ट्रंप ने कश्मीर मसले के समाधान की बात कहकर सबको चौंका दिया है। क्या इससे भारत के लंबे समय से चले आ रहे द्विपक्षीय रुख पर असर पड़ेगा? जानिए कूटनीतिक दृष्टिकोण।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की बात कही है। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और युद्धविराम के बीच उनका यह बयान आया है। युद्धविराम में ट्रंप प्रशासन ने मध्यस्थता का दावा किया है, तो क्या ट्रंप अब कश्मीर समस्या में मध्यस्थता की पैरवी कर रहे हैं? भारत ने हमेशा कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा माना है, लेकिन ट्रंप की टिप्पणी ने सवाल उठाया है कि क्या भारत अब इसे द्विपक्षीय बनाए रख पाएगा? क्या ट्रंप कश्मीर मुद्दे की संवेदनशीलता नहीं समझते हैं या फिर वह एक नये विवाद को तूल देने की तैयारी में हैं?
ट्रंप का कश्मीर मुद्दे को सुलझाने का बयान भारत के लिए एक संवेदनशील मसला है। भारत ने हमेशा कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का आंतरिक मामला माना है और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सिरे से खारिज किया है। ट्रंप की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के सैन्य टकराव के बाद युद्धविराम हुआ है। ट्रंप का बयान न केवल भारत की नीति को चुनौती देता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि अमेरिका दक्षिण एशिया में अपनी कूटनीतिक भूमिका को मजबूत करना चाहता है।
भारत ने ट्रंप की कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश जैसी पिछली टिप्पणियों को साफ़ तौर पर खारिज किया था। इस बार भी भारत ने यही रुख दोहराया है। ट्रंप प्रशासन ने भारत-पाक तनाव के मामले में सक्रियता दिखायी। इसमें विदेश मंत्री मार्को रुबियो, उपराष्ट्रपति जे डी वेंस, और स्वयं ट्रंप शामिल रहे। ट्रंप प्रशासन की इस सक्रियता ने यह सवाल उठाया है कि क्या भारत दबाव में अपनी द्विपक्षीय नीति से पीछे हटेगा? विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपनी संप्रभुता और कश्मीर पर अपने रुख को लेकर दृढ़ रहेगा, लेकिन अमेरिका की बढ़ती दिलचस्पी क्षेत्रीय कूटनीति को मुश्किल कर सकती है।
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की शुरुआत पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के भड़काऊ बयानों से हुई, जिनमें उन्होंने हिंदू-मुस्लिम संबंधों और कश्मीर पर टिप्पणी की। इसके बाद पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। इसके बाद भारत ने 7 मई को पाकिस्तान और पीओके में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के नौ ठिकानों पर हमले किए। इसके जवाब में पाकिस्तान ने जम्मू, पठानकोट, उधमपुर और जैसलमेर तक ड्रोन हमले शुरू किए।
भारत और पाकिस्तान के इन हमलों ने दोनों देशों को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया, लेकिन शनिवार शाम को युद्धविराम की घोषणा हुई।
अमेरिका ने इस युद्धविराम को अपनी मध्यस्थता का परिणाम बताया। रुबियो ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बात की, जबकि वेंस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क किया। रुबियो ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि उन्होंने और वेंस ने भारत और पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की। अमेरिकी विदेश विभाग ने इसे अमेरिका द्वारा मध्यस्थता वाला युद्धविराम करार दिया।
हालांकि, भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय था और इसमें कोई तीसरा पक्ष शामिल नहीं था। भारत का यह रुख कश्मीर और अन्य मुद्दों पर उसकी दीर्घकालिक नीति के अनुरूप है, जिसमें वह किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है।
अमेरिका का मध्यस्थता का दावा और भारत का द्विपक्षीय समझौते का रुख कई कारणों से टकरा रहा है। अमेरिका इस युद्धविराम को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में पेश करना चाहता है, खासकर तब जब पाकिस्तान को भारत के विरोध के बावजूद आईएमएफ बेलआउट पैकेज मिला। यह इस्लामाबाद के लिए एक कूटनीतिक राहत थी। पाकिस्तान के लिए अमेरिकी मध्यस्थता का दावा अपने लोगों को यह दिखाने का मौका देता है कि उसने भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया और फिर भी अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया।
भारत किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार करके अपनी संप्रभुता और कश्मीर पर अपने रुख को कमजोर नहीं करना चाहता।
भारत कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय मुद्दा मानता है क्योंकि यह भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला है, जो 1947 के बंटवारे और जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय से उपजा। भारत का मानना है कि यह मुद्दा दोनों देशों के बीच संवाद और समझौतों के तहत हल होना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से द्विपक्षीय वार्ता पर जोर दिया गया है। भारत तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता। इसकी कई वजहें हैं।
भारत कश्मीर को अपने आंतरिक मामलों का हिस्सा मानता है और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को संप्रभुता में हस्तक्षेप के रूप में देखता है। तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से मुद्दा और जटिल हो सकता है, और भारत को आशंका है कि मध्यस्थ पक्षपात कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर पहले हुई चर्चाओं से भारत को लगता है कि ये मंच प्रभावी समाधान देने में असफल रहे हैं। भारत मानता है कि पाकिस्तान तीसरे पक्ष को शामिल कर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उछालना चाहता है, जिससे भारत पर दबाव बढ़े। भारत इसे रोकना चाहता है। इसलिए, भारत कश्मीर को द्विपक्षीय ढांचे में ही हल करने पर जोर देता है।
बहरहाल, भारत-पाकिस्तान युद्धविराम ने तत्काल तनाव को कम किया है, लेकिन कश्मीर पर ट्रंप की टिप्पणी और अमेरिका की मध्यस्थता का दावा क्षेत्रीय कूटनीति में नए सवाल खड़े करता है। भारत अपनी द्विपक्षीय नीति पर अडिग है, लेकिन अमेरिका की सक्रियता और पाकिस्तान की आक्रामकता इस शांति को नाजुक बनाए रखेगी। एक बात तो साफ़ है कि भारत कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा ही रखना चाहेगा।