आर्थिक मंदी का असर अब किराना दुकानों तक पहुँचने लगा है, जहाँ लोग पहले से कम सामान खरीद रहे हैं, हालांकि वे ज़्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था में मंदी के बीच अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ भी भारत का अनुमानित जीडीपी विकास दर घटाने वाला है।
हाल ही में कर उगाही कम होने के बावजूद अर्थव्यवस्था में जान फूँकने के लिए बड़े व्यवसायी घरानों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की गई थी, लेकिन अब उसी कर उगाही को बढ़ाने के लिए सरकार अफ़सरों को टारगेट दे रही है।
ऐसे समय जब सरकार बार-बार कह रही है कि अर्थव्यवस्था में कुछ भी गड़बड़ नही है, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इससे जुड़ा थोक मूल्य सूचकांक नवंबर में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया। यह पिछले 71 महीने के उच्चतम स्तर पर है।
पहले प्याज और अब दूध की कीमतें बढ़ने से सवाल उठता है कि क्या उपभोक्ता खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, जो बदतर आर्थिक स्थिति के लिए चिंता की बात है?
सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीक रहे अरविंद सुब्रमणियन ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था आईसीयू पहुँच चुकी है।
सरकार चाहे जो दावे करे, सच यह है कि देश की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। अब महँगाई दर बढ़ कर तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।
रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आर्थिक मंदी की बात करते हुए मोदी सरकार पर ज़ोरदार हमला किया और कहा कि इसके लिए ख़ुद मोदी और उनका कार्यालय ज़िम्मेदार है।
सरकारी रियायतों के बावजूद ऑटो उद्योग में मंदी बरक़रार है, इसका सबूत यह है कि इसके कल-पुर्जे बनाने वाले उद्योग में 1 लाख लोगों की नौकरी चली गई है।
प्याज के दाम कई जगहों पर 180 रुपये तक पहुँच गए? कई लोग इस पर प्रधानमंत्री के 'न खाऊँगा न खाने दूँगा' नारे को लेकर तंज कस रहे हैं। आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या अर्थव्यवस्था की मार की वजह से है? क्या ऐसी अर्थव्यवस्था से बेरोज़गारी और नहीं बढ़ेगी? सत्य हिंदी पर देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
बहुत जल्द ही आर्थिक मंदी देश के शासन में राजनैतिक लड़ाई का रूप लेने जा रही है। मंदी से राजस्व वसूली में आई गिरावट के बाद केंद्र ने राज्यों की हिस्सेदारी में कटौती शुरू कर दी है।
सरकारी एजेन्सी सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस (सीएसओ) ने बीते दिनों इस साल की दूसरी छमाही के लिए जीडीपी वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत कर दी थी। अब आरबीआई ने इसका अनुमान 5 प्रतिशत लगाया है।
सरकार भले ही यह दावा करे कि देश की आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक है, आर्थिक संकट नहीं है। पर ख़बर यह है कि 5 साल में गाँवों में ग़रीबी बढ़ी है।
ख़राब होती आर्थिक स्थिति की वजह से जीएसटी राजस्व की उगाही लक्ष्य से काफ़ी कम है, लिहाज़ा कुछ वस्तुओं पर टैक्स बढ़ सकता है।
क्या वाकई भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी की शुरुआत अब तक नहीं हुई है, जैसा वित्त मंत्री दावा करती हैं? क्या कहते हैं जीडीपी और उत्पादन के आँकड़े?
सरकारी एजेन्सी जीडीपी को 6 साल के न्यूनतम स्तर पर बता रही है, सत्तारूढ़ दल के सदस्य ने संसद में कहा, यह कोई बाइबल, रामायण नहीं।
सरकार जो 4.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्ध दर के दावे कर रही है, वह भी खोखला है, क्योंकि इसका बड़ा हिस्सा जिस निजी क्षेत्र से आता है, उसकी विकास दर 3.05 प्रतिशत ही है।
देश की आर्थिक स्थिति का हाल इतना बुरा हो चुका है कि अब सरकारी रियायतों और सुधारों का भी असर नहीं पड़ रहा है। ऑटो उद्योग को सरकारी छूट देने के बावजूद बिक्री गिरना जारी है।
देश के आर्थिक हालात को लेकर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर निशाना साधा है।
बजाज ग्रुप के चेयरमैन राहुल बजाज ने गृह मंत्री अमित शाह के सामने लिंचिंग से लेकर कई मामलों तक का जिक्र किया है।
आर्थिक बदहाली से परेशान जनता दल युनाइटेड का कहना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार मनमोहन सिंह से सलाह ले और सहयोगी दलों से राय मशविरा करे।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि केवल आर्थिक नीतियों को बदलने से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद नहीं मिलेगी।
सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रमण्यण ने कहा है कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद अभी भी मजबूत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जीडीपी वृद्धि दर अगली तिमाही में बढेगी।
कोर औद्योगिक क्षेत्र में विकास दर शून्य से नीचे ही है। यह पहले से बदतर हुआ और -5.2 से गिर कर -5.8 प्रतिशत पर जा पहुँचा।
शुक्रवार को जारी आँकड़ों के मुताबिक़, दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि की दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई।
सरकार ने संसद में यह माना है कि बीते 5 साल में बेरोज़गारी की दर दूनी हो गई है और गाँवों में इसमें 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।