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पटेल की मूर्ति के लिए 300 करोड़ दिए सरकारी कम्पनियों ने

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मू्र्ति बनवाने के लिए केन्द्र सरकार की कम्पनियों ने लगभग तीन अरब रुपये दिए। लेकिन इसके लिए तमाम  नियम-क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाई गईं। नियन्त्रक व महालेखाकार यानी कंप्ट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) ने इस पर कड़ी टिप्पणी की है। केन्द्र सरकार के तहत काम करने वाली 12 कम्पनियों ने कुल मिला कर तीन अरब रुपए उस ट्रस्ट को दिए जो सरदार पटेल की प्रतिमा बनवाने और स्थापित करने के लिए बनाया गया था। दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति लगाने की परियोजना पर काम साल 2015 में शुरू हुआ था।
पहले केंद्र सरकार की योजना आम जनता से पैसे उगाह कर प्रतिमा लगाने की थी। इसके लिए यह कहा गया कि हर घर से पुराना लोहा इकट्ठा किया जाएगा और हर आदमी से उसकी इच्छा के मुताबिक़ पैसे लिए जाएँगे।
ऊपरी तौर पर इसका मक़सद जन-जागरण शुरू करना और इसे एक सार्वजनिक अभियान बनाना था। लेकिन असली मंशा पटेल की विरासत पर कब्जा करने और उसे गुजराती अस्मिता से जोड़ने की थी। 

12 कम्पनियों ने दिए तीन अरब

पर यह नहीं हो सका। ट्रस्ट और सरकार को यह लगने लगा कि पर्याप्त पैसे का इन्तज़ाम इस तरीक़े से नहीं हो सकेगा। इसके बाद प्रधानमन्त्री कार्यालय ने सरकारी कम्पनियों से कहा कि वे इसके लिए पैसे दें। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसी साल पाँच सरकारी कम्पनियों ने लगभग 1.47 अरब रुपये दिए। ये कम्पनियाँ हैं, ओएनजीसी, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम, इंडियन ऑयल और ऑयल इंडिया।
public sector firms flout company laws to fund patel statue - Satya Hindi

क्या होता है सीएसआर?

ये पैसे कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी यानी सीएसआर के तहत दिए गए थे। सीएसआर के तहत यह प्रावधान है कि बड़ी कम्पनियाँ सामाजिक दायित्व का निर्वाह करते हुए अपने लाभ का 2 फ़ीसदी हिस्सा सामाजिक कार्यों पर खर्च करें। इसमें शिक्षा, खेती, सैनिटेशन, रोज़गार, गाँवों और कस्बों का विकास वग़ैरह शामिल हैं। इस मद में जो पैसे खर्च होते हैं, टैक्स में उतने की छूट मिल जाती है।  
सीएजी ने गंभीर आपत्ति दर्ज़ करते हुए कहा है कि इन कंपनियो ने सीएसआर के नियमों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया है। किसी की मूर्ति बनवाना सीएसआर के तहत नहीं आता।

कम्पनियों ने उड़ाईं नियमों की धज्जियाँ

कुछ कम्पनियों ने तर्क दिया कि यह प्रतिमा हेरिटेज से जुड़ी होने के कारण सीएसआर के तहत आती है। पर सवाल यह है कि जो प्रतिमा अभी तक बनी ही नहीं है, वह भला विरासत या हेरिटेज कैसे मानी जा सकती है। कुछ कम्पनियों ने कहा है कि प्रतिमा ही नहीं, जहाँ यह मूर्ति लगाई जाएगी, उसके आसपास स्कूल-कॉलेज भी खोले जाएँगे। पर ऐसा एक भी स्कूल नहीं खुला है, न ही ट्रस्ट की ऐसी कोई योजना है। ट्रस्ट का काम तो मूर्ति बनवा कर स्थापित करवाना है, स्कूल चलाना नहीं। ज़ाहिर है, सरकारी कम्पनियों ने नियम तोड़ कर ही पटेल की मूर्ति के लिए करोड़ों रुपये दिए हैं। लेकिन वे भी क्या करतीं। उनके शीर्ष अधिकारी सम्भवतः सरकारी दबाव के आगे मजबूर थे।
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क़मर वहीद नक़वी
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