महाराष्ट्र में कई दिनों तक चले सियासी ड्रामे के बाद मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। इसे लेकर विपक्षी राजनीतिक दलों ने तीख़ी प्रतिक्रियाएँ दीं और राज्यपाल पर संविधान का मखौल उड़ाने का आरोप लगाया। विपक्षी दलों का कहना है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को मंगलवार रात 8.30 बजे तक का समय दिया गया था लेकिन उससे पहले ही राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय केंद्र सरकार के इशारे पर लिया गया है। 
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या राज्यपाल ने निष्पक्ष भूमिका निभाई? क्या उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के साथ समान व्यवहार किया? बता दें कि काफ़ी समय से राज्यपालों की भूमिका संदेह के घेरे में आने लगी है और इन पदों का राजनीतिकरण होने के आरोप लगते रहे हैं। सीधा अर्थ यह है कि इन पदों पर सत्ताधारी दल अपनी पार्टी के रिटायर होने वाले नेताओं को नियुक्त करते हैं। जिस-जिस प्रदेश में सत्ता का समीकरण गड़बड़ाता है, वहाँ राज्यपाल की भूमिका सवालों के घेरे में आ जाती है। 
ताज़ा ख़बरें
ताज़ा परिदृश्य में देखें तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की यह पहली घटना नहीं है। राज्य में पहली बार 17 फरवरी 1980 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार के पास विधानसभा में पूर्ण बहुमत था, इसके बावजूद सदन को भंग कर दिया गया था। तब 17 फ़रवरी से 8 जून 1980 तक यानी 112 दिन तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहा था। 

राज्य में दूसरी बार 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। तब राज्य में कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस ने सरकार में शामिल एनसीपी सहित अन्य सहयोगी दलों से किनारा कर लिया था। जिसके कारण विधानसभा को समय से पहले भंग करना पड़ा था। उस वक्त 28 सितंबर से 30 अक्टूबर 2014 तक यानी कुल 32 दिन तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। इन दोनों मौक़ों पर लगे राष्ट्रपति शासन में पहली बार जहां स्वयं पवार शामिल रहे, वहीं दूसरी बार उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच पैदा हुए मतभेद के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा। 12 नवंबर 2019 को लगे राष्ट्रपति शासन में भी पवार की भूमिका अहम है। 

अगर राष्ट्रपति शासन को लेकर राष्ट्रीय परिदृश्य देखें तो अलग-अलग राज्यों में अब तक 126 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है, इसमें जम्मू -कश्मीर शामिल नहीं है। सबसे ज़्यादा - मणिपुर में 10 बार, पंजाब में 9 बार, उत्तर प्रदेश में 9 बार, बिहार में 8 बार, कर्नाटक में 6 बार, पुडुचेरी में 6 बार, ओडिशा में 6 बार, केरल में 4 बार राष्ट्रपति शासन लगा। 
महाराष्ट्र से और ख़बरें
इसके अलावा गुजरात में 5, गोवा में 5, मध्य प्रदेश में 4, राजस्थान में 4, तमिलनाडु में 4, नगालैंड में 4, अमस में 4, हरियाणा में 3, झारखंड में 3, त्रिपुरा में 3, मिजोरम में 3, आंध्र प्रदेश में 3, महाराष्ट्र में 3, अरुणाचल प्रदेश में 2, हिमाचल, मेघालय, सिक्किम, उत्तराखंड में भी 2 बार और 1 बार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है।  

संवैधानिक परंपरा के मुताबिक़, अगर राज्य में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है और दो या तीन पार्टियां भी मिलकर सरकार बनाने में नाकाम रहती हैं तो ऐसी सूरत में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के इस निर्णय को लेकर कई सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं। राज्यपाल की भूमिका को लेकर पहले भी सवाल उठ रहे थे और यह कहा जा रहा था कि वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की भूमिका तैयार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्यपाल ने शिवसेना को और एनसीपी को सिर्फ़ 24 घंटे की मोहलत दी जबकि बीजेपी को उन्होंने 48 घंटे का समय दिया था। इसके अलावा शिवसेना के समय माँगने के बाद भी उन्होंने और वक़्त देने से इनकार कर दिया था और बाद में एनसीपी को मंगलवार रात 8.30 बजे तक का समय पूरा होने से पहले ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफ़ारिश केंद्र को भेज दी।