बजट की बेला आ गई है। अब सबको इंतजार है कि अगले हफ़्ते आखिर क्या निकलेगा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लाल बस्ते से। हाल तो सामने है कि कौन कौन बेहाल है। और यही वित्तमंत्री की सबसे बड़ी चुनौती है कि कोरोना काल में जो लोग किसी न किसी वजह से मुसीबत में आ गए हैं उन्हें कैसे राहत दी जाए, कितनी राहत दी जाए और इसके लिए पैसा कहां से आएगा?

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गाड़ी में ब्रेक होता ही इसलिये है ताकि उसे तेज़ रफ्तार पर दौड़ाया जा सके और ज़रूरत पड़ने पर रोका जा सके। लेकिन तेज़ रफ्तार दौड़ने के लिए ब्रेक ही काफ़ी नहीं है। उसके लिए गाड़ी में एक्सलरेटर भी होता है, जिसे दबाये बिना गाड़ी आगे नहीं बढ़ती। अर्थव्यवस्था भी ऐसी ही एक गाड़ी है जिसे अब तेज़ी से दौड़ना भी है और दुर्घटना से बचना भी है।
बजट का असली मतलब तो आमदनी और खर्च का हिसाब लगाना ही होता है। हिसाब भी बिलकुल वैसे ही लगता है जैसे आप अपने घर के ख़र्च का हिसाब लगाते हैं। और खर्च का हिसाब लगाने से पहले यह पता होना ज़रूरी है कि कमाई कितनी है, और अगर खर्च ज्यादा हैं तो कहाँ से कितना कर्ज मिल सकता है।