हाल के भारत पाक संघर्ष के बाद राफ़ेल को लेकर बवाल मचा हुआ है। इस पर तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं। लंदन स्थित अख़बार द टेलीग्राफ़ की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला दावा किया गया कि कम से कम एक राफेल विमान को हवा में मार गिराया गया। हालाँकि, रिपोर्टें ऐसी भी आई हैं कि भारत की ओर से इस दावे को खारिज किया गया है। द टेलीग्राफ़ ने रिपोर्ट दी थी कि चीन के J-10C लड़ाकू विमान चुपके से उड़ान भर रहे थे। और PL-15 मिसाइलें भी थीं जो 300 किमी से अधिक की रेंज और सुपरसोनिक यानी आवाज़ की गति से भी तेज़ हमला करती हैं। ऐसी ही रिपोर्टों के बाद राफ़ेल फिर से सुर्खियों में आ गया है।

वैसे, राफ़ेल पिछले कुछ वर्षों से भारत में चर्चा का केंद्र रहा है। यह विमान अपनी तकनीकी क्षमताओं और भारत-फ्रांस के बीच हुए रक्षा सौदे के कारण भी सुर्खियों में रहा है। इस सौदे से जुड़े विवादों, राजनीतिक बहसों और राफ़ेल की विशेषताओं ने इसे एक हॉट टॉपिक बना दिया है। आइए, इस विषय को विस्तार से समझते हैं।

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राफ़ेल क्यों सुर्खियों में है?

राफ़ेल विमान भारत और फ्रांस के बीच हुए एक बड़े रक्षा सौदे का हिस्सा है। इसके तहत भारत ने फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन से 36 राफ़ेल लड़ाकू विमान खरीदे। यह सौदा 2016 में 59,000 करोड़ रुपये में हुआ था। हाल ही में 2025 में 26 राफ़ेल मरीन (Rafale-M) विमानों की खरीद के लिए 63,000 करोड़ रुपये का एक और समझौता हुआ। ये विमान भारतीय नौसेना के लिए हैं, जिनकी आपूर्ति 2028 से शुरू होगी।

यह भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदों में से एक है, जिसकी लागत और रणनीतिक महत्व ने इसे चर्चा का विषय बनाया। सौदे की प्रक्रिया, लागत, और कथित अनियमितताओं को लेकर विपक्षी दलों ने कई सवाल उठाए। खास तौर पर बिचौलियों को कमीशन और सौदे में पारदर्शिता की कमी के आरोप ने इसे विवादास्पद बनाया।

अप्रैल 2025 में भारत और फ्रांस ने 26 राफ़ेल मरीन विमानों के लिए एक और समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसने इस सौदे को फिर से सुर्खियों में ला दिया।

राफ़ेल विमान भारतीय वायुसेना और नौसेना की ताक़त को बढ़ाने में अहम हैं, खासकर जब भारत का सामना चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से है।

राफ़ेल सौदा कई कारणों से विवादों में

बिचौलियों के कमीशन के आरोप: फ्रांसीसी मीडिया ने 2021 में दावा किया था कि दसॉ एविएशन ने भारत में एक बिचौलिये को 1 मिलियन यूरो (लगभग 10 करोड़ रुपये) का गिफ्ट दिया था। कुछ रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया कि 7.5 मिलियन यूरो का कमीशन एक बिचौलिये को दिया गया ताकि सौदा सुनिश्चित हो सके। इन आरोपों ने सौदे की पारदर्शिता पर सवाल उठाए।

  • भारत में कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने इन आरोपों को आधार बनाकर सरकार पर भ्रष्टाचार और ग़लत प्रक्रिया अपनाने के आरोप लगाए।
  • हालांकि, भारत और फ्रांस दोनों सरकारों ने इन आरोपों को खारिज किया और दावा किया कि सौदा पूरी तरह पारदर्शी था।

लागत पर सवाल: 2016 के सौदे में प्रति विमान की लागत को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए। यूपीए सरकार के समय की प्रस्तावित 126 विमानों की डील की तुलना में 36 विमानों की डील को अधिक महंगा बताया गया। विपक्ष ने दावा किया कि प्रति विमान की क़ीमत बढ़ाई गई।

ऑफसेट पार्टनर का चयन: सौदे के तहत दसॉ एविएशन को भारत में 50% ऑफसेट निवेश करना था। इसके लिए रिलायंस डिफेंस को पार्टनर चुना गया, जिसे लेकर विवाद हुआ। विपक्ष ने आरोप लगाया कि रिलायंस का चयन ग़लत था और इसमें सरकारी दबाव था।

सोर्स कोड और कस्टमाइजेशन: हाल की कुछ पोस्टों में दावा किया गया कि फ्रांस ने भारत को राफ़ेल के सोर्स कोड देने से इनकार कर दिया, जिससे भारत अपनी ज़रूरतों के हिसाब से विमान को पूरी तरह कस्टमाइज़ नहीं कर सकता। यह भी विवाद का एक नया पहलू बन गया है।

विश्लेषण से और

दसॉ कंपनी और भारत द्वारा राफ़ेल की खरीद

दसॉ एविएशन एक फ्रांसीसी कंपनी है, जो रक्षा और नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में जानी जाती है। यह राफ़ेल लड़ाकू विमान की निर्माता है। भारत ने दसॉ से दो बड़े सौदे किए हैं। भारत ने 36 राफ़ेल विमान खरीदे, जो भारतीय वायुसेना के लिए थे। यह सौदा 59,000 करोड़ रुपये में हुआ था। ये विमान 2020-2022 के बीच भारत को सौंपे गए।

अप्रैल 2025 में भारत ने 26 राफ़ेल मरीन विमानों की खरीद के लिए 63,000 करोड़ रुपये का समझौता किया। ये विमान भारतीय नौसेना के लिए हैं, जो विमानवाहक पोतों पर तैनात होंगे। पहला विमान 2028 में भारत पहुंचेगा।

विवाद किस किस बात पर?

  • सौदे की प्रक्रिया और कीमत को लेकर विपक्ष ने पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया।
  • फ्रांसीसी मीडिया के दावों ने सौदे में बिचौलियों की भूमिका पर सवाल उठाए।
  • पहले प्रस्ताव में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल को राफ़ेल के उत्पादन का हिस्सा बनाना था, लेकिन 2016 की डील में एचएएल को बाहर रखा गया, जिससे विवाद बढ़ा।
  • रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर बनाए जाने पर विपक्ष ने सवाल उठाए।

राफ़ेल विमान की खासियत

  • राफ़ेल एक मल्टी-रोल लड़ाकू विमान है, जिसे दसॉ एविएशन ने डिज़ाइन किया है। इसे ‘ओमनीरोल’ विमान कहा जाता है, क्योंकि यह कई तरह के मिशनों में सक्षम है। 
  • राफ़ेल हवा में दुश्मन के विमानों को मार गिराने में सक्षम है।
  • यह जमीनी ठिकानों पर सटीक हमले कर सकता है।
  • राफ़ेल-एम समुद्री लक्ष्यों पर हमला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोतों जैसे INS विक्रांत पर तैनात होगा।
  • इसमें एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) रडार है, जो कई टार्गेट को एक साथ ट्रैक कर सकता है।
  • राफ़ेल में SPECTRA सिस्टम है, जो दुश्मन के रडार और मिसाइलों को जाम कर सकता है।
  • यह मेटियोर यानी लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल, SCALP क्रूज़ मिसाइल, और अन्य उन्नत हथियार ले जा सकता है।

गति और रेंज

  • राफ़ेल की अधिकतम गति 1.8 मैक (लगभग 2,200 किमी/घंटा) है।
  • इसकी रेंज 3,700 किमी तक है, जो इसे लंबी दूरी के मिशनों के लिए उपयुक्त बनाती है।
  • भारत के लिए राफ़ेल विमानों में विशेष बदलाव किए गए हैं।
  • राफ़ेल मरीन विमानवाहक पोतों से संचालित होने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

रणनीतिक महत्व क्या है?

राफ़ेल विमान भारत की रक्षा क्षमताओं को कई गुना बढ़ाते हैं। खासकर, चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव के बीच, ये विमान भारतीय वायुसेना और नौसेना को रणनीतिक बढ़त देते हैं। राफ़ेल-एम भारतीय नौसेना के विमानवाहक बेड़े को मजबूत करेगा, जिससे भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति को और सशक्त कर सकेगा।

राफ़ेल विमान अपनी उन्नत तकनीक और रणनीतिक महत्व के कारण भारत के लिए एक अहम पूंजी है। हालाँकि, सौदे से जुड़े विवादों, खासकर बिचौलियों के कथित कमीशन और पारदर्शिता की कमी के आरोपों ने इसे राजनीतिक बहस का विषय बना दिया। फ्रांस और भारत दोनों ने इन आरोपों को खारिज किया है, लेकिन विपक्षी दलों और कुछ मीडिया रिपोर्टों ने इसे बार-बार उठाया है।

मल्टी-रोल क्षमता, उन्नत रडार, और कस्टमाइजेशन जैसी राफ़ेल की खासियतें इसे भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक गेम-चेंजर बनाती हैं। 2025 की नई डील और भारत में उत्पादन सुविधाओं की शुरुआत से यह सौदा और अहम हो गया है।