अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी जब इस साल की शुरुआत में भारी कर्ज में डूबे थे, अमेरिका में घूसखोरी के आरोपों का सामना कर रहे थे और कई बड़े यूरोपीय व अमेरिकी बैंक मदद करने से झिझक रहे थे, तब मोदी सरकार और लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी एलआईसी उनको उबारने के लिए सामने आई थी। द वाशिंगटन पोस्ट ने एक पड़ताल कर कहा है कि तब अडानी के कारोबार में एलआईसी से 3.9 अरब डॉलर यानी क़रीब 32000 करोड़ रुपये का निवेश करवाया गया। एलआईसी में आम तौर पर ग़रीब और ग्रामीण लोगों के बीमा के पैसे होते हैं।

अमेरिका के इस प्रतिष्ठित अख़बार ने रिपोर्ट दी है कि इस साल की शुरुआत में करीब 90 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक गौतम अडानी भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे। उनके कोयला खदान, हवाई अड्डे, बंदरगाह और ग्रीन एनर्जी जैसे कारोबारों पर कर्ज बढ़ता जा रहा था। इसके अलावा, अमेरिकी अधिकारियों ने पिछले साल उन पर रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे। इन वजहों से कई बड़े अमेरिकी और यूरोपीय बैंक उन्हें कर्ज देने से हिचक रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार, लेकिन इस संकट के बीच भारत सरकार ने अडानी की मदद के लिए एक बड़ा प्लान तैयार किया।
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कैसे शुरू हुआ यह प्लान?

वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, भारतीय अधिकारियों ने मई 2025 में एक प्रस्ताव तैयार किया। आंतरिक दस्तावेजों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि यह योजना भारतीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग यानी डीएफएस और एलआईसी के साथ मिलकर तैयार की गई थी। इसमें भारत की प्रमुख सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग की भी भूमिका थी। इस योजना को वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। रिपोर्ट के अनुसार दस्तावेजों में कहा गया है कि इस निवेश के पीछे दो मुख्य उद्देश्य थे- अडानी समूह में भरोसा दिखाना और अडानी के बढ़ते कर्ज को कम करना।

एलआईसी का निवेश

रिपोर्ट के अनुसार मई 2025 में अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड को अपने मौजूदा कर्ज को चुकाने के लिए 585 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 4800 करोड़ रुपये की ज़रूरत थी। 30 मई को अडानी समूह ने घोषणा की कि इस पूरे बॉन्ड को केवल एक निवेशक यानी एलआईसी ने खरीदा। इस सौदे की आलोचना तुरंत शुरू हो गई, क्योंकि विपक्षी दलों और विशेषज्ञों ने इसे सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करार दिया।

वाशिंगटन पोस्ट ने दस्तावेजों के हवाले से ख़बर दी है कि वित्त मंत्रालय ने एलआईसी को सलाह दी थी कि वह अडानी समूह के कॉरपोरेट बॉन्ड में 3.4 अरब डॉलर और अडानी की कई सहायक कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 507 मिलियन डॉलर का निवेश करे।

अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय का तर्क था कि अडानी के बॉन्ड 10 साल के सरकारी बॉन्ड की तुलना में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं। हालांकि, यह निवेश जोखिम भरा माना गया, क्योंकि अडानी समूह की सिक्योरिटीज के दामों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

अडानी समूह ने द वाशिंगटन पोस्ट के सवालों के जवाब में कहा, 'हम एलआईसी के फंड को सीधे तौर पर इस्तेमाल करने की किसी भी कथित सरकारी योजना में शामिल होने से साफ़ इनकार करते हैं। एलआईसी कई कॉर्पोरेट समूहों में निवेश करती है और अडानी को तरजीह देने का सुझाव भ्रामक है। इसके अलावा, एलआईसी ने हमारे पोर्टफोलियो में अपने निवेश से रिटर्न कमाया है।' 

रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने कहा कि अनुचित राजनीतिक पक्षपात के दावे निराधार हैं और हमारा विकास श्री मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व से पहले का है। इधर, एलआईसी, डीएफएस और मोदी के कार्यालय ने टिप्पणी के लिए वाशिंगटन पोस्ट के कई अनुरोधों का जवाब नहीं दिया।
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अडानी पर अमेरिकी आरोप

पिछले साल अमेरिकी न्याय विभाग ने अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर 'अरबों डॉलर की धोखाधड़ी' का आरोप लगाया था। उन पर अमेरिकी निवेशकों से झूठे और भ्रामक बयानों के आधार पर फंड जुटाने का इल्ज़ाम है। इसके अलावा, अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन यानी एसईसी ने अडानी और उनके सहयोगियों पर सिक्योरिटीज कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि अडानी ने 2020 से 2024 के बीच सौर ऊर्जा अनुबंध हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 250 मिलियन डॉलर से अधिक की रिश्वत दी। अडानी समूह ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज किया है और कहा है कि यह मामला व्यक्तियों से संबंधित है, न कि उनकी कंपनियों से।

पहले भी विवादों में रहा अडानी समूह

2023 में न्यूयॉर्क की एक निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर शेयरों की कीमतों में हेरफेर और वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया था। इस रिपोर्ट के बाद भारत की स्टॉक मार्केट नियामक संस्था सेबी ने जांच शुरू की। सेबी ने सितंबर 2025 में दो आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन कुछ अन्य मामले अभी भी लंबित हैं। अडानी समूह ने दावा किया कि सेबी ने उनकी कंपनियों में कोई उल्लंघन नहीं पाया।

अडानी और मोदी सरकार से रिश्ता

अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच लंबे समय से रिश्ते होने का आरोप लगता रहा है। जब मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब से अडानी उनके साथ रहे हैं। 2014 में जब मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ा, तो वे अडानी समूह के जेट से प्रचार के लिए यात्रा करते थे। विपक्ष और राहुल गांधी इसको लेकर लगातार हमलावर रहे हैं।
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विपक्ष का विरोध और जोखिम

कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) जैसे विपक्षी दलों ने एलआईसी के अडानी में निवेश की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह गरीब और ग्रामीण परिवारों के लिए जमा किए गए धन का दुरुपयोग है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अडानी समूह को और वित्तीय परेशानी हुई, तो एलआईसी को भारी नुकसान हो सकता है।

यह साफ है कि अडानी समूह भारत सरकार के लिए रणनीतिक रूप से अहम है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह समर्थन देश के आर्थिक हितों के लिए है या यह केवल एक प्रभावशाली कारोबारी को बचाने की कोशिश है? इस निवेश के जोखिम और इसके दूरगामी प्रभावों पर अभी भी बहस जारी है।