गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के लिए राज्यसभा में प्रस्ताव पेश कर दिया। पर सवाल यह है कि क्या सरकार इसके बाद की स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है?
जम्मू-कश्मीर में क़रीब दो हफ्ते का सस्पेंस ख़त्म करते हुए मोदी सरकार ने एक बड़ा फ़ैसला कर लिया। फ़ैसला बड़ा ही नहीं, कड़ा भी है। मोदी सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों के बीच रास्ता निकालते हुए संविधान के अनुच्छेद 370 को संविधान में बनाए रखते हुए इसे पूरी तरह निष्प्रभावी बना दिया है।
अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 'ए' के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को मिले सभी विशेष अधिकार ख़त्म करने का प्रस्ताव सरकार ने राज्यसभा में रखा है। जम्मू कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है। जम्मू-कश्मीर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा तो होगी, लेकिन लद्दाख़ की अपनी विधानसभा नहीं होगी।
राजनीतिक भूचाल?
मोदी सरकार के इस बड़े और कड़े फ़ैसले के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ गया है। जिस वक्त गृह मंत्री अमित शाह राज्यसभा में इस फ़ैसले का ऐलान कर रहे थे, पीडीपी के सांसदों ने राज्यसभा में संविधान की प्रति फाड़ कर विरोध जताया। राज्यसभा में कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद भी धरने पर बैठ गए। पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने सरकार के इस फ़ैसले का विरोध करते हुए इस दिन को काला दिवस करार दिया है।
तमाम मुद्दों पर बीजेपी से असहमति रखने वाली बीएसपी ने सरकार के इस फ़ैसले का दिल खोल कर स्वागत किया है। लेकिन एनडीए में शामिल बीजेपी के कई सहयोगी दलों ने इस फैसले पर असहमति जताई है।
जनता दल यूनाइटेड ने साफ़ तौर पर कहा है कि यह बीजेपी का फ़ैसला है, एनडीए का नहीं। सरकार ने यह फ़ैसला करने से पहले उनसे कोई सलाह मशवरा नहीं किया है। इस प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान उनके सांसद सदन में मौजूद नहीं रहेंगे।
अजेंडा लागू कर रही है बीजेपी?
इस फ़ैसले के बाद बीजेपी ख़ेमे में ग़ज़ब का उत्साह है। पार्टी की तरफ से हर मंच पर कहा जा रहा है कि पार्टी ने अपने वादे के मुताबिक़ अपने मुख्य मुद्दों पर अमल करना शुरू कर दिया है। बता दें कि भारतीय जनसंघ के जमाने से ही जम्मू-कश्मीर से बीजेपी का लक्ष्य रहा है कि अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल किया जाए, राज्य को मिले सभी विशेषाधिकार ख़त्म किया जाएँ।
हालाँकि बीजेपी के लिए अभी अपने इस फ़ैसले को संसद के दोनों सदनों में पास कराने की चुनौती है, लोकसभा में तो बीजेपी इस फ़ैसले को आसानी से पास करा लेगी। वहाँ उसका प्रचंड बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है और अभी यह भी देखना होगा कि बाकी राजनीतिक दल इस मोदी सरकार के इस फ़ैसले को किस तरह लेते हैं।
हाल ही में बीजेपी ने बहुमत ना होने के बावजूद जिस तरह ट्रिपल तलाक़ विधेयक, आरटीआई संशोधन विधेयक के अलावा एनआईए और यूपीए संशोधन विधेयक भारी बहुमत से पास कराया है, उसे देखते हुए बीजेपी आश्वस्त है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने वाले उसके प्रस्ताव को वह राज्यसभा में भी आसानी से पास करा लेगी।
अगर किसी वजह से राज्यसभा में बीजेपी प्रस्ताव नहीं पास करा पाती तो इसके लिए बीजेपी संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन को बुलाकर भी पास करा सकती है। साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पोटा विधेयक के राज्यसभा में गिरने के बाद उसे संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर ही पास कराया था।
कांग्रेस को दिखाया आईना
अशांति की आशंका
सरकार को इस बात का अंदाजा था कि इस बड़े और कड़े फ़ैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात बेक़ाबू हो सकते हैं। लिहाजा जम्मू-कश्मीर में हालात संभालने के लिए पहले सुरक्षा बलों की सौ कंपनियाँ यानी 10,000 जवान भेजे गए। उसके कुछ दिन बाद ही 25,000 जवान और भेजे गए। सोमवार को 8,000 जवानों की जम्मू-कश्मीर में तैनात की गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर उपद्रव की आशंका है। इसीलिए सरकार ने हालात संभालने के लिए पहले से पुख़्ता इंतजाम किए हैं।
कैसे संभालेंगे लोगों का गुस्सा?
केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से जम्मू-कश्मीर की आम जनता में नाराज़गी और ग़ुस्सा फैल सकता है। इसे संभालना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। वहाँ की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस की स्थानीय इकाई और हाल ही में वजूद में आई पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फ़ैसल की पार्टियाँ सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। पूरे राज्य में धारा 144 लगी हुई है। इसलिए भीड़ के रूप में इकट्ठा होकर इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ लोग बाहर नहीं निकल सकते। सरकार ने फ़ैसला करने से पहले रात में ही राज्य की मुख्य पार्टियों के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला को नज़रबंद कर दिया था। सरकार के इस कदम को राज्य की सभी पार्टियाँ लोकतंत्र के ख़िलाफ़ बता रहे हैं।
विरोध की परवाह नहीं
राजनीति पार्टियाँ कुछ भी कहें, मोदी सरकार अपने अजेंडे पर अपने हिसाब से चल रही है। उसे किसी के विरोध की परवाह नहीं है। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि बीजेपी ने भले ही नारा 'कांग्रेस मुक्त' सरकार भारत का दिया हो लेकिन वह 'मुस्लिम मुक्त' भारत की दिशा में कदम बढ़ा रही है। जम्मू-कश्मीर के देश का अकेला राज्य है, जहाँ का मुख्यमंत्री मुसलमान होता है। चूंकि जम्मू-कश्मीर की मौजूदा विधानसभा में मुसलिम बहुल कश्मीर घाटी में विधानसभा की 42 सीटें हैं और हिंदू बहुल जम्मू में 37 सीटें हैं। चार सीटें लद्दाख क्षेत्र में आती हैं। कश्मीर घाटी की ज्यादा सीटें होने की वजह से मुख्यमंत्री हमेशा मुसलमान ही होता है।
बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में पहली बार हिंदू मुख्य मंत्री बनाने की बात कही थी। हालाँकि यह बात बीजेपी के घोषणापत्र में नहीं थी, बीजेपी के तमाम नेताओं ने यह कह कर चुनाव लड़ा था कि जम्मू-कश्मीर में पहली बार हिन्दू मुख्य मंत्री बनेगा।
परिसीमन की राजनीति
बीजेपी पहले ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा के परिसीमन का फ़ैसला कर चुकी है और परिसीमन की प्रक्रिया भी जारी है। अगर आबादी के हिसाब से देखा जाए तो कश्मीर घाटी की आबादी जम्मू के मुक़ाबले कम है। परिसीमन होने के बाद यह तय है कि जम्मू में विधानसभा की सीटें ज्यादा होगी और कश्मीर में सीटें कम हो जाएँगी। उस स्थिति में बीजेपी जम्मू कश्मीर में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश होगा। वहां विधानसभा नहीं होगी। तो लद्दाख में आने वाली 4 विधानसभा सीटें जम्मू-कश्मीर विधानसभा से कम हो जाएँगी।
बीजेपी की तरफ से कहा जा रहा है कि राज्य में सतत विकास और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए यह फ़ैसला बेहद ज़रूरी था। दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से वहाँ विकास की गति बढ़ेगी। पूंजी निवेश आएगा। नए उद्योग खुलेंगे। स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा।