क्या भारत नस्लकुशी की तरफ तेजी से आगे बढ़ रहा है? या यह इस सरकार के विरोधियों द्वारा किया जा रहा भय का प्रचार है, अतिरंजित आशंका है? सरकार ही नहीं, भारत को बदनाम करने का षड्यन्त्र है? नस्लकुशी या जनसंहार शब्द का प्रयोग जिम्मेदारी और सावधानी से किया जाना चाहिए, छिटपुट हिंसा की घटनाओं के उदाहरण से बात को बढ़ा-चढ़ाकर उस हिंसा को जनसंहार की पूर्वपीठिका बतलाना कितना उचित है? और नस्लकुशी तो किसकी?
जनसंहार के नारे नाक़ाबिले बर्दाश्त हैं!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 17 Jan, 2022

अगर हम जनसंहार के खुलेआम नारों और भाषणों को स्वीकार्य मानते हैं तो जनसंहार को स्वीकार करना भी हमारे लिए कठिन न होगा। लेकिन यह अवश्यम्भावी नहीं है। इसके लक्षणों को पहचान कर इसे रोका जा सकता है। यह तब हो सकता है जब जनसंहार की राजनीति को चुनाव में पराजित किया जाए और न्याय प्रक्रिया के सहारे जनसंहार का उकसावा देनेवालों को दंडित करने के लिए दबाव बनाए रखा जाए।
पिछले एक महीने से यह चर्चा चारों तरफ होने लगी है। राजनीतिशास्त्री और विशेषज्ञ जो भारतीय नहीं हैं, यह चेतावनी देने लगे हैं कि अगर विश्व समुदाय ने भारत सरकार को पाबंद नहीं किया तो इसके पूरे आसार हैं कि नस्लकुशी शुरू हो जाए।
सबसे ताज़ा चेतावनी ‘जेनोसाइड वाच’ के अध्यक्ष ग्रेगोरी स्टेनटन ने दी है। यह संस्था इसपर नजर रखती है कि दुनिया में कहाँ-कहाँ नस्लकुशी की स्थितियाँ पैदा हो रही हैं और वह उनके बारे में उस देश, समुदाय और विश्व समुदाय को सावधान करती रहती है।