क्या केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों में राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रही है और क्या वह चाहती है कि विश्वविद्यालय भी इस विचारधारा के प्रचारक के रूप में काम करें?
‘दृष्टि’ के संस्थापक और अध्यापक डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति ने वाल्मीकि रामायण और महाभारत के प्रसंगों को उद्धृत भर किया था। लेकिन बिना उनकी पूरी बात सुने भावनाएं आहत होने के नाम पर उन्हें निशाने पर ले लिया गया। क्या उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है?
हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों का अलग-अलग फैसला सामने आया है। इस फैसले के बीच महात्मा गांधी के डरबन में अदालत जाने और यूरोपीय मैजिस्ट्रेट के द्वारा उनसे पगड़ी उतारने की बात वाले प्रसंग को याद करना जरूरी है।
2014 में 2 अक्टूबर को शुरू किया गया स्वच्छता अभियान क्या सिर्फ नाटक बनकर रह गया है? गाँधी के नाम पर झूठ और पाखंड करना उनकी स्मृति का सबसे बड़ा अपमान है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ मुसलिम बुद्धिजीवियों की मुलाकात के क्या मायने हैं? क्या संघ से इस तरह की बातचीत होती रहनी चाहिए?
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से क्या पार्टी को मजबूती मिलेगी। क्या यह वास्तव में दूरियों को खत्म कर भारत को जोड़ पाएगी?
क्या गोर्बाचेव लेनिन के मुक़ाबले अधिक क्रांतिकारी थे। लेनिन जो कर रहे थे, वह लोकप्रिय था। गोर्बाचेव एक अप्रिय लेकिन जनता के लिए बेहतर काम कर रहे थे।
कविता कृष्णन ने जिन सवालों को उठाया, उन सवालों को उठाने के लिए उन्हें पार्टी से अलग होना पड़े, इसके लिए पार्टी को भी अपने बारे में सोचने की ज़रूरत है।
गुजरात सरकार के द्वारा बिलकीस बानो के दोषियों को रिहा करने के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठ रहे थे। लेकिन क्या प्रधानमंत्री ने चुप्पी तोड़ दी है और सबको जवाब दे दिया है।
क्या जेएनयू कुलपति का स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए केंद्रीय प्रवेश परीक्षा की पद्धति में बदलाव की मांग करना किसी तरह का दुस्साहस है?
स्वतंत्रता का भाव न्याय और समानता के भाव से अनिवार्य रूप से जुड़ा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या हम अपनी आज़ादी की रक्षा कर पा रहे हैं?
राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की जीत से क्या यह संदेश जाता है कि भाजपा और संघ ने सामाजिक न्याय का जाप करने वाली पार्टियों को उन्हीं के मैदान में पछाड़ दिया है।
भगवान गणेश की कथा को ब्रह्मांड में पहली प्लास्टिक सर्जरी की घटना बताना या फिर सुश्रुत को पहला शल्य चिकित्सक बताना, क्या इन बातों के पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क है।
क्या बोलते वक्त इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि वह वहां मौजूद लोगों को कैसी लगेगी? या इस पर ध्यान दिए बिना ही आपको खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए।
पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणियों के लिए जब सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को फटकार लगाई तो आखिर क्यों दक्षिणपंथियों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया?
तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी क्या 2002 में हुए गुजरात दंगों में हिंसा का शिकार हुए मुसलमानों की आवाज़ उठाने की वजह से हुई है?
अग्निपथ योजना को लेकर नौजवानों ने बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की है। लेकिन यह समझना जरूरी है कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। क्यों वे इस योजना के पूरी तरह खिलाफ हैं?
बीजेपी की कश्मीर नीति किसके हित में है? कश्मीरी पंडितों के? मुसलमानों के? क्या वह कभी भी किसी के हित में रही? ताक़तवर दमनतंत्र के बावजूद कश्मीर में सामान्य जीवन क़ायम क्यों नहीं किया जा सका है?
बीजेपी प्रवक्ता ने एक टीवी डिबेट में पैगंबर के लिए विवादित टिप्पणी की। क्या ऐसा मुसलमानों को अपमानित करने के लिए किया गया? अगर हां, तो फिर मुसलमान इसे लेकर नाराज़ क्यों न हों?
मध्य प्रदेश में भँवरलाल जैन की पीट-पीट कर हत्या क्यों की गई? इस शक में कि वह मुसलिम थे? क्या एक समुदाय विशेष से होना अपराध है? इस पर सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया कैसी है?
तमिलनाडु के मंत्री के पानी पूरी वाले बयान को लेकर एक बार फिर हिंदी को लेकर शोर हुआ है और लोग उनका विरोध कर रहे हैं। लेकिन क्या मंत्री का विरोध करने वालों ने उनके बयान को समझने की कोशिश की?
आशरीन सुल्ताना से शादी करने पर नागराजू की हत्या का मुसलिम समाज ने निंदा की। वे समर्थन में नहीं आए, बल्कि विरोध किया। लेकिन क्या अब नागराजु की हत्या का इस्तेमाल मुसलिम विरोधी नफ़रत के लिए नहीं किया जा रहा है?
क्या हिंदी को पूरे देश पर थोपने की कोशिश की जा रही है? क्या इस भाषा का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है? अगर ऐसा है तो यह निश्चित रूप से बेहद चिंता की बात है।
बीते दिनों कई राज्यों में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं इसी ओर इशारा करती हैं कि समाज से सहानुभूति को खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। भारत के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।
हिंसा के दुष्चक्र में फँस जाने के बाद इससे निकलने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। क्या भारत इस दुष्चक्र से अभी भी निकल सकता है?
भाषा जोड़ती है तो वह तोड़ती भी है। यह अहंकार कि हम ही भारत हैं, हिंदी को जोड़ने की जगह तोड़ने वाली जुबान बना देता है।