कांग्रेस अब उन सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतार रही है, जहाँ गठबंधन का उम्मीदवार मुसलिम नहीं है और जहाँ मुसलिम मतदाताओं की संख्या 20% से ज़्यादा है।
उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में कांग्रेस अब एसपी-बीएसपी गठबंधन से सीधे-सीधे दो-दो हाथ करने की रणनीति पर उतर आई है। अभी तक कांग्रेस, एसपी-बीएसपी गठबंधन के साथ कुछ सीटों पर गठबंधन, कुछ पर अप्रत्यक्ष तालमेल और कुछ सीटों पर दोस्ताना संघर्ष की संभावनाएँ तलाश रही थी। लेकिन बीएसपी प्रमुख मायावती के कांग्रेस पर लगातार हमलों की वजह से इन तमाम संभावनाओं पर पानी फिर गया। लिहाज़ा, अब कांग्रेस ने रणनीति बदल कर सीधे मुसलिम वोटों पर दाँव खेलना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस अब उन सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतार रही है, जहाँ गठबंधन का उम्मीदवार मुसलिम नहीं है और जहाँ मुसलिम मतदाताओं की संख्या 20% से ज़्यादा है।
इमरान, नसीमुद्दीन को मैदान में उतारा
कांग्रेस ने अपनी पहली लिस्ट में राज बब्बर को मुरादाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वहाँ उनके पक्ष में माहौल बनता हुआ नहीं दिख रहा था। दरअसल, मुरादाबाद में 45% मुसलिम मतदाता हैं। लिहाज़ा, यहाँ कांग्रेस की स्थानीय इकाई शुरू से ही किसी मजबूत मुसलिम उम्मीदवार को चुनाव लड़ाए जाने के हक़ में थी।
2009 में अज़हर ने जीती थी सीट
कांग्रेस ने मुरादाबाद से इमरान प्रतापगढ़ी को उतारकर समाजवादी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी है। गठबंधन में यह सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई है।
समाजवादी पार्टी ने अभी मुरादाबाद से अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। दो बार चुनाव लड़ चुके एसटी हसन का नाम सबसे आगे चल रहा है। एसटी हसन का मुरादाबाद में पिछड़े मुसलमानों में विरोध दिखाई देता है। अखिलेश यादव ने यहाँ उम्मीदवार तय करने की ज़िम्मेदारी आज़म ख़ान को दी हुई है। मुरादाबाद लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए आज़म ख़ान एसटी हसन के अलावा किसी और नाम पर विचार नहीं कर रहे हैं। लिहाज़ा, इस बार भी हसन का टिकट तय माना जा रहा है। हालाँकि दो बार चुनाव लड़ कर वह पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं। अब इमरान प्रतापगढ़ी के मैदान में आने के बाद समाजवादी पार्टी पर कोई और मजबूत उम्मीदवार उतारने का दबाव बढ़ गया है।
बिजनौर लोकसभा सीट पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उतारना कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक है। एसपी-बीएसपी गठबंधन में यह सीट बीएसपी के हिस्से में आई है।
बिजनौर की सियासी हवा को पहचानते हुए कांग्रेस ने मायावती के साथ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मैदान में उतारा है। साल 1989 में जब मायावती यहाँ से सांसद बनी थीं तब नसीमुद्दीन, मायावती के साथ हुआ करते थे। लिहाज़ा, बिजनौर की सियासी ज़मीन उनके लिए नई नहीं है। अगर एसपी-बीएसपी गठबंधन से नाराज चल रहे मुसलमानों का भरपूर समर्थन कांग्रेस को मिलता है तो वह 1985 के बाद यह सीट जीत सकती है।
कांग्रेस को समर्थन देने की चर्चा
इस बार के लोकसभा चुनाव की सबसे ख़ास बात यह है कि बीजेपी समर्थक तो मुखर होकर बोल रहे हैं लेकिन बीजेपी विरोधी ख़ामोश हैं। बंद कमरों में चल रही बैठकों में बीजेपी को हराने की रणनीति पर विचार किया जा रहा है।
फ़ीडबैक के बाद कांग्रेस ने बदली रणनीति
कांग्रेस आलाकमान तक यह फ़ीडबैक पहुँचा है कि कि प्रदेश का मुसलमान और बीजेपी विरोधी हिंदू इस बात को लेकर सशंकित है कि चुनाव के बाद बीएसपी एनडीए का समर्थन भी कर सकती है। लिहाज़ा, बड़े पैमाने पर लोग कांग्रेस की सरकार की तरफ झुकाव दिखा रहे हैं। इस झुकाव को वोटों में बदलने के लिए कांग्रेस की तरफ़ से यह दिखाना ज़रूरी है कि उसे समाज के उस तबक़े की चिंता है जो मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनते हुए नहीं देखना चाहता। इस फ़ीडबैक के बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है। आने वाले दिनों में कुछ और सीटों पर भी कांग्रेस उम्मीदवार बदलकर चौंंका सकती है।