मिखाइल गोर्बाचेव दफ़नाए जा चुके हैं। इसके साथ ही क़ब्रों में सो रही यादें ज़िंदा हो उठीं। समाजवादी विश्व की, जो अब एक भूला हुआ सपना जान पड़ता है। उस दर्द की, जो अनेकानेक के मन में आज से कोई 30 साल पहले समाजवादी विश्व और सोवियत संघ के पतन के चलते पैदा हुआ था। 30 साल एक पीढ़ी के गुजर जाने और दूसरी के पाँव जमा लेने के लिए काफ़ी हैं। इन दोनों के लिए गोर्बाचेव के मायने एक नहीं। या एक पीढ़ी के लिए, जो व्लादिमीर पुतिन और रूस को ही साथ-साथ देखती थी या है, गोर्बाचेव संभवतः सिर्फ़ एक शब्द है। उसकी ध्वनि से कोई स्मृति नहीं जगती, कोई अर्थ पैदा नहीं होता।
मिखाइल गोर्बाचेव ने बनाया था जनतंत्र के लिए रास्ता
- वक़्त-बेवक़्त
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- 12 Sep, 2022

शायद ही कोई और ऐसी शख़्सियत हो जिसने बिना रक्तपात के दुनिया का भौगोलिक और राजनीतिक नक़्शा ही नहीं बल्कि जिसने करोड़ों लोगों के दुनिया को देखने और समझने का तरीक़ा भी बदल दिया हो। उस मामले में गोर्बाचेव की भूमिका बीसवीं सदी की शुरुआत में लेनिन से कमतर नहीं मानी जाएगी।
शायद ही कोई और ऐसी शख़्सियत हो जिसने बिना रक्तपात के दुनिया का भौगोलिक और राजनीतिक नक़्शा ही नहीं बल्कि जिसने करोड़ों लोगों के दुनिया को देखने और समझने का तरीक़ा भी बदल दिया हो। उस मामले में गोर्बाचेव की भूमिका बीसवीं सदी की शुरुआत में लेनिन से कमतर नहीं मानी जाएगी।
लेकिन लेनिन अगर एक समाजवादी सोवियत संघ के संस्थापक के तौर पर सफल नेता माने गए हैं तो वहीं गोर्बाचेव उस ‘महान’ स्वप्न को भंग होने से न रोक पाने के चलते असफल नेता के रूप में याद किए जाते हैं। लेकिन यह भी शायद प्रायः साम्यवादियों की दुनिया की प्रतिक्रिया है।