संजय राय पेशे से पत्रकार हैं और विभिन्न मुद्दों पर लिखते रहते हैं।
पीएमसी बैंक के संचालकों के डिफ़ॉल्टर होने का प्रभाव सीधे जनता पर पड़ रहा है और यह जानलेवा बन गया है। इसे आर्थिक मंदी से जोड़कर सरकारें अपना पीछा नहीं छुड़ा सकतीं।
एक बार फिर सावरकर को भारत रत्न देने की बात उठी है और वह भी चुनावी मौसम में। इस बार यह बात भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में छापकर चर्चा में लायी गयी है।
दो लोकसभा चुनाव में हार से पस्त कांग्रेस के नेता संभलने के बजाय गुटबाज़ी में उलझे हुए हैं। महाराष्ट्र में तो हालात बेहद ख़राब हैं।
मोदी सरकार 1.0 में सबसे ज़्यादा किसी मंत्रालय के काम को सराहा गया था तो वह था नितिन गडकरी का जहाजरानी और भू-तल परिवहन मंत्रालय। लेकिन वही नितिन गडकरी महाराष्ट्र चुनाव में कहीं दिख क्यों नहीं रहे हैं?
भारत के संसदीय लोकतंत्र के लिए जेपी की समग्र क्रांति और गाँधी दोनों की आज भी सामयिक आवश्यकता है।
महाराष्ट्र में चुनाव हैं इसलिए यहाँ पर प्याज चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। किसान संगठनों ने प्रदेश में 'कांदा सत्याग्रह' शुरू कर दिया है। क्या चुनाव पर इसका असर पड़ेगा?
लोकसभा चुनाव के बाद जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी की बैठकें हुई थीं, तभी से कांग्रेस-एनसीपी के विलय की चर्चा ने जोर पकड़ा था।
क्या कांग्रेस का शिक्षित बेरोज़गारों को 5000 रुपये प्रतिमाह बेरोज़गारी भत्ता देने का वादा महाराष्ट्र में युवा मतदाताओं को पार्टी की तरफ़ खींच पायेगा?
मुख्यमंत्री ने शिवसेना या अपने अन्य सहयोगी दलों में किस-किस को टिकट दिया जाना चाहिए इसमें भी दख़ल दिया या अपनी राय दी है।
मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति के यौद्धा बाला साहेब ठाकरे के समय शिवसेना जितनी मजबूत दिखती थी वैसी अब नहीं दिखती।
बीजेपी आज उम्मीदवारों की सूची जारी कर सकती है। लेकिन उसकी सहयोगी शिवसेना ने बिना कोई सूची जारी किये रविवार को 9 प्रत्याशियों को एबी फ़ार्म दे दिए हैं।
को-ऑपरेटिव बैंक घोटाला मामले में ईडी के केस दर्ज करने के बाद शरद पवार के सियासी दाँव से जहाँ उन्हें जन समर्थन मिला, वहीं अजित पवार के इस्तीफ़े से उन्हें झटका लगा है।
चुनाव आयोग ने जब महाराष्ट्र की सातारा लोकसभा सीट पर उप चुनाव की घोषणा की तो कई सवाल खड़े हुए। आयोग ने अभी 21 सितम्बर को ही प्रदेश के विधानसभा चुनावों के साथ ही सातारा उप चुनाव की घोषणा क्यों की थी?
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई क्या शरद पवार को जेल की यात्रा कराने की कोशिश है?
मोदी और शाह के भाषणों से ऐसा लगता है कि चुनाव चाहे राष्ट्र का हो या महाराष्ट्र का, प्रचार में पाकिस्तान और कश्मीर ही मुख्य धुरी बने रहेंगे।
सामान्यतः प्रदेश में विधानसभा के चुनाव दो चरणों में होते थे। एक चरण में चुनाव कराने को भी एक राजनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
पुराने नेताओं के पार्टी का साथ छोड़ देने के बाद शरद पवार ने अपने पिछले 55 सालों के राजनीतिक जीवन में क्या-क्या किया है, एनसीपी इसे हर मंच से प्रचारित कर रही है।
विधानसभा चुनावों में बराबर की सीटें लड़ने और महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े भाई की हैसियत की बात करने वाली शिवसेना के तेवर अब नरम दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दोनों ही पार्टियों में नेताओं के दल-बदल का पतझड़ सा लग गया है।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव जल्द होंगे, लेकिन इस बार चुनावी चक्रव्यूह कैसा रहेगा? दलबदल का ‘खेल’ चलने से यह तय करना मुश्किल है कि चुनाव में विपक्ष किस रूप में खड़ा मिलेगा?
इस मामले में अदालत में अब तक पुलिस के द्वारा ठोस सबूत के नाम पर सिर्फ़ कुछ किताबें और सीडी दी गयी हैं।
रोज़गार के कम होते अवसर और मंदी की मार की वजह से इस साल महाराष्ट्र के इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में 70% तक सीटें खाली हैं। एक दौर हुआ करता था जब इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश को लेकर मारामारी रहती थी।
महाराष्ट्र में सहकारी बैंक घोटाले में अब शरद पवार का नाम जोड़ा गया है। अब इस मामले को भी उसी से जोड़कर देखा जाने लगा है कि क्या शरद पवार को घेरने की कोई योजना तो नहीं बनाई जा रही है?
जेटली की छवि एक ऐसा नेता की थी जिसकी दिल्ली के पॉवर कॉरिडोर (शक्ति केंद्रों) में पहुँच थी और जो अपने साथियों को सियासी बवालों से निकाल लाने की काबिलियत रखता था।
वैसे तो अरुण जेटली के पत्रकारों से हमेशा अच्छे संबंध रहे, लेकिन बीजेपी के प्रवक्ता और सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के बाद यह घनिष्ठता और बढ़ गई थी।
अरुण जेटली की राजनीति भले ही लुटियंस के गलियारों में चमकी थी, लेकिन इससे पहले उनका राजनीतिक अनुभव छात्र राजनीति तक ही सीमित था।