उद्धव और राज ठाकरे दो दशक बाद एक मंच पर साथ आएँगे! मौक़ा है- स्कूलों में ‘हिंदी थोपने’ के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन का। पाँच जुलाई को विशाल रैली की तैयारी है। मराठी अस्मिता की जंग में ठाकरे परिवार की एकता ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है। क्या यह महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल लाएगा?

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे स्कूलों में ‘हिंदी थोपने’ के कथित प्रयासों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के लिए एक साथ आ रहे हैं। इसके लिए मराठी भाषा प्रेमियों को आमंत्रित किया गया है। पहले विरोध-प्रदर्शन को लेकर अलग-अलग तारीख़ें सामने आई थीं, लेकिन बाद में शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत ने इस पर स्थिति साफ़ की और कहा कि यह प्रदर्शन पाँच जुलाई को प्रस्तावित है। 
राज और उद्धव ने गुरुवार को इस मुद्दे पर अलग-अलग विरोध प्रदर्शनों की घोषणा की थी। जहाँ राज ने 6 जुलाई को दक्षिण मुंबई के गिरगांव चौपाटी से 'विराट मोर्चा' की घोषणा की थी, वहीं उद्धव ने शिक्षाविद और एक्टिविस्ट दीपक पवार द्वारा 7 जुलाई को आजाद मैदान में आयोजित होने वाले एक विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। एक ही मुद्दे पर दो अलग-अलग रैलियों की घोषणा ने समर्थकों और जनता के बीच संदेह पैदा कर दिया था। राउत ने कहा कि दोनों नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राज ने उन्हें फोन किया, जिसके बाद साझा विरोध प्रदर्शन आयोजित करने पर चर्चा हुई।

राउत ने आगे कहा, 'जब हम गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे, तब हमें राज के विरोध प्रदर्शन के बारे में नहीं पता था। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया और सुझाव दिया कि मराठी के मुद्दे के लिए दो अलग-अलग विरोध-प्रदर्शन करना सही नहीं होगा और इसे साझा रूप से करना चाहिए। इसके बाद मैंने उद्धव जी से बात की और उन्होंने बिना एक पल गँवाए सहमति जताई और फ़ैसला किया कि साझा विरोध प्रदर्शन 5 जुलाई को होगा।' द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राउत ने यह भी बताया कि समय और स्थान एक-दो दिन में तय कर लिया जाएगा।

क्या है महाराष्ट्र में भाषा विवाद?

महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने के कथित फ़ैसले ने मराठी भाषा और संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता को लेकर एक तीखी बहस छेड़ दी है। अप्रैल 2025 में भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का दावा किया गया। इसके बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर एकजुट होने का फ़ैसला किया। 

शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने इस बारे में अपने सोशल मीडिया पोस्ट में उद्धव और राज ठाकरे की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, 'महाराष्ट्र के स्कूलों में अनिवार्य हिंदी के खिलाफ एक साझा और एकजुट मार्च होगा। ठाकरे ब्रांड है!'

ठाकरे परिवार का एकजुट होना

उद्धव और राज ठाकरे चचेरे भाई हैं। दोनों 2006 में शिवसेना से अलग होने के बाद से अलग-अलग राजनीतिक रास्तों पर चल रहे थे। राज ठाकरे ने मनसे की स्थापना की थी और तब से दोनों नेताओं के बीच वैचारिक और राजनीतिक मतभेद रहे हैं। हालाँकि, हिंदी थोपने के इस मुद्दे ने दोनों को एक साझा मंच पर ला खड़ा किया है। यह पहली बार है जब दो दशकों में ठाकरे परिवार एक साथ किसी आंदोलन में भाग ले रहा है, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया समीकरण बनने की संभावना है।

सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर उत्साह देखा जा रहा है। एक यूजर ने पोस्ट किया, 'महाराष्ट्र की राजनीति में कई साल बाद ऐसा होने वाला है कि दोनों ठाकरे भाई एक साथ एक मंच पर दिखेंगे। ठाकरे परिवार के एक साथ आने से एकनाथ शिंदे से लेकर पूरे बीजेपी खेमे में हलचल मच गई है।'

महाराष्ट्र सरकार ने क्या कहा?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस विवाद को शांत करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि हिंदी शब्द के अनिवार्य उपयोग को हटा दिया गया है। इसके अलावा, शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने राज ठाकरे से मुलाकात कर इस मुद्दे पर चर्चा की। हालांकि, उद्धव और राज ठाकरे ने इस मुद्दे को मराठी अस्मिता से जोड़ते हुए प्रदर्शन का फैसला किया है।

मराठी अस्मिता का सवाल

यह प्रदर्शन मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ठाकरे परिवार की लंबे समय से चली आ रही प्रतिबद्धता को दिखाती है। राज ठाकरे ने पहले भी मराठी अस्मिता के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है, और इस बार उद्धव ठाकरे का उनके साथ आना इस मुद्दे को और बल देता है। जानकारों का मानना है कि यह एकजुटता महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकती है, खासकर जब 2024 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे अलग-अलग लड़े थे।

इस आंदोलन ने भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। उद्धव और राज ठाकरे का यह साझा प्रदर्शन न केवल मराठी भाषा के मुद्दे को उजागर करेगा, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार की एकता को भी मज़बूत कर सकता है।