loader

ऋषि गंगा परियोजना की वजह से चमोली में हुआ हिमस्खलन?

क्या चमोली में आए हिमस्खलन की वजह महात्वाकांक्षी ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना है, जिसका विरोध स्थानीय लोगों ने 2005 में ही किया था? क्या इस परियोजना के लिए पहाड़ों को काटे जाने की वजह से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा है और यह हिमस्खलन हुआ है? क्या जिस तरीके से बिल्कुल नदी के किनारे पत्थर तोड़े गए, उस वजह से यह हादसा हुआ है?

चमोली ज़िले में रविवार को हुए इस हादसे से ये सवाल उठने लगे हैं।

ख़ास ख़बरें

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने मई, 2019 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने के बाद राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूरी परियोजना पर सफाई देने को कहा था। उस जनहित याचिका में कहा गया था कि चमोली के रेणी गाँव में प्रकृति को नुक़सान पहुँचाने वाले तरीके से पहाड़ काटे जा रहे हैं, जिससे पूरा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है।

हाई कोर्ट की जस्टिस रमेश रंगनाथन और जस्टिस आर. सी. खुल्बे की बेंच ने राज्य सरकार को पूरी जानकारी देने को कहा था।

क्या कहा था अदालत ने?

रेणी गाँव के निवासी कुंदन सिंह ने जनहित याचिका में कहा था कि पनबिजली परियोजना बनाने वाली कंपनी 2005 से ही वहाँ ग़लत तरीके से काम कर रही है, वह नदी के किनारे के पत्थरों को जिस तरह तोड़ रही है, वह प्रकृति के लिए नुक़सानदेह है।

जनहित याचिका में यह भी कहा गया था कि इस निर्माण कार्य की वजह से पास के नंदा देवी बायोस्फीयर रिज़र्व के जानवर डर कर वहां से भाग गए हैं और रेणी गाँव तक आ गए हैं।

उस इलाक़े में रहने वाले आदिवासियों ने कहा था कि इस पनबिजली परियोजना की वजह से उनके मूल स्थान, रहन-सहन और आजीविका पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने भी प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने की चेतावनी दी थी।

आईआईटी : सिकुड़ रहे हैं ग्लेशियर

आईआईटी कानपुर, वाडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ हिमालयन जीओलॉजी, उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर और एचएनबी गढ़वाल सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने 1980 से 2017 के बीच उस इलाके के ग्लेशियर में हुए बदलाव पर अध्ययन किया था।

इस अध्ययन के मुताबिक़, 1980 में ऋषि गंगा कैचमेंट एरिया के 690 किलोमीटर क्षेत्र के 243 किलोमीटर यानी 35 प्रतिशत हिस्से में ग्लेशियर था। यह 2017 में घट कर 217 किलोमीटर में सिमट गया, यानी ग्लेशियर 26 किलोमीटर सिकुड़ गया। अब उस इलाक़े के सिर्फ 26 प्रतिशत हिस्से पर ग्लेशियर है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मानव गतिविधियों और तामपान बढ़ने की वजह से ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। यह ट्रेंड जारी है। इस रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि पनबिजली परियोजना की वजह से ही ऐसा हो रहा है। लेकिन परियोजना शुरू होने के बाद इसमें बढोतरी हुई है, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

क्या है ऋषि गंगा प्रोजेक्ट?

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में बन रही ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना है, जिसमें नदी के प्रवाह के जरिए बिजली बनाने का काम चल रहा था। यह परियोजना ऋषि गंगा नदी पर बनाई जा रही है और यह नदी धौली गंगा में मिलती है।

ऋषि गंगा जिस जगह धौली गंगा में मिलती है, वहाँ बड़े पैमाने पर काम चल रहा है। ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना के तहत 63,520 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। यह देश की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है। इससे जो बिजली पैदा होगी, उससे पूरे उत्तराखंड ही नहीं, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान समेत उत्तर भारत के कई इलाक़ों को बिजली दी जा सकेगी।

rishi ganga hydel project behind chamoli avalanche - Satya Hindi

प्रकृति से छेड़छाड़

ऋषि गंगा परियोजना 2005 में शुरू की गई थी। पहले यह कहा गया था कि नदी मार्गों यानी नदियों के प्रवाह से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यह भी कहा गया था कि नदी के किनारों पर विस्फोट नहीं किया जाएगा। इसकी वजह यह है कि जोशीमठ-चमोली से होकर बहने वाली पहाड़ी नदियाँ धौलीगंगा, अलकनंदा प्राकृतिक धरोहर हैं। ये नदियाँ गंगा समेत दूसरी नदियों में पानी का प्रवाह बढ़ाती हैं।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि यहाँ की ज़मीन बिजली परियोजना जैसा किसी बड़ी परियोजना के अनुकूल नहीं है। यहाँ की ज़मीन सीली, नमयुक्त, पहाड़ी-पथरीली और कमजोर हैं। इस पर बड़ा और ठोस निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता है।   इसके अलावा यहां नदियाँ कई परतों से होकर बहती हैं।

2005 से ही विरोध

स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों ने इस परियोजना पर 2005 में ही विरोध शुरू कर दिया था। इसे प्रकृति के ख़िलाफ़ ही नहीं आर्थिक रूप से ही टिकाऊ नहीं माना गया था। लेकिन तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए इस परियोजना को हरी झंडी मिली और निर्माण कार्य शुरु हुआ। इसके बाद भी लोगों ने विरोध जारी रखा, मामला अदालत तक गया। पर सबकुछ होने के बावजूद परियोजना नहीं रोकी गई।

अब जबकि वह परियोजना ही हिमस्खलन की चपेट में आ गई है और रेणी गाँव में उसके ही कर्मचारियों के पानी में बह जान की रिपोर्टें आ रही हैं, सवाल उठता है कि क्या परियोजना से जुड़े लोग इस पर कुछ विचार करेंगे, या पहले की तरह ही काम चलता रहेगा। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

उत्तराखंड से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें