उत्तर प्रदेश के संभल में पिछले साल नवंबर 2024 में हुई हिंसा की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने गुरुवार को अपनी 400 पेज की रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हुई थी और कई अन्य घायल हुए थे। आयोग का गठन इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में किया गया था, जिसमें रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार जैन और पूर्व आईएएस अधिकारी अमित मोहन प्रसाद शामिल थे।
रिपोर्ट के अनुसार, संभल में शाही जामा मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के दौरान 24 नवंबर 2024 को हिंसा भड़की थी। सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में संभल में हिंदुओं की आबादी में कमी और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने वाली बातों का उल्लेख किया गया है। इसमें समाजवादी पार्टी के सांसद जिया उर रहमान बर्क के जामा मस्जिद में दिए गए भाषण को हिंसा के ट्रिगर के रूप में चिह्नित किया गया है। हालांकि, रिपोर्ट की सामग्री को गोपनीय रखा गया है। लेकिन रिपोर्ट की तमाम बातें सामने आ चुकी हैं। इस पर बीजेपी और कांग्रेस में बहस भी हो रही है। रिपोर्ट को पहले राज्य मंत्रिमंडल और फिर विधानसभा में पेश किया जाएगा।

बीजेपी और विपक्ष में तीखी बहस 

बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, "आबादी में बदलाव एक कड़वा सच है। देश भर में 100 से अधिक जिले इस बदलाव का सामना कर रहे हैं, और संभल सहित कई जिलों में हिंदुओं का पलायन हो रहा है। हमें उम्मीद है कि इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार ऐसी नीति बनाएगी जो इस पलायन को रोके और हिंदुओं को वापस लाए।"
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एएनआई के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया है कि आज़ादी के समय संभल नगर पालिका क्षेत्र में 55% आबादी मुस्लिम और 45% हिंदू थी। हालाँकि, अब हिंदू आबादी घटकर 15% रह गई है, जबकि मुस्लिम समुदाय बढ़कर 85% हो गया है। आज़ादी के बाद से संभल में कुल 15 दंगे हुए। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि हिंसा स्थल और अन्य स्थानों से बरामद हथियार यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और जर्मनी में निर्मित थे। उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष जाँच दल (एसआईटी) ने 12 में से छह मामलों में 4,000 से ज़्यादा पन्नों का आरोपपत्र दाखिल किया था।
रिपोर्ट जारी होने के बाद, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि जाँच रिपोर्ट से पता चला है कि संभल नगर निगम क्षेत्र में हिंदुओं की संख्या 45% से घटकर 15% रह गई है। उन्होंने कहा, "संबल में हिंदू 1947 में 45%, अब 15%। जनसंख्या में परिवर्तन ही लोकतंत्र की नियति है।"

संभल हिंसा रिपोर्ट पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता का ट्वीट

विपक्ष ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा, "यह एक गोपनीय रिपोर्ट है, लेकिन इसके बारे में पहले ही मीडिया में चर्चा हो रही है। यह सत्तारूढ़ दल की समाज को बांटने की रणनीति है। युवा रोजगार चाहते हैं, किसान परेशान हैं, लेकिन बीजेपी हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे को हवा दे रही है।"
संभल मामला आरएसएस से जुड़े लोगों ने उठाया। विवाद तब शुरू हुआ जब वकील विष्णु शंकर जैन सहित आठ याचिकाकर्ताओं ने संभल अदालत में मामला दायर किया। जिसमें कहा गया कि भगवान कल्कि को समर्पित हरिहर मंदिर कभी उस स्थान पर था, जिसे मुगल सम्राट बाबर ने 1529 में ध्वस्त कर दिया था। यह आरोप लगाते हुए कि वर्तमान मस्जिद ऐतिहासिक मंदिर के स्थल पर थी, याचिका में सिविल कोर्ट से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को कथित मंदिर का नियंत्रण लेने का निर्देश देने का आग्रह किया गया। मामला दायर होते ही अदालत ने मस्जिद के सर्वे का आदेश दे दिया। सर्वे भी उसी दिन शुरू हो गया। इंडियन एक्सप्रेस और बीबीसी के मुताबिक सर्वे टीम जब दूसरी बार शाही मस्जिद पहुंची तो उसके साथ एक उत्तेजक भीड़ जय श्रीराम के नारे लगा रही थी। भीड़ अंदर घुस गई। उसने वहां नमाज़ पढ़ रहे लोगों को मारा पीटा। इसके बाद वहां हिंसा शुरू हो गई, जिसने शहर को चपेट में ले लिया। 
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लोकल कोर्ट ने धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को ध्यान में नहीं रखा। जिसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। पूजा स्थल अधिनियम को दरकिनार कर देश के कई और शहरों में इस तरह के केस दायर किए गए, जिनमें मुस्लिम धार्मिक स्थलों के सर्वे की मांग की गई।