loader

तीस्ता जेल में हैं तो क्या हम आज़ाद हैं? 

जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद जो हंटर कमीशन बना उसमें जनरल डायर से जिस शख्स ने तीखी जिरह की, उनका नाम चिमनलाल सीतलवाड़ था। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें इसके लिए जेल में नहीं डाल दिया था। यह संयोग ही है कि तीस्ता उनकी प्रपौत्री हैं। वही काम आज़ाद हिंदुस्तान में करने के लिए जो उनके प्रपितामह ने किया, वे जेल में डाल दी गई हैं। 
अपूर्वानंद

इसमें कोई संदेह नहीं बचा रहना चाहिए कि भारत में आखिरी निबटारे की शुरुआत हो चुकी है। यह कितना लंबा और कितना यातनापूर्ण होगा, यह कहना कठिन है। लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी के बाद भी इसकी गंभीरता से इनकार करने का मतलब है खुद को भुलावे में रखना। लेकिन यह आखिरी निबटारा क्या है? 

यह अंग्रेज़ी के ‘फाइनल सॉल्यूशन’ का तर्जुमा है। इन दो शब्दों का इस्तेमाल बहुत जिम्मेवारी से ही किया जा सकता है। आखिरकार हिटलर के नाज़ियों ने यहूदियों के संहार के आखिरी और फैसलाकुन चरण के लिए इनका प्रयोग किया था। फिर भारत में इनका क्या संदर्भ है?

यह आखिरी निबटारा भारत की मुसलमान और ईसाई आबादी के लिए तो है ही, यह उनके लिए भी है जो भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की रक्षा के लिए कानून के रास्ते का इस्तेमाल करना जानते हैं और जो इसके लिए भारत के लोगों को संविधान द्वारा दिए गए उनके अधिकारों के प्रयोग में उनकी मदद भी करते हैं। 

ताज़ा ख़बरें

सिविल सोसाइटी का खात्मा?

अगर इस दूसरे समुदाय को, जिसे किसी बेहतर शब्द के अभाव में सिविल सोसाइटी कहा जाता है, खत्म कर दिया जाए या नाकाम कर दिया जाए तो पहला काम आसान हो जाता है। इस समाज या समुदाय में वे प्रमुख हैं जिन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता कहा जाता है। ये वे काम करते हैं जो राजनीतिक दल नहीं करते। 

जैसे असम में हुए नेल्ली का संहार हो या भागलपुर का मुसलमानों का संहार या 1984 का सिखों का संहार, ये मानवाधिकार समूह ही इन वाकयों की रिपोर्ट तैयार करने में आगे रहे जिससे मालूम हुआ कि वास्तव में क्या हुआ था और फिर जो हिंसा के शिकार हुए, उन्हें इंसाफ हासिल करने के लिए उनकी मदद करने में भी। 

गाँधी की चंपारण यात्रा

वे राज्य की संवैधानिक संस्थाओं को जवाबदेह बनाने का काम करते हैं। आप कह सकते हैं कि ये समाज और राज्य के बीच एक कड़ी हैं। यह परंपरा कोई इधर नहीं स्थापित की गई है। महात्मा गाँधी की चंपारण यात्रा एक तथ्य संग्रह यात्रा ही थी। वे उन किसानों की शिकायत पर वहाँ गए थे जो निलहे साहबों के अत्याचार और शोषण के शिकार थे। अंग्रेज़ सरकार ने उनसे वही कहा था जो अभी तीस्ता सीतलवाड़ से कहा जा रहा है। यह कि आपका यहाँ क्या काम है। 

फिर भी गाँधी ने वापस जाने से इनकार किया और वहाँ के हालात पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। क्या यह आश्चर्य की बात है कि तत्कालीन अंग्रेज़ हुकूमत ने गाँधी की उस रिपोर्ट पर उनसे संवाद भी किया और कुछ कार्रवाई भी की? क्या यह अभी संभव है? यही जालियाँवाला बाग के हत्याकांड के बाद भी हुआ। 

जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद जो हंटर कमीशन बना उसमें जनरल डायर से जिस शख्स ने तीखी जिरह की, उनका नाम चिमनलाल सीतलवाड़ था। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें इसके लिए जेल में नहीं डाल दिया था। यह संयोग ही है कि तीस्ता उनकी प्रपौत्री हैं। वही काम आज़ाद हिंदुस्तान में करने के लिए जो उनके प्रपितामह ने किया, वे जेल में डाल दी गई हैं। 

मानवाधिकार भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की एक मुख्य चिंता रही है। बल्कि स्वाधीनता या स्वराज का मतलब मात्र एक विदेशी हुकूमत की जगह भारतीयों की हुकूमत नहीं है। वह एक ऐसा निजाम है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को उसका मानवाधिकार हासिल होगा। इसका अर्थ यह है कि राज्य उसके आगे पाबंद है, वह राज्य के आगे नहीं। राज्य को उसके प्रति जवाबदेह होना है। 

Teesta Setalvad arrested by Gujarat police - Satya Hindi

जैसा महाभारत ने ही कहा है कि सत्ता को यह पता होता है कि धर्म क्या है लेकिन उस ओर उसकी प्रवृत्ति नहीं होती। उसी तरह उसे मालूम है कि अधर्म क्या है लेकिन उससे उसकी निवृत्ति नहीं है। सहज ही अधर्म की तरफ जाने से रोकने और धर्म का स्मरण दिलाने का काम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का है। 

अदालतों की भूमिका 

माना जाता है कि इस काम में सबसे बड़े सहायक न्यायालय हैं। वे राज्य की आत्मा का काम कर सकते हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता भी उनके सहयोगी हैं। इसीलिए आम तौर पर अदालतें मानवाधिकार समूहों की बात ध्यान से सुनती हैं। क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि पुलिस और प्रशासन प्रायः सत्य से विरत होते हैं। सामान्य अनुभव है और वह संभवतः भारतीय पुलिस और प्रशासन के औपनिवेशिक इतिहास के कारण है कि वे प्रायः जनता के विरुद्ध ही होते हैं। उसमें भी जो कमजोर हैं, उनके और खिलाफ। 

भारत के थानों में औरत, दलित, आदिवासी, मुसलमान हमेशा संदेह की नज़र से देखे जाते हैं। 

बलात्कार की शिकार औरत हो या पीड़ित दलित, 90% आशंका इसकी है कि उनकी शिकायत न सुनी जाएगी, न उसपर कार्रवाई होगी। बल्कि उलटे उन्हीं को प्रताड़ित किया जाएगा। इसी जगह महिला अधिकार समूहों या दलित अधिकार समूहों की भूमिका महत्वपूर्ण हो उठती है। 

आश्चर्य नहीं कि दुनिया के प्रायः हर देश में ताकतवर समूह या लोग मानवाधिकार समूहों को हिकारत की नज़र से देखते हैं। इस्राइल हो या पाकिस्तान, मानवाधिकार समूह अनेक प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति में काम करते हैं। 

वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों की हिफाजत करते हैं, इसलिए बहुसंख्यक समूह भी उन्हें अपना दुश्मन मानते हैं। 

एक प्रकार से अदालतों की मदद से ये समूह राज्य पर अंकुश लगाने का काम करते हैं। लेकिन जब राज्य का चरित्र बदल जाए, वह सर्वसत्तावादी हो और साथ ही बहुसंख्यकवादी भी तो अदालतें भी बदलने लगती हैं।

जर्मनी में हिटलर का साथ अदालतों ने दिया था। भारत में भी भारतीय जनता पार्टी के 2014 में शासन में आने के बाद से अदालतों में बहुसंख्यकवादी रुझान प्रबल से प्रबलतर होता चला गया है। वह बाबरी मस्जिद की जमीन को मंदिर के लिए राम के मित्रों या अभिभावकों के हवाले कर देना हो या अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के संघीय सरकार के फैसले की समीक्षा न करने का मामला हो या नागरिकता के कानून की समीक्षा से इनकार हो, स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक बहुसंख्यकवादी रवैया अख्तियार कर लिया है। वह और भी साफ तब हुआ जब उसने कर्नाटक की हिजाब पहनने वाली छात्राओं की याचिका सुनने से इनकार कर दिया। 

एक अवस्था है जिसमें अदालत अल्पसंख्यक अधिकार को लेकर उदासीन रहती है। दूसरी अवस्था वह है जिसमें वह खुद उन अधिकारों के अपहरण के रास्ते सुझाती है। जब वह राज्य को हथियार थमाती है कि वह उनसे हमला करे। 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की प्रताड़ना

तीस्ता की गिरफ़्तारी से साफ है कि अब सर्वोच्च न्यायालय उस अवस्था में आ गया है जिसमें वह राज्य को रास्ते दिखला रहा है कि किस प्रकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया जाए। तीस्ता सीतलवाड़ अपने परदादा की तरह ही मानवाधिकार की पैरोकार हैं। 

2002 में गुजरात में मुसलमान विरोधी हिंसा के बाद वे हिंसा के शिकार मुसलमानों की कानूनी और दूसरी किस्म की मदद करती रही हैं। चूँकि गुजरात सरकार इसके खिलाफ है, इसलिए तीस्ता का सामना राज्य सरकार से भी हुआ है।
राज्य सरकार ने एकाधिक प्रयास किए हैं कि तीस्ता को किसी तरह गिरफ्तार किया जाए। उनकी गिरफ़्तारी पर सर्वोच्च न्यायालय ने ही अब तक रोक लगा रखी है। अब लेकिन हालात बदल चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय चाहता है कि उनपर कानूनी कार्रवाई हो और उसकी बात गुजरात पुलिस ने फौरन सुनी है। 
Teesta Setalvad arrested by Gujarat police - Satya Hindi
क्या अदालत तीस्ता से नाराज है कि उन्होंने ज़किया जाफरी की मदद क्यों की? ज़किया के पति की 2002 की सामूहिक हिंसा में हत्या की गई थी। इसे राज्य सरकार ने भीड़ का स्वतः स्फूर्त क्रोध का नतीजा बतलाया था। 2002 की सामूहिक हिंसा के पीछे एक साजिश थी, यह ज़किया और तीस्ता का आरोप है। यह सिर्फ उनका आरोप नहीं है। खुद सर्वोच्च न्यायालय यह पहले कह चुका है। वह राज्य सरकार को आज का नीरो बतला चुका है। 
वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ज़किया एक बुजुर्ग महिला हैं। क्या तीस्ता ने उनको सिखा-पढ़ाकर तैयार किया? क्यों तीस्ता 20 साल गुजर जाने के बाद भी पीछे नहीं हटीं? 

क्या 20 साल तक न्याय की खोज अपराध है? सर्वोच्च न्यायालय की मानें तो हाँ! वह जुर्म है। तीस्ता इंसाफ की इस खोज के जुर्म के चलते एक बहुसंख्यकवादी राज्य और न्यायालय के कारण जेल में हैं। वे जेल में हैं तो क्या हम आज़ाद हैं?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अपूर्वानंद
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें