Gadkari warns top leadership:केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी सरकार और पार्टी की टॉप लीडरशिप को चेतावनी दी है। इसने बीजेपी के अंदर फिर बहस छेड़ दी है। क्या यह आरएसएस प्रमुख के हमले का अगला चरण है।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी सरकार के टॉप लीडरशिप पर अप्रत्यक्ष ढंग से जबरदस्त हमला किया है। उन्होंने सत्ता, धन और ज्ञान के अहंकार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि जो लोग शक्ति, धन, ज्ञान या सुंदरता प्राप्त करते हैं वे अक्सर अहंकारी हो जाते हैं। नागपुर में शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान शिक्षकों को संबोधित करते हुए गडकरी ने नेतृत्व और सम्मान के महत्व पर जोर दिया। उनके इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में नेतृत्व को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं और कटाक्ष जन्म दिए हैं। इसे आरएसएस के हमले का ही विस्तार माना जा रहा है।
चंद दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि 75 वर्ष ऐसी उम्र है जब इंसान को सक्रियता से रुक जाना चाहिए। भागवत की इस टिप्पणी को पीएम मोदी के रिटायरमेंट से जोड़कर देखा गया। सितंबर 2025 में मोदी 75 साल के हो जाएंगे। बीजेपी में इससे पहले कई नेताओं को 75 साल की उम्र में रिटायर कर दिया गया है।
गडकरी ने कहा, "सम्मान मांगा नहीं जाता, इसे हासिल किया जाता है। अगर आप इसके लायक हैं, तो आपको यह मिलेगा। जिस व्यक्ति को शक्ति, धन, ज्ञान और सुंदरता का अहंकार होता है, वह किसी के काम नहीं आता।" उन्होंने विश्व इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि जिन लोगों को जनता ने स्वीकार किया, उन्हें दूसरों पर खुद को थोपने की जरूरत नहीं पड़ी। ऐसे लोगों को जनता ने स्वीकार किया। उनके इस बयान को कई लोगों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी के रूप में देखा।
गडकरी ने नेताओं के बीच इस अहंकार पर दुख जताया। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, "मैं सबसे होशियार हूँ। मैं 'साहब' बन गया हूँ... मैं दूसरों को कुछ गिनता ही नहीं।" उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा अहंकार सच्चे नेतृत्व को कमज़ोर कर देता है। गडकरी की इस टिप्पणी को समझना टेढ़ी खीर नहीं है। बीजेपी में साहब शब्द का इस्तेमाल किसके लिए किया जाता है, यह कोई छिपी बात नहीं है।
पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता नितिन राउत ने गडकरी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "उनका बयान स्पष्ट रूप से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर इशारा करता है, जो हाल के दिनों में अहंकारी और आत्मकेंद्रित हो गए हैं।" राउत ने गडकरी के बयान को एक तरह की 'स्मार्ट स्कूलिंग' करार देते हुए इसे नेतृत्व के लिए सबक बताया।
मोदी पर दोतरफा हमला
आरएसएस और मोदी के बीच रिश्ते लंबे समय से खटास भरे चल रहे हैं। यह खबरें अब आम हैं कि आरएसएस अब मोदी की जगह नितिन गडकरी या योगी आदित्यनाथ को नेतृत्व देना चाहता है। गडकरी लंबे समय से आरएसएस के नज़दीक हैं। पीएम के लिए उनका नाम बाकायदा संघ ने ही चलाया था। हालांकि मोदी और अमित शाह की जोड़ी योगी आदित्यनाथ को अपने नेतृत्व के लिए खतरा मानती रही है। क्योंकि योगी आदित्यनाथ की छवि एक कट्टर हिन्दू नेता के रूप में बन चुकी है जो आरएसएस की भावी रणनीति से पूरी तरह मेल खाती है। लेकिन योगी में नेतृत्व क्षमता की कमी है। इसके मुकाबले नितिन गडकरी को कुशल नेतृत्वकर्ता और विपक्ष के बीच भी सर्वमान्य की छवि बनाए रखने वाले नेता के रूप में है। भारतीय राजनीति के हिसाब से गडकरी जैसे नेता इस पद के लिए आरएसएस के सर्कल में फिट माने जाते हैं। गडकरी की टिप्पणी को अब भागवत की टिप्पणी के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है। यानी आरएसएस अब योगी की जगह गडकरी पर दांव लगाने को तैयार है।
शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार पर सख्त टिप्पणी
गडकरी ने अपने संबोधन में शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, "शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है। शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर अन्य कार्यों के लिए रिश्वत मांगी जाती है। मैं जानता हूं कि शिक्षा विभाग के अधिकारी क्या करते हैं।"
टीम वर्क और सम्मान पर जोर
गडकरी ने अपने भाषण में टीम वर्क के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सच्चा नेतृत्व वही है जो दूसरों का सम्मान करता है और सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देता है। उनके बयानों ने न केवल राजनीतिक चर्चा को हवा दी, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता पर भी ध्यान आकर्षित किया।
आरएसएस प्रमुख का बयान
नागपुर में इसी हफ्ते एक पुस्तक विमोचन समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि पचहत्तर साल की उम्र के बाद रिटायर हो जाना चाहिए। वो मोरोपंत पिंगले के जीवन और उनके योगदान की चर्चा कर रहे थे। उन्होंने पिंगले के नजरिए को रखते हुए कहा कि 75 वर्ष की आयु एक ऐसी सीमा है, जहां व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों को सौंप देना चाहिए। भागवत ने इसे पिंगले की विनम्रता और अगली पीढ़ी को अवसर देने की उनकी सोच के रूप में पेश किया। लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले गए।
हाल में बीजेपी में ऐसी सुगबुगाहट रही है कि 75 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद नेता सक्रिय राजनीति से रिटायर हो जाते हैं और नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपते हैं। समझा जाता है कि इस नियम के तहत लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे पार्टी के दिग्गज नेताओं को सक्रिय राजनीति से हटा दिया गया था। 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद संभाला, तब आडवाणी और जोशी जैसे नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया और उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया। इसलिए इसे बीजेपी में एक औपचारिक रिटायरमेंट उम्र के रूप में देखा गया।
बहरहाल, गडकरी के इस बयान पर सोशल मीडिया पर भी खासी हलचल है। जहां कई लोगों ने इसे सत्ता और नेतृत्व के दुरुपयोग के खिलाफ एक साहसिक टिप्पणी माना। यह बयान न केवल भाजपा के आंतरिक उठापटक को बताता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि सत्ता का इस्तेमाल जनकल्याण के लिए होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत अहंकार को बढ़ाने के लिए।