22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की जान चली गई, दर्जनों घायल हुए, और देश में ग़ुस्से की लहर दौड़ पड़ी। लेकिन इस त्रासदी के बीच एक और सवाल उठा: क्या सुरक्षा चूक को लेकर सरकार से सवाल पूछना ग़लत है? आज केंद्र की बीजेपी सरकार और उसके कार्यकर्ता उन लोगों को निशाना बना रहे हैं, जो पहलगाम हमले में सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं। यहाँ तक कि ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ राष्ट्रद्रोह (BNS धारा 152) और सामाजिक वैमनस्य फैलाने जैसे गंभीर आरोपों में एफ़आईआर दर्ज की जा रही हैं। 

लेकिन क्या ये वही बीजेपी नहीं, जिसने 2008 के मुंबई हमले के बाद तत्कालीन मनमोहन सरकार पर तीखे हमले किए थे? क्या उस समय मनमोहन सरकार ने बीजेपी के ख़िलाफ़ वैसी ही कार्रवाई की, जैसी आज मोदी सरकार कर रही है? आइए, इतिहास और वर्तमान के इस दोहरे रवैये को समझें।

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मुंबई हमला 2008: बीजेपी का रुख

26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया। 166 लोग मारे गए और पूरे देश में हाहाकार मच गया। पाकिस्तान से आए आतंकियों, जिनमें अजमल कसाब शामिल था, ने ताज होटल और ओबेरॉय ट्राइडेंट जैसे स्थानों को निशाना बनाया। सुरक्षा एजेंसियों को आतंकियों का खात्मा करने में कई दिन लगे।

ऐसे समय में, जब देश को एकजुटता की जरूरत थी, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 28 नवंबर को मुंबई पहुँचे। ऑपरेशन के बीच उन्होंने ओबेरॉय ट्राइडेंट के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और केंद्र की मनमोहन सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा:

कल राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री का संदेश निराशाजनक था। पहली बार पाकिस्तान ने समुद्री मार्ग से आतंकवाद का ऑपरेशन किया। मैंने कहा था कि जब्त बोटों का दुरुपयोग होगा। यह कितना गंभीर मसला है। प्रधानमंत्री तत्काल सभी मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाएँ। नेवी, कोस्ट गार्ड को मज़बूत करें।
नरेंद्र मोदी
गुजरात के तत्कालीन सीएम, मुंबई हमले पर

इसी दिन, बीजेपी ने एक और विवादास्पद कदम उठाया। 28 नवंबर 2008 को दिल्ली के अखबारों में उनके विज्ञापन छपे, जिनमें मनमोहन सरकार को कमजोर बताते हुए मुंबई हमले को रोकने में नाकामी का आरोप लगाया गया। इन विज्ञापनों में बीजेपी को वोट देने की अपील थी, क्योंकि 29 नवंबर को दिल्ली विधानसभा चुनाव होने थे। लेकिन दिल्ली की जनता ने इस रणनीति को नकार दिया, और शीला दीक्षित तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।

मनमोहन सरकार ने क्या किया?

मुंबई हमले के बाद मनमोहन सिंह ने 11 दिसंबर 2008 को संसद में खड़े होकर देश से माफी माँगी। उन्होंने कहा: “मैं पूरे देश से माफी माँगता हूँ, क्योंकि हम इस तरह की घटना को रोकने में असफल रहे।” गृहमंत्री शिवराज पाटिल और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने इस्तीफा दे दिया। अजमल कसाब को दुनिया के सामने पेश कर उसके पाकिस्तानी होने का सबूत दिया गया, और मुकदमे के बाद उसे फाँसी दी गई। इस घटना ने पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के निर्यातक के रूप में बेनकाब किया।

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सवाल पूछने की सजा

आज, जब पहलगाम हमले को लेकर सवाल उठ रहे हैं, तो सरकार और बीजेपी का रवैया बिल्कुल उलट है। जो लोग सुरक्षा चूक पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें देशद्रोही क़रार दिया जा रहा है। दो उदाहरण इस दमनकारी रवैये को साफ़ दिखाते हैं:

नेहा सिंह राठौर, मशहूर भोजपुरी लोकगायिका, जो सामाजिक मुद्दों पर अपने गीतों से जानी जाती हैं। पहलगाम हमले के बाद उन्होंने एक वीडियो में पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि हमले का इस्तेमाल बिहार चुनाव में राजनीतिक लाभ के लिए हो सकता है। बस, उनकी इस टिप्पणी से “भावनाएँ आहत” हो गईं, और लखनऊ के हजरतगंज थाने में उनके खिलाफ FIR दर्ज कर दी गई। उन पर राष्ट्रद्रोह, सामाजिक वैमनस्य, और राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुँचाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए।

डॉ. माद्री काटुटी (डॉ. मेडुसा), जो लखनऊ विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, अपने व्यंग्यात्मक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने पहलगाम हमले के बाद कहा: “धर्म पूछकर गोली मारना आतंकवाद है, लेकिन धर्म पूछकर लिंच करना, नौकरी से निकालना, मकान न देना, बुलडोजर चलाना भी आतंकवाद है।”

डॉ. मेडुसा के बयान के ख़िलाफ़ बीजेपी से जुड़े छात्र संगठन ABVP ने विश्वविद्यालय में धरना दिया, और हसनगंज थाने में उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई गई। विश्वविद्यालय ने भी उन्हें नोटिस जारी किया।

शंकराचार्यों के सवाल

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पहलगाम हमले पर सवाल उठाते हुए कहा: “जब हमारे घर में चौकीदार है और घटना होती है, तो सबसे पहले चौकीदार को पकड़ेंगे। लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं हो रहा।” ज़ाहिर है वे प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बना रहे थे। उधर, गोवर्धनमठ, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद ने तो कुछ महीने पहले पीएम मोदी को आतंकवाद का पक्षधर तक कह डाला था। ये बयान बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने X पर शेयर किया था। उन्होंने कहा था, “यदि देश में मज़बूत न्याय व्यवस्था होती तो मोदी और योगी जेल में होते।” लेकिन इन शंकराचार्यों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। साफ़ है कि सरकार चुनिंदा लोगों को निशाना बना रही है—वो, जो कमजोर हैं, जिनकी आवाज़ को आसानी से दबाया जा सकता है।

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पहलगाम हमले के बाद मोदी सरकार ने क्या किया?

  • सर्वदलीय बैठक बुलाई गई, लेकिन पीएम मोदी इसमें शामिल नहीं हुए।
  • 29 अप्रैल 2025 तक पीएम ने देश को संबोधित नहीं किया।  
  • सरकार ने सुरक्षा चूक मानी, लेकिन किसी मंत्री या अधिकारी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया।
  • विपक्ष की संसद का विशेष सत्र बुलाने की माँग को अनसुना किया गया।
  • पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने से सरकार ने परहेज किया।

इसके उलट, बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता हमले के बाद मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहे हैं। सांसद निशिकांत दुबे ने एक्स पर लिखा: 

“अल्पसंख्यकों को ज्यादा अधिकार देकर हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने वालों को बताना चाहिए कि पहलगाम की हत्या धर्म के आधार पर हुई या नहीं?” (24 अप्रैल 2025)  

“5 लाख पाकिस्तानी महिलाएँ शादी करके भारत में हैं।” (25 अप्रैल 2025)

हालाँकि बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने इन बयानों को निजी बताकर पल्ला झाड़ लिया, लेकिन दुबे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका नतीजा ये है कि बीजेपी के छोटे-मोटे नेता और विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में मुस्लिम-विरोधी माहौल बना रहे हैं। क्या ये ध्रुवीकरण की सियासत नहीं? क्या ये देश को बाँटने की कोशिश नहीं?

सवाल पूछना गुनाह क्यों?

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सरकार की आलोचना देश की आलोचना है? अगर ऐसा है तो 2008 में मुंबई हमले के समय बीजेपी का रुख भी देशद्रोह की श्रेणी में आएगा। उस समय नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन के बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बीजेपी ने दिल्ली चुनाव में हमले का इस्तेमाल किया। लेकिन तब किसी ने उन पर देशद्रोह का आरोप नहीं लगाया।

कुछ लोग कहते हैं कि सरकार की आलोचना से पाकिस्तान को मदद मिलती है। तो क्या मुंबई हमले के बाद बीजेपी के बयानों और विज्ञापनों से पाकिस्तान को फ़ायदा हुआ था? और सबसे अहम सवाल: क्या सांप्रदायिकता और नफ़रत फैलाकर आतंकवाद से लड़ा जा सकता है?

जब देश की एकजुटता सबसे ज़रूरी है, तब धर्म के आधार पर देश को बाँटने की कोशिश क्या देशभक्ति है, या देशद्रोह?

पहलगाम और मुंबई के हमले हमें एक ही सबक देते हैं: आतंकवाद से लड़ने के लिए देश की एकजुटता जरूरी है। लेकिन जब सरकार सवाल पूछने वालों को देशद्रोही करार देती है, और उसके नेता नफरत फैलाने में जुट जाते हैं, तो ये एकजुटता खतरे में पड़ जाती है। क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटना सही है? क्या सांप्रदायिकता की आग में देश को झोंकना आतंकवाद का जवाब है? ये सवाल सिर्फ सरकार के लिए नहीं, हम सबके लिए हैं।