जन सुराज पार्टी के संस्थापक और मशहूर राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा न लेने का ऐलान कर सभी को चौंका दिया है। इस फैसले ने बिहार की राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से प्रभावित करने की संभावना जताई जा रही है। उनकी पार्टी के तमाम नेता प्रशांत के राघोपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान करते फिर रहे हैं। इन बयानों को बल तब मिला जब राघोपुर से ही प्रशांत किशोर ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की। राघोपुर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की परंपरागत सीट है।
प्रशांत किशोर ने 12 अक्टूबर को अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए राघोपुर से तेजस्वी यादव को "अमेठी जैसी हार" देने का दावा किया था। उन्होंने तेजस्वी यादव को चुनौती देते हुए कहा था कि जनसुराज राघोपुर में तेजस्वी को हराकर एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर करेंगे। इस बयान में अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी का जिक्र था, क्योंकि अमेठी में राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। किशोर का यह बयान तेजस्वी और आरजेडी के खिलाफ एक मजबूत हमले के रूप में देखा गया था, जिसने बिहार की राजनीति में खासी हलचल मचाई थी। प्रशांत किशोर ने यह भी कहा था कि तेजस्वी दूसरी सीट पर चुनाव लड़ने को मजबूर होंगे। 

प्रशांत किशोर ने बुधवार को अपने इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा, "अगर मैं चुनाव लड़ता हूं, तो जन सुराज के कई उम्मीदवारों को नुकसान हो सकता है। इसलिए, पार्टी के हित में मुझे वही काम करने की जिम्मेदारी दी गई है, जो मैं अभी कर रहा हूं।"
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राजनीतिक दलों ने कहा- प्रशांत किशोर ने बिना लड़े हार मानी  

आरजेडी, बीजेपी और जेडीयू ने प्रशांत किशोर के पीछे हटने पर अपनी प्रतिक्रिया दी। आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जन सुराज पार्टी के संस्थापक को एहसास हो गया है कि आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें और उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ेगा। तिवारी ने कहा कि किशोर को यह समझना होगा कि राजनीति राजनीतिक दलों को सलाह देने जितना आसान नहीं है। उन्होंने आगे कहा, "किशोर का टायर पंक्चर हो गया है।"
बिहार बीजेपी प्रवक्ता नीरज कुमार ने भी इसी तरह का बयान दिया और कहा कि किशोर ने अपनी और अपनी पार्टी की हार स्वीकार कर ली है। कुमार ने कहा, "चुनाव से पहले ही किशोर का बुलबुला फूट गया। चुनाव न लड़ने की घोषणा करके उन्होंने अपनी और अपनी पार्टी की हार स्वीकार कर ली है। उन्हें चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ेगा।" नीरज कुमार ने कहा कि किशोर का यह कदम "उनके कार्यकर्ताओं के लिए बेहद शर्मनाक" है। उन्होंने पूछा, "चुनावी मुकाबले से पहले ही वह भाग गए हैं। इससे पहले, उन्होंने लोगों के मुद्दों को समझने के लिए पदयात्राएँ करने का दावा किया था। उसका क्या हुआ?"
जन सुराज पार्टी ने अब तक 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा के लिए 116 उम्मीदवारों की घोषणा की है।

क्या है प्रशांत किशोर की रणनीति? 

प्रशांत किशोर ने अपनी चुनावी मुहिम की शुरुआत तेजस्वी यादव को "अमेठी जैसी हार" देने का दावा करके की थी। उनकी योजना राघोपुर सीट से चुनाव लड़ने की थी, जो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव का गढ़ मानी जाती है। हालांकि, मंगलवार को पार्टी ने सबको आश्चर्यचकित करते हुए राघोपुर से चंचल सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित किया। जन सुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह ने चंचल सिंह को पार्टी का चुनाव चिह्न सौंपा। चंचल सिंह अरबपति कारोबारी हैं। 
प्रशांत किशोर के इस कदम ने कई अटकलों को जन्म दिया है। कुछ लोग इसे तेजस्वी यादव के साथ किसी गुप्त समझौते का परिणाम मान रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि तेजस्वी की मजबूत स्थिति ने प्रशांत किशोर को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर का यह फैसला एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। उनका मानना है कि जन सुराज अभी अपनी जड़ें मजबूत करने के शुरुआती चरण में है, और बिना मजबूत संगठन के स्वयं चुनाव लड़ना जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए, किशोर ने पहले पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि तेजस्वी को चुनौती देने के बाद चुनाव न लड़ने का फैसला भले ही पीछे हटने जैसा लगे, लेकिन यह एक लंबी लड़ाई की तैयारी भी हो सकती है। किशोर यह अच्छी तरह जानते हैं कि बिहार की राजनीति में जीत केवल सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि लोगों की सोच बदलने की भी जरूरत है।
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प्रशांत किशोर का यह कदम बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर सकता है। जन सुराज पार्टी अब राघोपुर सहित अन्य सीटों पर अपने उम्मीदवारों के जरिए तेजस्वी यादव और अन्य बड़े नेताओं को चुनौती देने की कोशिश करेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि किशोर की यह रणनीति बिहार के मतदाताओं पर कितना प्रभाव डाल पाती है।