बीजेपी के हरियाणा चुनाव जीतने के बाद फिर से ‘डबल इंजन’ की सरकार और उसकी उपलब्धियों और जनता द्वारा इसे स्वीकारे जाने को लेकर बातें शुरू हो गई हैं। कांग्रेस कैसे चुनाव जीतते जीतते हार गई और बीजेपी कैसे इसे हारते हुए जीत गई यह एक अलग बहस का विषय है। मुद्दा यह है कि क्या भाजपा शासित राज्यों में क़ानून व्यवस्था और सामाजिक संकेतकों की स्थिति वास्तव में बेहतर हुई है? क्या सचमुच मोदी सरकार ने कोई ऐसा ‘मॉडल’ दिया है जिसे अपनाकर बीजेपी शासित राज्य विकास की सीढ़ियाँ लगातार चढ़ते जा रहे हैं? क्या स्वयं मोदी सरकार 10 सालों तक सरकार चलाने के बावजूद बेहतर गवर्नेंस का मानक स्थापित कर पायी है? मेरे लिए इसका जवाब ‘ना’ है।
हिन्दुत्व के भंवर में फँसी भारत की भूख, शिक्षा और स्वतंत्रता!
- विमर्श
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- 13 Oct, 2024

प्रतीकात्मक तस्वीर।
2014 में देश की सत्ता जब कांग्रेस से भाजपा के पास पहुंची और नेतृत्व नरेंद्र मोदी के पास जा रहा था तब वैश्विक भुखमरी सूचकांक यानी जीएचआई 17.1 था। 2023 में भारत का स्कोर 29.4 था। आख़िर ऐसी स्थिति कैसे बनी?
‘गवर्नेंस’ तो फिर भी काफ़ी जटिल मानक है, मोदी सरकार के आकलन के लिए शुरुआत ‘भूख’ से की जा सकती है। कोविड-19 को देखते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की शुरुआत मार्च 2020 में की गई। कोशिश यह थी कि महामारी के दौर में भारत के नागरिक भूखे न रहें। इसके तहत मुफ़्त राशन की व्यवस्था की गई और इससे लगभग 80 करोड़ भारतीयों को लाभ पहुँचा। लेकिन सवाल यह है कि क्या महामारी के पहले भारत में लोगों को राशन की ज़रूरत नहीं थी? निश्चित रूप से थी, इसीलिए 2013 में यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम लेकर आयी। अब लोगों को भोजन देना किसी चुनाव और भाषण का मोहताज नहीं रहा। सरकार क़ानूनी रूप से बाध्य हो गई कि उसे ज़रूरतमंदों को राशन देना ही है।