Bihar SIR: Stalin attacks ECI: तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया की आलोचना करते हुए इसे साजिश बताया। उधर, आयोग ने कहा कि पहले चरण में बिहार की मतदाता सूची से 66 लाख नाम हटाए गए हैं।
स्टालिन का चुनाव आयोग पर हमला
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने बिहार में चुनाव आयोग (ECI) द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन संशोधन (SIR) की प्रक्रिया पर तीखा हमला बोला है। स्टालिन ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए कहा, "आग से मत खेलो।" उन्होंने आरोप लगाया कि SIR के जरिए वंचित और असहमति जताने वाली जातियों, विशेष रूप से मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के वोटरों को सूची से हटाया जा रहा है, ताकि बीजेपी को फायदा हो। स्टालिन ने इसे सुधार नहीं, बल्कि "चुनावी परिणामों को इंजीनियर करने" की साजिश करार दिया। इस बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि एसआईआर का पहला चरण पूरा हो चुका है और 66 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम बिहार की मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं।
स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु इस अन्याय के खिलाफ हर लोकतांत्रिक हथियार का इस्तेमाल करेगा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह प्रक्रिया अन्य राज्यों में लागू हुई, तो इसका कड़ा विरोध होगा। उन्होंने कहा- बिहार में जो हुआ उससे पता चलता है कि 'दिल्ली सरकार' जानती है कि जो मतदाता एक बार उसे वोट देंगे, वही उसे सत्ता से बाहर कर देंगे। मुख्यमंत्री ने कहा, "इसीलिए वह उन्हें वोट देने से ही रोकने की कोशिश कर रही है। अगर आप हमें हरा नहीं सकते, तो हमें मिटाना चाहते हैं। आग से मत खेलो। हमारे लोकतंत्र पर किसी भी खतरे का कड़ा प्रतिरोध किया जाएगा।" इस बीच, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने तमिलनाडु की मुख्य निर्वाचन अधिकारी अर्चना पटनायक से मतदाता सूची के एसआईआर से पहले फौरन इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाने का आग्रह किया।
गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों का विरोध
स्टालिन के साथ-साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों ने भी SIR की प्रक्रिया की आलोचना की है। ममता ने इसे "राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को पीछे के रास्ते से लागू करने" की कोशिश बताया। उनका कहना है कि बिहार में शुरू हुई यह प्रक्रिया जल्द ही अन्य राज्यों में लागू हो सकती है, जिससे अल्पसंख्यकों और गरीबों का मताधिकार छीना जा सकता है।
66 लाख से ज्यादा नाम हटाए गए
चुनाव आयोग ने बताया कि बिहार में SIR की पहली चरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिसमें 7.9 करोड़ वोटरों में से लगभग 66 लाख नाम वोटर सूची से हटाए गए हैं। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मृत, डुप्लिकेट, या गैर-नागरिक वोटरों को हटाने के लिए जरूरी थी। ECI ने यह भी कहा कि बिहार में 2003 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर वोटर सूची की जांच हो रही है, ताकि "सही मतदाता सूची" सुनिश्चित हो।
विवाद का केंद्र: 11 दस्तावेज
ECI ने SIR के तहत 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिसमें आधार, राशन कार्ड और पुराने वोटर आईडी को शामिल नहीं किया गया है। 1987 के बाद जन्मे वोटरों को अपने माता-पिता की नागरिकता का प्रमाण देना होगा, जो काफी लोगों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। बिहार जैसे राज्य में, जहां जन्म प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेजों की उपलब्धता कम है, यह प्रक्रिया लाखों वोटरों को मताधिकार से वंचित करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को ECI से आधार, राशन कार्ड और EPIC को प्रमाण के रूप में स्वीकार करने पर विचार करने को कहा था, लेकिन चुनाव आयोग ने इसके लिए साफ मना कर दिया।
विपक्ष का हंगामा और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, RJD और DMK ने SIR को "वोटर दमन" की नीति करार दिया है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने पटना में विरोध मार्च निकाला, जिसमें उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया बीजेपी के खिलाफ वोट देने वाली जातियों को निशाना बना रही है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 28 जुलाई को अगली सुनवाई होनी है, जहां याचिकाकर्ताओं ने SIR को असंवैधानिक और मनमाना बताया है।चुनाव आयोग ने दावा किया कि SIR का उद्देश्य केवल भारतीय नागरिकों को वोटिंग का अधिकार सुनिश्चित करना है। आयोग ने कहा कि बिहार में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोगों के नाम वोटर सूची में पाए गए, जिन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया जाएगा। ECI ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन वोटरों ने 25 जुलाई तक दस्तावेज जमा नहीं किए, वे दावे और आपत्ति की अवधि में ऐसा कर सकते हैं।
बिहार में नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले SIR ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे "लोकतंत्र पर हमला" करार देते हुए चुनाव बहिष्कार की धमकी दी है। दूसरी ओर, बीजेपी ने SIR का बचाव करते हुए विपक्ष पर "भय फैलाने" का आरोप लगाया है।