बीजेपी और आरएसएस की शिकायत रही है कि वामपंथी इतिहासकारों ने देश के इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया है। लेकिन अब बीजेपी के नेतृत्व वाली भारत सरकार की संस्था पीआईबी ने 1857 की क्रांति का इतिहास बदलने की कोशिश की। जानिए पूरी कहानी।
पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता डॉ उदित राज अपने इस लेख में कहते हैं हरिद्वार धर्म संसद के जरिए सिर्फ मुसलमानों पर ही निशाना नहीं साधा गया, आरएसएस के निशाने पर भारतीय संविधान भी है। उनकी नजर अनुसूचित जाति-जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण पर भी है। और भी बहुत कुछ कहा है डॉ उदित राज ने।
देश
में तमाम धार्मिक स्थलों को जब निशाना बनाया जा रहा है। समुदाय विशेष के
नरसंहार की धमकी दी जा रही है तो बेलुड़ मठ में क्रिसमस मनाया जा रहा है।बेलुड़ मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी।
नेहरू बीजेपी के निशाने पर हैं और नेहरू जन्मदिन पर सोशल मीडिया पर नेहरू पर हमले हो रहे हैं। इसमें उनके बारे में फैलाए गए मिथकों का इस्तेमाल हो रहा है। सच क्या है?
हरू के बारे में इन दिनों सोशल मीडिया में तरह तरह के दुष्प्रचार चलाए जा रहे हैं। उनकी छवि को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। लेकिन नेहरू का जीवन पारदर्शी था।
महात्मा गांधी की हत्या पर लिखी गई नई किताब में यह दावा किया गया है कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने पर विवाद होने के पहले ही गांधी जी की हत्या की योजना बन चुकी थी। क्या है मामला?
स्वतंत्रता तो हमें मिली पर उसकी भी एक कीमत चुकानी पड़ी- ‘विभाजन’ के रूप में। धर्म के आधार पर मुस्लिम बहुल पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा-प्रांत के हिस्से पाकिस्तान के रूप में आए।
क्या आपको पता है कि रवींद्रनाथ टैगरो का जन गण मन कई पैराग्राफ में लिखी कविता है, जिसका एक छोटा रूप ही राष्ट्र गान के रूप में स्वीकार किया गया? यहाँ पढ़े, मूल राष्ट्र गान।
14 अगस्त की वह ऐतिहासिक रात जब ब्रिटिश साम्राज्य का झंडा यूनियन जैक भारत में आख़िरी बार उतारा गया और जवाहर लाल नेहरू ने 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' का भाषण दिया।
विभाजन को लेकर तथ्यों के कुछ नए दरवाजे इश्तियाक अमहद ने खोले हैं और इतिहास के बहुत से ऐसे तथ्यों से हमें अवगत कराया जिनकी जानकारी हममें से बहुतों को नहीं रही होगी।
देश के विभाजन और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर शिक्षाविद प्रो. इश्तियाक अहमद और पूर्व पुलिस अधिकारी व हिंदी के मशहूर साहित्यकार विभूति नारायण राय की बातचीत के बाद अब पढ़िए मुसलिम उम्मा पर चर्चा का लिप्यांतर।
मेरे ख्याल से न्यूक्लियर वॉर इज म्युचुअल सुसाइड। अगर लोग खुदकुश करना चाहते हैं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन अक्ल की बात तो यही है कि जो सीमा बन चुकी हैं उन्हें मान लो और उन्हें अर्थहीन कर दो। मेरा ऐसा मानना है। यह कहना है पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक इश्तियाक अहमद का।
उनकी वजह से और जवाहलाल नेहरू न होते तो हिंदुस्तान का सत्यनाश पहले दिन से हो जाता। यह तो उनके प्रधानमंत्री काल के वह 17 साल हैं जिसने मॉडर्न इंडिया को बचाए रखा है। यह कहना है लेखक इश्तियाक अहमद का।