बच्चन साहब से मेरा एक ही जुड़ाव है। वह भी इलाहाबाद में बेली रोड पर रहते थे और मैं भी। वह दिन मैं कभी नहीं भूलता जब वह कांग्रेस के टिकट पर अपना पर्चा दाख़िल करने कचहरी गए थे और जब वापस गए तब तक कचहरी की वह जिद्दी दीवार ढह चुकी थी और चारों ओर बिखरी ईंटें अपनी तबाही पर रो रही थीं। बच्चन साहब को जब यह बात मैंने बताई तो वह मुस्कुराए बग़ैर न रह सके।