छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा आलाकमान (मोदी-अमित शाह) की सधी हुई रणनीति ने उत्तर भारत के खांटी हिन्दी बेल्ट यूपी-बिहार की ओबीसी राजनीति में हलचल मचा दी। राजनीतिक पंडितों को इसका राजनीतिक अर्थ समझने में रत्ती भर देर नहीं लगी कि मोहन यादव का चयन यूपी-बिहार की ओबीसी राजनीति को प्रभावित करने के लिए हुआ है। खासकर जहां अखिलेश यादव और लालू-तेजस्वी यादव के राजनीतिक वर्चस्व का बोलबाला है। वैसे भी जब यूपी-बिहार से दिल्ली में प्रधानमंंत्री की कुर्सी तय होती हो तो भाजपा मौके को क्यों नहीं भुनाएगी।