कहा जाता है कि अमेरिका से न दोस्ती भली, न दुश्मनी! पहले टैरिफ़ पर ट्रंप का बयान आता रहा। फिर भारत पाकिस्तान युद्धविराम को लेकर बार-बार दावे किए गए। और अब अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा है कि भारत का ज़्यादातर सैन्य सामान रूस से ख़रीदना और ब्रिक्स का हिस्सा बनकर डॉलर को चुनौती देना अमेरिका को खटक गया। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब सब ठीक है और भारत व अमेरिका के बीच व्यापार समझौते के जल्द ही अंतिम रूप लेने की उम्मीद है। आख़िर यह सब कैसे हो रहा है? क्या भारत का हित प्रभावित हो रहा है या फिर लुटनिक का बयान भारत पर दबाव बनाने की कोशिश है?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने क्या कहा है। लुटनिक यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम के आठवें वार्षिक नेतृत्व शिखर सम्मेलन में भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते पर चर्चा कर रहे थे।
लुटनिक का बयान भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं के दौरान ही आया है, जो जुलाई 2025 से पहले एक अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने भारत को एक असाधारण अर्थव्यवस्था और महत्वपूर्ण विनिर्माण साझेदार के रूप में प्रशंसा की, लेकिन साथ ही भारत की कुछ नीतियों पर चिंता जताई। उन्होंने इसी दौरान तीखी टिप्पणियां कीं। उन्होंने भारत के रूस से सैन्य उपकरण खरीदने और ब्रिक्स समूह में सक्रिय भागीदारी को अमेरिका के लिए 'परेशान करने वाला' बताया। उन्होंने कहा- 'भारत सरकार ने कुछ चीजें ऐसी कीं जो अमेरिका को थोड़ी खटक गईं। जैसे कि आप ज़्यादातर अपना सैन्य सामान रूस से खरीदते हैं। जब आप रूस से हथियार लेते हैं तो वो अमेरिका को थोड़ा चुभता है।'
इसी चर्चा में लुटनिक ने यह भी कहा- 'ब्रिक्स का हिस्सा बनकर डॉलर को चुनौती देना- ये अमेरिका में दोस्त बनाने और लोगों को लुभाने का तरीक़ा नहीं है। राष्ट्रपति ने इन चीज़ों को सीधे तौर पर उठाया है और भारत सरकार भी अब इन पर सीधे तरीक़े से काम कर रही है।' यह बयान इस बात का संकेत देता है कि अमेरिका भारत की नीतियों को अपने हितों के अनुरूप ढालने की अपेक्षा कर रहा है।
लुटनिक का यह बयान कि 'रूस से हथियार खरीदना अमेरिका को चुभता है' और 'ब्रिक्स का हिस्सा बनकर डॉलर की बादशाहत को चुनौती देना दोस्त बनाने का तरीक़ा नहीं है' भारत की सामरिक स्वायत्तता और संप्रभुता पर अमेरिकी दबाव की ओर इशारा करता है।
इसके साथ ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया टैरिफ़ वाले बयान और भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पर बार-बार दावों ने यह सवाल उठाया है कि क्या अमेरिका भारत के राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है।
यह भारत की सामरिक स्वायत्तता पर एक अप्रत्यक्ष दबाव के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि भारत ने लंबे समय से रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा सहयोग को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों का अभिन्न हिस्सा माना है।
अमेरिकी चिंता की वजहें
भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रक्षा सहयोग है, जिसमें हथियारों की खरीद से लेकर संयुक्त सैन्य अभ्यास और तकनीकी हस्तांतरण शामिल हैं। रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद से अमेरिका और उसके सहयोगी रूस के साथ किसी भी तरह के व्यापार या रक्षा संबंधों को लेकर सख्त रुख अपना रहे हैं। भारत की रूस से तेल खरीद और एस-400 जैसे सौदों ने पहले भी अमेरिका के साथ तनाव को बढ़ाया है। लुटनिक का बयान इस बात पर जोर देता है कि अमेरिका भारत के रूस के साथ संबंधों को अपने रणनीतिक हितों के लिए बाधा के रूप में देखता है।
ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका का ब्रिक्स एक ऐसा मंच है जो वैश्विक दक्षिण के हितों को बढ़ावा देता है और पश्चिमी-प्रभुत्व वाली वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के विकल्प की तलाश करता है। ब्रिक्स देशों ने हाल के वर्षों में डॉलर की बादशाहत को कम करने और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाए हैं। भारत की ब्रिक्स में सक्रिय भूमिका अमेरिका के लिए चिंता का विषय है। लुटनिक का यह कहना कि ब्रिक्स की सदस्यता 'अमेरिका में दोस्त बनाने का तरीका नहीं है' साफ़ तौर पर भारत की इस बहुध्रुवीय नीति पर अमेरिकी असहजता को दिखाता है।
लुटनिक का बयान हाल के महीनों में राष्ट्रपति ट्रम्प के बयानों के संदर्भ में और भी गंभीर हो जाता है। ट्रम्प ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, यह कहते हुए कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर ग़लत आयात शुल्क लगाता है।
इसके साथ ही ट्रम्प ने कई बार दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम में मध्यस्थता की, जिसे भारत ने बार-बार खारिज किया है। विदेश मंत्रालय ने साफ़ किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 2021 का युद्धविराम समझौता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत का परिणाम था। इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं थी।
ये बयान और दावे भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाते हैं। ट्रंप का भारत-पाक युद्धविराम में मध्यस्थता का दावा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को कमजोर करने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। इसी तरह, लुटनिक का रूस और ब्रिक्स पर बयान भारत की सामरिक और आर्थिक नीतियों को अमेरिकी हितों के अनुरूप ढालने का दबाव बनाता है। यह सवाल उठता है कि क्या अमेरिका भारत के राष्ट्रीय हितों को तय करने की कोशिश कर रहा है, खासकर तब जब भारत वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र और प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभर रहा है।
भारत के लिए यह स्थिति एक जटिल संतुलन की मांग करती है। अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता भारत के आर्थिक हितों के लिए अहम है। यह समझौता न केवल व्यापार घाटे को कम करने और बाजार पहुंच को बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने में भी सहायक होगा। लुटनिक ने एआई और डेटा सेंटर जैसे क्षेत्रों में सहयोग की पेशकश की, जो भारत की तकनीकी महत्वाकांक्षाओं के लिए आकर्षक है।
बहरहाल, भारत की सामरिक स्वायत्तता और संप्रभुता उसके राष्ट्रीय हितों का मूल है। रूस के साथ रक्षा संबंध और ब्रिक्स में सक्रियता भारत की बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत और ग्लोबल साउथ के नेतृत्व का हिस्सा हैं। इन नीतियों पर किसी भी तरह का समझौता भारत की वैश्विक स्थिति को कमजोर कर सकता है। भारत ने बार-बार साफ़ किया है कि वह अपनी विदेश नीति में बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।
वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति तेज़ी से मज़बूत हो रही है। भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया वाले क्वाड के माध्यम से भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक अहम रणनीतिक साझेदार है। साथ ही, भारत रूस, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों के माध्यम से अपनी स्वतंत्र नीतियों को बनाए रखता है।
भारत ने अब तक इन मुद्दों पर सावधानीपूर्वक रुख अपनाया है। वाणिज्य मंत्रालय के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल के हालिया वाशिंगटन दौरे और इस सप्ताह भारत में अमेरिकी व्यापार अधिकारियों की यात्रा से संकेत मिलता है कि दोनों पक्ष व्यापार वार्ताओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत टैरिफ़ छूट और क्षेत्रीय रियायतों की मांग कर रहा है, ताकि यह समझौता दोनों देशों के लिए लाभकारी हो।
लेकिन इसके साथ ही भारत यह तय करना चाहेगा कि वह अपनी सामरिक स्वायत्तता और संप्रभुता को बनाए रखे। रूस के साथ रक्षा संबंध और ब्रिक्स में सक्रियता भारत के राष्ट्रीय हितों का हिस्सा हैं, और इन पर किसी भी तरह का समझौता भारत की वैश्विक स्थिति को कमजोर कर सकता है। अमेरिका की भारत की स्वतंत्र नीतियों पर चिंता और उसके राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करने की कोशिश भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाती है। भारत के लिए यह एक नाजुक संतुलन की स्थिति है, जहाँ उसे अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ आर्थिक सहयोग को बढ़ाना होगा।