अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाते हैं।
मध्य प्रदेश में भँवरलाल जैन की पीट-पीट कर हत्या क्यों की गई? इस शक में कि वह मुसलिम थे? क्या एक समुदाय विशेष से होना अपराध है? इस पर सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया कैसी है?
तमिलनाडु के मंत्री के पानी पूरी वाले बयान को लेकर एक बार फिर हिंदी को लेकर शोर हुआ है और लोग उनका विरोध कर रहे हैं। लेकिन क्या मंत्री का विरोध करने वालों ने उनके बयान को समझने की कोशिश की?
आशरीन सुल्ताना से शादी करने पर नागराजू की हत्या का मुसलिम समाज ने निंदा की। वे समर्थन में नहीं आए, बल्कि विरोध किया। लेकिन क्या अब नागराजु की हत्या का इस्तेमाल मुसलिम विरोधी नफ़रत के लिए नहीं किया जा रहा है?
क्या हिंदी को पूरे देश पर थोपने की कोशिश की जा रही है? क्या इस भाषा का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है? अगर ऐसा है तो यह निश्चित रूप से बेहद चिंता की बात है।
बीते दिनों कई राज्यों में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं इसी ओर इशारा करती हैं कि समाज से सहानुभूति को खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। भारत के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।
हिंसा के दुष्चक्र में फँस जाने के बाद इससे निकलने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। क्या भारत इस दुष्चक्र से अभी भी निकल सकता है?
भाषा जोड़ती है तो वह तोड़ती भी है। यह अहंकार कि हम ही भारत हैं, हिंदी को जोड़ने की जगह तोड़ने वाली जुबान बना देता है।
असम से लेकर कर्नाटक और उत्तर प्रदेश तक मुसलमानों के खिलाफ नफरती अभियान क्यों चलाया जा रहा है? और इसके लिए हिंदुओं के धार्मिक अवसरों का इस्तेमाल क्यों हो रहा है?
नफरत को बढ़ावा देने वाली बयानबाजी पर दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी के बाद सवाल यह खड़ा होता है कि क्या धार्मिक आधार पर नफरत फैलाने के बाद सजा से बचने के लिए बड़ी चतुराई से कानून का सहारा लिया जा रहा है?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के कमरे में उनके पीछे गाँधी की तसवीर की अनुपस्थिति को लेकर लगातार सवाल पूछा जा रहा है। गाँधी की तसवीर न होने के पीछे क्या वजह हो सकती है?
पांच राज्यों के बहुसंख्यकवादी जनादेश के बाद क्या धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए रास्ता ख़त्म हो जाएगा? क्या अल्पसंख्यक समुदाय के हक़ों की हिफाजत हो सकेगी?
भारत क्या अंतरराष्ट्रीय मामलों में दखल देने की हालत में नहीं है, क्या वह कमजोर देशों का मित्र भी नहीं रह गया है? केंद्र सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी लाचार क्यों दिखी है?
रूस के द्वारा यूक्रेन पर हमला करने की भारत आलोचना क्यों नहीं कर सका? रूसी हमले को हमला न कह पाना, हमलावर का नाम न ले पाना क्या हमारा नैतिक पतन है?
क्या लोकतंत्र में सिर्फ वोट डालना ही काफी है या फिर जनता का अपने हक के लिए लड़ना भी जरूरी है जिससे सत्ता निरंकुश ना हो।
कर्नाटक में चल रहे हिजाब विवाद के बीच श्रीलंका के एक कार्टूनिस्ट का कार्टून आया है। कार्टून देखकर धक्का लगता है, शर्म आती है कि यह भारत की कैसी छवि दुनिया में बन रही है?
कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर आपत्ति क्यों है और इसके विरोध में भगवा गमछा पहनने का आशय क्या है?
30 जनवरी, 1948 की रात जिस महात्मा गांधी की हत्या पर खुशी मनाई गई, उसी व्यक्ति की मृत्यु के शोक में 13 दिन अपने केंद्र क्यों बंद कर दिए?
राष्ट्रवाद पर बहस होना ही चाहिए कि आखिर तमाम ताकतें किस तरह का राष्ट्रवाद चाहती हैं?
सम्राट अशोक और मुगल शासक औरंगजेब की तुलना करने के बाद भाजपा और संघ से जुड़े एक नाटककार दया प्रकाश सिन्हा मुसीबत में फंस गए हैं। लेकिन क्यों?
हरिद्वार की धर्म संसद में मुसलमानों का नरसंहार करने की बातें कही गई। इसके अलावा भी कई तरह का जहरीला प्रचार चल रहा है। क्या यह नस्लकुशी की जमीन तैयार करने की कोशिश है?
टेक फॉग नाम के एक ऐप के जरिए समाज में घृणा को सक्रिय किया जा रहा है लेकिन बहुसंख्यक समुदाय को इसे लेकर चेतना होगा और आवाज़ भी उठानी होगी।
मुसलिम महिलाओं के ख़िलाफ़ अभद्र और ओछी टिप्पणियां जारी हैं। पिछले साल सुल्ली डील के बाद अब बुल्ली डील एप के जरिये उनकी नीलामी का काम किया जा रहा है।
हरिद्वार में आयोजित हुई धर्म संसद में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती और भड़काऊ बयानबाज़ी की गई। बीजेपी में किसी ने इसकी निंदा नहीं की और प्रधानमंत्री मोदी ने भी मुगल शासन को लेकर तमाम बातें कहीं।
स्वर्ण मंदिर में हत्या की पुरजोर निंदा करने में राजनीतिक दल पीछे क्यों हैं? उन्हें किस बात का डर है?
पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार के ख़िलाफ़ वहां की सरकारों ने सख़्ती दिखाई है लेकिन भारत इस मामले में पीछे क्यों दिखता है।
6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मसजिद को गिरा दिया गया। ऐसा लगा मानो कि 'राम, राम' की सहजता को 'जय श्रीराम' की आक्रामकता ने कहीं ढक दिया है।