सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी के खिलाफ मतदाता सूची धोखाधड़ी के आरोपों की SIT जांच की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया। कोर्ट ने कहा- याचिकाकर्ता चुनाव आयोग के सामने अपनी शिकायत रखें।
राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट
राहुल गांधी ने जिस बेंगलुरु सेंट्रल वाली महादेवपुरा सीट पर 2024 के चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर के बड़े आरोप लगाए थे उसकी एसआईटी जाँच की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से भी इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनने से इनकार करते हुए साफ़ तौर पर कह दिया कि चुनाव आयोग में जाइए।
हालाँकि, चुनाव आयोग राहुल गांधी के आरोपों को पहले ही सिरे से खारिज कर चुका है। साफ़ है कि यदि संस्था गड़बड़ी को मानने को तैयार ही नहीं है तो क्या वह ऐसी किसी जाँच के लिए सहमत हो सकती है। वैसे भी चुनाव आयोग ने अब तक किसी गड़बड़ी की संभावना से भी इनकार किया है। इन्हीं परिस्थितियों में रोहित पांडे नाम के एक शख्स ने याचिका दायर की थी।
जस्टिस सूर्य कांत और जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे इस मामले को भारत के चुनाव आयोग यानी ईसीआई के सामने आगे बढ़ाएं। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उन्होंने पहले ही निर्वाचन आयोग के सामने आवेदन किया है, लेकिन आयोग ने अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। वकील ने आयोग को निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने की मांग की, लेकिन खंडपीठ ने ऐसा कोई निर्देश देने से मना कर दिया।
खंडपीठ ने इस मामले को सुनने से इनकार कर दिया। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हमने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनी हैं। हम इस याचिका को सुनने के लिए इच्छुक नहीं हैं, जो कथित तौर पर जनहित में दायर की गई है। याचिकाकर्ता, यदि चाहें, तो चुनाव आयोग के सामने इस मामले को आगे बढ़ा सकते हैं।'
याचिका में मांग की गई थी कि मतदाता सूचियों में संशोधन या अंतिम रूप देने की प्रक्रिया तब तक रोक दी जाए जब तक कि न्यायालय के निर्देशों का पालन और मतदाता सूचियों का स्वतंत्र ऑडिट पूरा नहीं हो जाता।
याचिकाकर्ता ने यह भी अनुरोध किया था कि चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों की तैयारी, रखरखाव और प्रकाशन में पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए बाध्यकारी दिशानिर्देश तैयार करने और जारी करने का निर्देश दिया जाए। इसके अलावा याचिका में मांग की गई थी कि मतदाता सूचियों को आसान, मशीन-पठनीय और ओसीआर के अनुरूप प्रारूप में प्रकाशित किया जाए ताकि सही सत्यापन, ऑडिट और सार्वजनिक जांच संभव हो सके।
गड़बड़ी के क्या आरोप?
याचिका में राहुल गांधी की 7 अगस्त की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का हवाला दिया गया, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में कथित हेरफेर का मुद्दा उठाया था। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने विपक्ष के नेता द्वारा उठाए गए आरोपों की स्वतंत्र रूप से जाँच की और 'प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री' पाई कि ये आरोप सही हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस मामले में व्यापक जनहित में सर्वोच्च न्यायालय का तत्काल हस्तक्षेप ज़रूरी है।
याचिकाकर्ता के अनुसार इस निर्वाचन क्षेत्र में 40,009 अवैध मतदाता और 10,452 डुप्लिकेट प्रविष्टियां थीं। उन्होंने दावा किया कि कुछ मामलों में एक ही व्यक्ति के पास अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग EPIC यानी इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड नंबर थे, जबकि EPIC नंबर अद्वितीय होना चाहिए। इसके अलावा कई मतदाताओं के घर के पते और पिता के नाम एकसमान थे। एक मतदान केंद्र में लगभग 80 मतदाताओं ने एक छोटे से घर का पता दिया था। ऐसी घटनाएं मतदाता सूचियों की प्रामाणिकता पर गंभीर संदेह पैदा करती हैं और फर्जी मतदान की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।
याचिकाकर्ता का तर्क
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यदि मतदाता सूची में इतने बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ सिद्ध हो जाती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 के तहत 'एक व्यक्ति, एक वोट' के संवैधानिक जनादेश की नींव को प्रभावित करती है, वैध मतों के मूल्य को कमजोर करती है, और समानता और सही प्रक्रिया के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ऐसी हेरफेर संविधान के अनुच्छेद 326 यानी वयस्क मताधिकार, अनुच्छेद 324 यानी चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन, और अनुच्छेद 14 और 21 यानी कानून के समक्ष समानता और लोकतांत्रिक शासन में सार्थक भागीदारी का अधिकार का उल्लंघन करती है।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फ़ैसले से यह साफ़ है कि मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों के मामले में अब याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग के सामने अपनी शिकायत को आगे बढ़ाना होगा। हालाँकि, अदालत ने आयोग को कोई समय सीमा निर्धारित करने से इनकार कर दिया, जिससे इस मामले में त्वरित कार्रवाई की उम्मीद कम हो सकती है। यह मामला लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता के महत्व पर जोर देता है और चुनाव आयोग की भूमिका अब और भी अहम हो जाती है।