैन ने कहा कि शांति सुनिश्चित करने के लिए अर्धसैनिक बलों को वहां भेजने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 2022 में बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के बाद दायर उनकी लंबित याचिका कल (मंगलवार) के लिए सूचीबद्ध है। अपनी नई याचिका में उन्होंने केंद्र को अर्धसैनिक बलों को तैनात करने और हिंसा की जांच के लिए तीन रिटायर्ड जजों का एक पैनल गठित करने के निर्देश देने की मांग की। उन्होंने उत्तर बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा की घटनाओं के बाद हिंदुओं के विस्थापन पर भी रिपोर्ट मांगी।

जवाब में जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करें? वैसे भी, हम पर कार्यपालिका (क्षेत्र) में अतिक्रमण करने का आरोप लग रहा है। प्लीज..."

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जस्टिस गवई की टिप्पणी से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका के खिलाफ सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के एक वर्ग की टिप्पणियों पर बारीकी से नजर रख रहा है।

तमिलनाडु मामले में अपने फैसले के बाद के हफ्तों से बीजेपी नेताओं के एक वर्ग ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की है, जिसमें उसने फैसला सुनाया था कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रखने का फैसला "मनमाना" था और संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए राज्यपाल के कार्यों को रद्द कर दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने यह भी कहा कि केवल जजों के पास ही विधेयक की संवैधानिकता के बारे में सिफारिशें देने का विशेषाधिकार है और कार्यपालिका से ऐसे मामलों में संयम बरतने की अपेक्षा की जाती है। इसने रेखांकित किया कि राष्ट्रपति के लिए संवैधानिक प्रश्नों वाले विधेयकों को सुप्रीम कोर्ट को संदर्भित करना विवेकपूर्ण होगा।

कोर्ट के इस फैसले पर बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने आपत्तिजनक टिप्पणी की। दुबे ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही सारे फैसले लेता है तो संसद को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट अपनी हदें पार कर रहा है। अगर हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है तो संसद और राज्य विधानसभा को बंद कर देना चाहिए।" गोड्डा के सांसद ने कहा, "जब राम मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि या ज्ञानवापी का मुद्दा उठता है तो आप (सुप्रीम कोर्ट) कहते हैं, 'हमें कागज दिखाओ'। लेकिन मुगलों के आने के बाद बनी मस्जिदों के लिए आप कह रहे हैं कि आप कागज कैसे दिखाएंगे? इस देश में धार्मिक युद्धों को भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है।"

दुबे ने पूछा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की समयसीमा कैसे तय कर सकता है। आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। संसद इस देश का कानून बनाती है। आप संसद को निर्देश देंगे? भाजपा नेता दिनेश शर्मा ने कहा कि कोई भी राष्ट्रपति को "चुनौती" नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति "सर्वोच्च" हैं।


इससे पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते कि आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर?...अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बन गया है, जो अदालत के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है।"

सुप्रीम कोर्ट की एक और टिप्पणीः अदालत ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता से कहा कि उसे बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट और भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना की आलोचना करने पर अवमानना ​​याचिका दायर करने के लिए उसकी अनुमति की जरूरत नहीं है।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, मामले का उल्लेख जस्टिस बी आर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने किया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने दुबे की टिप्पणियों के बारे में हाल ही में आई एक समाचार रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि वह अदालत की अनुमति से अवमानना ​​याचिका दायर करना चाहते हैं। जस्टिस गवई ने कहा, "आप इसे दायर करें। दायर करने के लिए आपको हमारी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।"

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पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को इस मामले में अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को लिखे अपने पत्र में अधिवक्ता अनस तनवीर ने दुबे की टिप्पणी को "बेहद अपमानजनक और खतरनाक रूप से भड़काऊ" बताया है।