अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाते हैं।
नस्लभेद विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की हत्या के अभियुक्त काइल रिटेनहॉउस को अमेरिका में हीरो बनाए जाने की कोशिश बेहद ख़तरनाक है।
केनोशा में पिछले साल हुए नस्लभेद विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की हत्या के अभियुक्त काइल रिटेनहॉउस को रिहा कर दिए जाने से क्या अमेरिका में नस्लवाद और बढ़ेगा?
सलमान खुर्शीद की किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या' को लेकर बीजेपी विवाद खड़ा कर रही है। लेकिन वास्तव में हिंदुत्व हिंदू धर्म की व्याख्या नहीं है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने देश का आंतरिक शत्रु के मुद्दे पर जो कुछ कहा है, वह क्यों चिंता की बात है, बता रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
यॉर्कशायर के खिलाड़ी अज़ीम रफ़ीक़ के साथ भेदभाव के मामले में जो रुख इंग्लैंड का रहा, क्या वैसा कभी भारत का भी हो पाएगा।
भारत में तो जाति एक सच है ही, जातीय अभिमान होना भी सच्चाई है। लेकिन विदेशों में जाकर भी अपनी जाति से चिपके रहना कौन सी बुद्धिमता है?
बीते कुछ सालों से यह कहा जा रहा है कि देश की आज़ादी के बाद से विद्वत्ता की सारी जगहें वामपंथियों ने हथिया लीं और दक्षिणपंथियों को बाहर रखा गया।
योगेंद्र यादव पर यह कार्रवाई लखीमपुर खीरी की हिंसा में मारे गए बीजेपी के एक कार्यकर्ता के घर जाने पर हुई है। यादव को एक महीने के लिए निलंबित किया गया है।
पंजाब के तरन तारन के रहने वाले दलित युवक लखबीर सिंह का शव शुक्रवार सुबह सिंघु बॉर्डर पर मिला था।
सावरकर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान के बाद एक बार फिर से विवाद छिड़ गया है।
जम्मू-कश्मीर में बीते कुछ दिनों में कई लोगों की हत्या कर दी गई है। श्रीनगर में माखन लाल बिंदरू की हत्या के दो दिन बाद ही आतंकवादियों ने दो शिक्षकों की हत्या कर दी थी।
महात्मा गांधी का इस्तेमाल क्या सरकारों ने अपने-अपने तरीक़े से नहीं किया है? राज्यों ने क्या गांधी की एक ऐसी सरलीकृत छवि निर्मित नहीं की है जो किसी के लिए असुविधाजनक नहीं रहे?
एनसीईआरटी द्वारा मंजूर की गई कक्षा दो की एक किताब को लेकर विवाद क्यों है? मुसलिमों के लिए मुसलिम और हिंदुओं के लिए हम का इस्तेमाल क्यों?
किस तरह के सकारात्मक रवैए की अपेक्षा की जाती है? प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर एक दिन में 2.5 करोड़ टीके लगने से पहले और बाद में 50-60 लाख ही टीके लगाया जाना कैसी सकारात्मकता है और केरल में ईसाई-मुसलमान सद्भाव की बात करना कैसी सकारात्मकता?
इमा राडुकानू की यूएस ओपन में जीत पर चार-चार मुल्कों में तालियाँ बज रही हैं। इमा आप्रवासी हैं। उन्होंने ब्रिटेन को 44 साल बाद यह ट्रॉफी दिलाई है। यह जीत ऐसे समय में आई है जब इंग्लैंड की गृह मंत्री आप्रवासियों को वापस धकेलने की बात कह रही हैं।
नसीरुद्दीन शाह ने तालिबान का समर्थन करने वाले भारतीय मुसलमानों को संदेश दिया। उन्होंने हिंदुस्तानी इस्लाम और दुनिया के बाक़ी हिस्सों के इस्लाम के बीच फर्क बताया है। आख़िर उनके बयान पर विवाद क्यों है?
हज़ारों अफ़ग़ानिस्तानी अपना देश छोड़ कर कहीं और पनाह लेना चाहते हैं। अभी जब अफ़ग़ानिस्तान के लोग त्राहिमाम करते हुए पूरी दुनिया से शरण मांग रहे हैं तो उसकी प्रतिक्रिया क्या है?
तालिबान के पहले बयानों में जनतंत्र को ठुकरा दिया गया है। हम जो न तो राज्य हैं, न विशेषज्ञ, हम तालिबान को जनतांत्रिक, मानव अधिकार के उसूलों की कसौटी पर ही परखेंगे।
आत्मग्रस्त समाज आत्मसजग समाज नहीं। जो अपनी रूह में और रूहों को जोड़ने की हिम्मत नहीं करता वह कायर ही हो सकता है।
दिल्ली के द्वारका में हज हाउस के विरोध के नाम पर मुसलमान विरोधी अभियान कुछ दिनों से चल रहा था। वही मुसलमान विरोधी नफरत!
सीमा विवाद के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन अभी जो हो रहा है, वह नया और चिंताजनक है। असम के मुख्यमंत्री ने तय कर लिया है कि वे राज्य में किसी न किसी प्रकार तनाव का निर्माण करेंगे और जो तनाव पहले से हैं, उन्हें बढ़ाएंगे।
पेगासस तकनीक के सहारे जासूसी की अंतरराष्ट्रीय ख़बर के बाद इस पर बहस छिड़ गई है कि क्या ऐसी तकनीक की इज़ाज़त किसी रूप में देनी चाहिए जो राज्य के लिए हमारी निजता का पूरी तरह से अतिक्रमण करना इतना आसान बना दे?
एनएसओ का कहना है कि वह पेगासस सिर्फ़ सरकारों या उनकी संस्थाओं को बेचती है। तो क्या भारत में भारत सरकार यह कर रही है? या कोई और सरकार इसके ज़रिए भारत के पूरे तंत्र की जासूसी कर रही है? दोनों ही गंभीर चिंता का विषय हैं।
दानिश सिद्दीकी की तसवीरें खोयी इंसानियत को तलाश करने की अपील हैं। तालिबान अपने अफ़सोस की रस्म से निकलकर यह असली काम कर पाएँगे या भारत में या पूरी दुनिया में हिंसा और युद्ध को ही जीवन बना देनेवाले इस अपील को सुन पाएँगे, पूछ रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में कहा कि लोगों को जोड़ने का काम राजनीति पर नहीं छोड़ा जा सकता।
क्या भारत में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव होता है? उत्तर हम सब जानते हैं। लेकिन अगर प्यू रिपोर्ट पर यक़ीन करें तो अधिकतर भारतीयों ने अपने जीवन में किसी प्रकार के जातिगत और धर्म-आधारित भेदभाव का सामना नहीं किया है। ऐसा क्यों है?