अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने इस समझौते को दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया युग बताया। उन्होंने कहा कि यह सौदा न केवल अमेरिका की रणनीतिक ज़रूरतों को पूरा करेगा, बल्कि चीन द्वारा दुर्लभ अर्थ मिनरल पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों को भी कम करेगा। लुटनिक ने यह भी जोड़ा कि यह समझौता वैश्विक सप्लाई चेन को स्थिर करने में मदद करेगा।
ट्रंप द्वारा घोषित 55 प्रतिशत शुल्क पिछले महीने जेनेवा में हुए समझौते से अधिक है। इसमें शुल्क को 30 प्रतिशत तक कम करने की बात कही गई थी।
जानकारों का मानना है कि टैरिफ़ में इस बढ़ोतरी का असर अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों पर भी पड़ सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और जैसे अन्य चीनी उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, चीनी कच्चे माल पर निर्भर अमेरिकी कंपनियों को भी लागत में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि, कुछ आलोचकों ने इस सौदे पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि बौद्धिक संपदा की चोरी और व्यापार असंतुलन जैसे कई अहम मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। डेमोक्रेटिक सांसद नैन्सी पेलोसी ने कहा, 'यह सौदा सतही तौर पर प्रभावशाली लग सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करना जरूरी है।'
इस समझौते की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश अपनी प्रतिबद्धताओं को कितनी अच्छी तरह निभाते हैं। अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में उतार-चढ़ाव का इतिहास रहा है और इस सौदे के लागू होने में भी चुनौतियां आ सकती हैं।