सामाजिक कार्यकर्ता और कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे की 2015 में की गई हत्या के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की कोल्हापुर बेंच ने मंगलवार को तीनों प्रमुख आरोपियों को जमानत दे दी। जमानत पाने वालों में मुख्य आरोपी वीरेंद्रसिंह तावड़े, शरद कालस्कर और अमोल काले शामिल हैं। तावड़े और काले तो जेल से बाहर आ जाएँगे, लेकिन 2013 में एक्टिविस्ट नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए कालस्कर अभी भी सलाखों के पीछे ही रहेंगे। कालस्कर की दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में लंबित है।


बहरहाल, एकल पीठ के जस्टिस शिवकुमार डिगे ने मौखिक रूप से यह फ़ैसला सुनाया, हालाँकि विस्तृत आदेश की प्रति अभी उपलब्ध नहीं हुई है। अभियोजन पक्ष ने जमानत का विरोध किया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि दाभोलकर, पानसरे, एमएम कलबुर्गी (2015) और पत्रकार गौरी लंकेश (2017) की मौतें आपस में जुड़ी हुई थीं और नालासोपारा हथियार बरामदगी मामले में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद ही हत्या का सिलसिला रुका।

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गोविंद पानसरे एक प्रमुख तर्कवादी लेखक और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के वरिष्ठ नेता रहे थे। उनकी हत्या 16 फरवरी 2015 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में सुबह की सैर के दौरान हुई थी। दो बाइक सवार अज्ञात हमलावरों ने उन पर और उनकी पत्नी उमा पानसरे पर गोलीबारी की थी। उमा घायल होने के बावजूद बच गईं, लेकिन गोविंद पानसरे ने चार दिनों बाद 20 फरवरी को मुंबई के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया।


इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी, क्योंकि पानसरे दक्षिणपंथी उग्रवाद के खिलाफ अपनी मुखर आलोचना के लिए जाने जाते थे। अपनी किताब 'शिवाजी कोण होता' में उन्होंने शिवाजी को एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में चित्रित किया, जो मुस्लिम जनरलों को अपनी सेना में स्थान देते थे, जिसके कारण यह किताब विवादास्पद भी रही। इन कारणों से वह हिंदुत्ववादियों के निशाने पर रहे।

साजिश का मुख्य सूत्रधार तावड़े

अभियोजन के अनुसार वीरेंद्रसिंह तावड़े इस हत्याकांड का मुख्य साजिशकर्ता है, जिसने पानसरे को 'खत्म' करने की साज़िश रची। शरद कालस्कर और अमोल काले पर भी तावड़े के साथ साजिश रचने और युवाओं को पानसरे तथा अन्य बुद्धिजीवियों के खिलाफ भड़काने का आरोप है। महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड यानी एटीएस ने जाँच में 12 आरोपियों की पहचान की, जिनमें से 10 को गिरफ्तार किया गया। दो शूटर विनय पवार और सरंग अकोलकर अभी भी फरार हैं।

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इस मामले में चार प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही पर अभियोजन का केस टिका है। पानसरे की पत्नी उमा ने दो आरोपियों की पहचान की, जबकि एक अन्य गवाह ने एक आरोपी को पहचाना। एटीएस ने हत्या, हत्या का प्रयास, आपराधिक साजिश और आर्म्स एक्ट के तहत चार सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की हैं। तावड़े और कालस्कर पर 2013 में नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में भी आरोप है, जबकि पानसरे मामले के कई आरोपी 2015 के एमएम कलबुर्गी और 2017 के गौरी लंकेश हत्याओं से जुड़े हैं।

बाक़ी पहले से ही जमानत पर

अदालत ने जनवरी 2025 में बाकी छह अन्य आरोपियों- सचिन अंदुरे, गणेश मिस्किन, अमित डेगवेकर, अमित बड्डी, भारत कुराने और वासुदेव सूर्यवंशी को लंबी हिरासत के आधार पर जमानत दी थी। इनकी गिरफ्तारी 2018-19 के बीच हुई थी। कोर्ट ने मुख्य आरोपी तावड़े की जमानत याचिका को तब यह कहते हुए टाल दिया था कि इनके मामले में फिर से सुनवाई की ज़रूरत है। लेकिन अब सभी प्रमुख आरोपी जमानत पर बाहर हैं। अदालत ने कोल्हापुर सेशन कोर्ट को निर्देश दिया था कि मुक़दमे को रोजाना सुनवाई के साथ तेजी से निपटाया जाए।

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जाँच की शुरुआत स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी से हुई, लेकिन प्रगति न होने पर अगस्त 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे एटीएस को सौंप दिया।

तर्कवादियों की हत्याओं का सिलसिला

यह पानसरे हत्याकांड 2013 के दाभोलकर, 2015 के कलबुर्गी और 2017 के गौरी लंकेश हत्याओं से जुड़ा माना जाता है। 2018 के नालासोपारा हथियार तस्करी मामले के बाद इन हत्याओं में ब्रेकथ्रू मिला। एटीएस का दावा है कि ये हमले सनातन संस्था जैसे संगठनों से प्रेरित थे। लेकिन फरार शूटरों की गिरफ्तारी न होने से जाँच पर सवाल बने हुए हैं।