Bihar Elections 2025: केंद्रीय चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची में बदलाव के लिए नए नियम जारी किए थे। लेकिन आयोग ने सोमवार को आधिकारिक बयान दिया है कि अब किसी को प्रमाण देने की जरूरत नहीं है।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से तीन महीना पहले निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की शुरुआत की। लेकिन उसने सोमवार को नए नियमों पर स्पष्टीकरण जारी किया। आयोग ने पहले कहा था कि घर घर सत्यापन के दौरान लोगों को जन्म स्थान प्रमाणपत्र और जन्मतिथि का प्रमाण देना होगा। अपने पिता का भी जन्म स्थान प्रमाण देना होगा। यही सब शर्ते एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) में भी हैं। कांग्रेस, टीएमसी समेत तमाम विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया और कहा कि मोदी सरकार चुनाव आयोग के जरिए एनआरसी लाना चाहती है। चुनाव आयोग ने 30 जून सोमवार को आधिकारिक तौर पर कहा कि अब किसी प्रमाण को देने की जरूरत नहीं है।
चुनाव आयोग का बयान
आयोग का बयान है कि "2003 की मतदाता सूची में नामांकित 4.96 करोड़ मतदाताओं को कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है। इन 4.96 करोड़ मतदाताओं के बच्चों को अपने माता-पिता से संबंधित कोई अन्य दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है।" कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी और वामपंथी दलों ने बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक तीन महीने पहले मतदाता सूची के चुनाव आयोग के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ का विरोध किया है।विशेष गहन पुनरीक्षण की शुरुआत
बिहार के 38 जिलों में रविवार से 78,000 से अधिक बूथ-स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) ने 7.72 करोड़ मतदाताओं के सत्यापन के लिए घर-घर सर्वे शुरू किया है। यह प्रक्रिया अगले एक महीने तक चलेगी और इसका मकसद मतदाता सूची से अयोग्य नाम हटाना और सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करना है। आयोग ने स्पष्ट किया कि यह "डी-नोवो" प्रक्रिया नहीं है, यानी मतदाता सूची को नए सिरे से नहीं बनाया जा रहा है।
2003 की मतदाता सूची वाले मतदाताओं को राहत
निर्वाचन आयोग ने कहा कि जिन 4.96 करोड़ मतदाताओं के नाम 1 जनवरी 2003 की मतदाता सूची में हैं, उन्हें सिर्फ सत्यापन के लिए एक प्रपत्र (एन्यूमरेशन फॉर्म) भरना होगा। आयोग के मुताबिक उन्हें जन्म तिथि या पते का कोई दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है। आयोग ने इस सिलसिले में अब आधिकारिक बयान दे दिया है। जबकि पहले उसने आधिकारिक रूप से कहा था कि मतदाता को ऐसा प्रमाणपत्र देना होगा। बहरहाल, आयोग ने कहा कि जल्द ही 2003 की मतदाता सूची अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा, ताकि मतदाताओं को प्रासंगिक हिस्सा निकालने में आसानी हो।
नए और 2003 के बाद के मतदाताओं के लिए नियम
इससे पहले आयोग ने आधिकारिक तौर पर कहा था कि जिन मतदाताओं के नाम 2003 की सूची में नहीं हैं, उन्हें अपनी पात्रता साबित करने के लिए 11 सरकारी दस्तावेजों में से एक जमा करना होगा। इनमें जन्म प्रमाण पत्र, नागरिकता की स्थिति, या निवास का प्रमाण शामिल है। 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों को केवल अपनी जन्म तिथि/स्थान का प्रमाण देना होगा, जबकि 1987 से 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने और एक माता-पिता का, और 2004 के बाद जन्मे लोगों को अपने और दोनों माता-पिता का प्रमाण देना होगा। विपक्ष और कई जनसंगठनों ने इन्हीं नियमों पर आपत्ति की थी।
विपक्ष की आलोचना और एनआरसी की आशंका
विपक्षी दलों, विशेष रूप से इंडिया गठबंधन, ने इस अभियान के समय पर सवाल उठाए हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया गरीब, दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों के मतदाताओं को वंचित करने की साजिश है। उन्होंने जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों की मांग को अल्पसंख्यक और वंचित समुदायों के लिए चुनौती बताया। सीपीआई(एम) के नीलोत्पल बसु और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसे मुस्लिम मतदाताओं को हटाने का "छिपा प्रयास" करार दिया। ओवैसी ने कहा कि चुनाव आयोग एनआरसी लाने की साजिश कर रहा है।
चुनाव आयोग की लीपापोती
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यह अभियान सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करने और अयोग्य नामों को हटाने के लिए है। उन्होंने आश्वासन दिया कि कोई भी पात्र मतदाता वंचित नहीं होगा। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रारंभिक चरण में बिना दस्तावेज वाले मतदाताओं के नाम मसौदा सूची में शामिल किए जाएंगे और उन्हें बाद में प्रमाण जमा करने का मौका मिलेगा। लेकिन अब जब आयोग सूत्रों के हवाले से कह रहा है कि नियमों में ढील दी गई है लेकिन सीईसी ज्ञानेश कुमार यही बात आधिकारिक तौर पर नहीं कह रहे हैं।
आयोग ने 1,54,977 बूथ-स्तरीय एजेंट्स (बीएलए) नियुक्त किए हैं, जो बीएलओ के साथ मिलकर काम करेंगे। प्रत्येक प्रपत्र पर यूनिक क्यूआर कोड होगा, और दस्तावेज ईसीआई की वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे, जिन्हें केवल अधिकृत अधिकारी ही देख सकेंगे। 5.74 करोड़ पंजीकृत मोबाइल नंबरों पर एसएमएस के जरिए जानकारी दी जा रही है।
मानसून सत्र में उठेगा मामला
विपक्ष नेवोटरलिस्ट विवाद को संसद के मानसून सत्र में उठाने की योजना बनाई है। कुछ नेताओं ने कानूनी कार्रवाई की भी धमकी दी है। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया बिहार के बाद अन्य राज्यों में भी लागू होगी। इसलिए विपक्ष और भी हमलावर है। बिहार में 7.89 करोड़ मतदाता हैं, और अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह अंतिम पुनरीक्षण होगा।
बिहार में महाराष्ट्र जैसी आशंका
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव 2024 के बीच के मात्र छह महीनों में अकेले नागपुर साउथ वेस्ट सीट – जो बीजेपी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की परंपरागत सीट है – पर 29,219 नए वोटर जोड़े गए। यानी औसतन हर दिन 162 वोटर। यह वृद्धि 8.25 प्रतिशत है, जो चुनाव आयोग की तय 4 फीसदी सीमा से दुगनी है। अगर यह सीमा पार होती है तो वहां मतदाताओं के अनिवार्य सत्यापन की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
नेता विपक्ष राहुल गांधी ने मतदाता सूची में हेराफेरी करके महाराष्ट्र चुनाव लूटने का आरोप लगाया है। राहुल ने लिखा था-महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में, मतदाता सूची में केवल 5 महीनों में 8% की वृद्धि हुई। कुछ बूथों पर 20-50% की वृद्धि देखी गई। बीएलओ ने अज्ञात व्यक्तियों द्वारा वोट डालने की सूचना दी। मीडिया ने बिना सत्यापित पते वाले हजारों मतदाताओं का पता लगाया। और चुनाव आयोग? चुप - या मिलीभगत। ये अलग-अलग गड़बड़ियाँ नहीं हैं। यह वोट चोरी है। कवर-अप ही कबूलनामा है। इसलिए हम डिजिटल मतदाता सूची और सीसीटीवी फुटेज को तुरंत जारी करने की मांग करते हैं।
बिहार को लेकर नेता विपक्ष की आशंका
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में ‘महाराष्ट्र की मैच फिक्सिंग’ दोहराए जाने का डर जताया है। राहुल गांधी ने 7 जून को इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था, “…क्योंकि महाराष्ट्र की यह मैच फिक्सिंग अब बिहार में भी दोहराई जाएगी और फिर वहां भी, जहां-जहां बीजेपी हार रही होगी।” राहुल गांधी ने महाराष्ट्र की मैच फिक्सिंग के बारे में और भी कई बातें लिखी थीं। उन्होंने बिहार के बारे में जो कही थी उसे अब पूरा विपक्ष कह रहा है। राहुल ने ‘चुनाव की चोरी का पूरा खेल!’ शीर्षक से अपने पोस्ट में लिखा था कि 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकतंत्र में धांधली का ब्लूप्रिंट था। उन्होंने चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाले पैनल पर कब्जा का आरोप लगाया था।
राजद के नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल का कहना है कि उन्हें आशंका है कि इस पुनरीक्षण के ज़रिए मतदाता सूची से अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं का नाम हटाने के लिए यह षड्यंत्र हो रहा है। उनका कहना है कि पुनरीक्षण के लिए केवल 26 दिन का समय दिया गया है और इतने कम समय में ग़रीब और कमजोर लोगों के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ जुटा पाना संभव नहीं होगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव रामनरेश पांडे का भी यही कहना है कि चुनाव आयोग विशेष मतदाता पुनरीक्षण के बहाने अनुसूचित जाति-जनजाति और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम सूची से हटा देगा। इनका कहना है कि यह गहन पुनरीक्षण एक माह में संभव नहीं है।
मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव ललन चौधरी का कहना है कि राजनीतिक दलों को विश्वास में लिए बिना ऐसे कार्यक्रम की शुरुआत अलोकतांत्रिक और अव्यावहारिक है। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट में नाम बनाए रखने के लिए अपनी नागरिकता के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी प्रमाण पत्र देना होगा। उनका यह भी कहना है कि बिहार में भूमि सर्वेक्षण इसलिए रोक दिया गया कि सबके पास दस्तावेज नहीं है तो वहां की गरीब जनता माता-पिता के जन्म के कागजात कैसे जुटाएगी?
भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि इस पुनरीक्षण का पैमाना और तरीका असम में हुए एनआरसी अभियान जैसा है। उनका कहना है कि वहां इस प्रक्रिया को पूरा करने में 6 वर्ष लगे तो भी सरकार ने एनआरसी को अंतिम सूची के रूप में स्वीकार नहीं किया। उन्होंने चिंता जताई कि यह अभियान भारी अव्यवस्था, बड़े पैमाने पर गलतियों व नाम काटे जाने का कारण बनेगा।