रूसी तेल पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंध और उसके सामने भारत के सरेंडर की पुष्टि हो गई है। रिलायंस और इंडियन ऑयल जैसी भारतीय दिग्गज कंपनियों को 21 नवंबर तक आयात बंद करने का समय दिया गया है। इस तरह यूएस राष्ट्रपति ट्रंप की इस मामले में जीत हुई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के रूस पर नए प्रतिबंधों ने भारत की प्रमुख तेल कंपनियों को झटका दिया है। अमेरिका ने रूसी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे भारत की निजी क्षेत्र की रिलायंस और सार्वजनिक क्षेत्र की इंडियनऑयल कॉर्पोरेशन तथा भारत पेट्रोलियम जैसी कंपनियां रूसी कच्चे तेल की खरीद को कम करने या बंद करने पर मजबूर होने जा रही हैं। इन प्रतिबंधों के तहत कंपनियों को 21 नवंबर तक रूसी कंपनियों के साथ लेन-देन खत्म करने का समय दिया गया है। उसके बाद, रूसी तेल खरीदने वाली कंपनियां अमेरिकी बैंकों से वित्तीय सहायता खोने का जोखिम उठाएंगी।
यह प्रतिबंध रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत की तेल आयात रणनीति पर गहरा असर डालेंगे। तीन साल पहले, भारत अपनी तेल जरूरतों का मात्र 2-3 प्रतिशत रूस से आयात करता था, क्योंकि परिवहन लागत अधिक थी। लेकिन युद्ध के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 35 प्रतिशत तक पहुंच गया है और कुछ महीनों में 40 प्रतिशत भी छू चुका है। रिलायंस जैसी कंपनियों ने डिस्काउंट पर रूसी तेल खरीदकर भारी मुनाफा कमाया है।
लंदन स्थित कंसल्टेंसी एनर्जी आस्पेक्ट्स के अनुसार, रिलायंस को पिछले तीन वर्षों में इस सौदे से लगभग 6 अरब डॉलर का फायदा हुआ है। रिलायंस का रोसनेफ्ट के साथ 10 साल का अनुबंध है, जिसमें प्रतिदिन 5 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदने का प्रावधान है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां मुख्य रूप से स्पॉट मार्केट से रूसी तेल खरीद रही हैं।
रिलायंस के एक प्रवक्ता ने द टेलीग्राफ को बताया, "अमेरिका ने कंपनियों को 21 नवंबर तक रूसी तेल उत्पादकों के साथ लेन-देन समाप्त करने का समय दिया है, जैसा कि प्रतिबंधों की घोषणा में कहा गया है।" वहीं, कंपनी ने लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स को दिए बयान में कहा, "रूसी तेल आयात का पुनर्मूल्यांकन चल रहा है और रिलायंस भारत सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करेगी।"
इन प्रतिबंधों की घोषणा के बाद वैश्विक तेल कीमतें पिछले दो दिनों में 3 डॉलर (5 प्रतिशत) की बढ़ोतरी के साथ 66.02 डॉलर प्रति बैरल के चरम पर पहुंच गईं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि यह सिलसिला जारी रहा, तो तेल कीमतें 90 या 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती हैं। हालांकि, हाल ही में तेल कीमतें 90 डॉलर से घटकर 60 डॉलर प्रति बैरल पर आ चुकी हैं, जिससे ट्रंप प्रशासन के लिए स्थिति खराब बनी हुई है। अमेरिकी तेल उत्पादक 62 डॉलर प्रति बैरल से नीचे कीमतों का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि उत्पादन लागत अधिक है।
यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने भी रूस पर कार्रवाई तेज़ की
यूरोपीय संघ (ईयू) और ब्रिटेन भी रूस के खिलाफ कार्रवाई तेज कर रहे हैं। ईयू ने "शैडो फ्लीट" के 200 से अधिक जहाजों पर प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि कुल 350 जहाजों को ईयू बंदरगाहों और बैंकों से वंचित किया गया है। ईयू अब रूस के गैस क्षेत्र को निशाना बना रहा है, जहां 2025 की पहली छमाही में 5.22 अरब डॉलर मूल्य के एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) खरीद पर रोक लगाई जा रही है। ईयू आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर कहा, "पहली बार हम रूस के गैस क्षेत्र को निशाना बना रहे हैं, जो उसके युद्ध अर्थव्यवस्था का केंद्र है। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक यूक्रेन के लोगों को न्यायपूर्ण और स्थायी शांति न मिले।"भारत को अब खाड़ी देशों पर निर्भर रहना होगा
भारत के लिए इसका मतलब है कि रूसी तेल की कमी में मध्य पूर्व के पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे इराक (भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता), सऊदी अरब (तीसरा सबसे बड़ा, हालांकि इस साल महंगा), कुवैत और यूएई पर निर्भरता बढ़ेगी। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ईयू देशों ने भी मध्य पूर्व की ओर रुख किया है, जिससे मुकाबला बढ़ गया है। पूर्व अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने एक इंटरव्यू में कहा कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन ने जानबूझकर भारत को रूसी तेल खरीदने की छूट दी थी ताकि वैश्विक कमी और कीमतों में तेजी न आए। लेकिन ट्रंप और उनके सलाहकार जैसे पीटर नवारो तथा स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में भारत की रूसी तेल खरीद की आलोचना की है, जो सख्त नीति का संकेत है।चीन ने भी रूसी कच्चा तेल रोकने का संकेत दिया
चीन ने भी अपने राज्य स्वामित्व वाले रिफाइनरियों को समुद्री रूसी कच्चे तेल की खरीद रोकने का संकेत दिया है, हालांकि छोटे स्वतंत्र रिफाइनरी जारी रख सकते हैं। पाइपलाइन आयात का अनुमान 10 से 35-40 प्रतिशत तक है।भारतीय उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है असर
भारत में पेट्रोल की कीमतें पिछले दो वर्षों से लगभग अपरिवर्तित हैं, भले ही कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर से घटकर 60 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हों। वर्तमान मूल्य वृद्धि से उपभोक्ताओं पर तत्काल असर कम ही पड़ने की संभावना है, लेकिन यदि वैश्विक कीमतें लगातार बढ़ीं तो आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। सऊदी अरब ने मांग में कमी के बीच 2026 में उत्पादन लक्ष्य बढ़ाने की योजना बनाई है।यह प्रतिबंध रूस की तेल-गैस राजस्व को नुकसान पहुंचाने का प्रयास हैं, जो उसके "युद्ध अर्थव्यवस्था" का मूल हैं। भारत और चीन जैसे प्रमुख खरीदारों के खिसकने से रूस की निर्यात मात्रा और आय प्रभावित होगी, जिससे आर्थिक अलगाव गहरा सकता है। तेल बाजार कीमतों में उतार-चढ़ाव अप्रत्याशित होता है, लेकिन ट्रंप की नीतियां वैश्विक ऊर्जा को नया मोड़ दे सकती हैं।