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सबरीमला पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पलट तो नहीं देंगे सांसद?

कोल्लम के सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया है। यह बिल सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले को पलटने के लिए है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर को सभी आयु वर्ग की महिलाओं के लिए खोल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को सबरीमला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश को रोकने वाले केरल सरकार के क़ानून को असंवैधानिक क़रार दिया था। अब सवाल उठता है कि क्या यह विधेयक पास हो पाएगा? हालाँकि इस सवाल का जवाब इतना आसान भी नहीं है क्योंकि बीजेपी सबरीमला मामले को उठाती रही है और यदि उसने इसका समर्थन कर दिया तो बिल को लोकसभा में पास होना मुश्किल भी नहीं है। हालाँकि, बीजेपी के समर्थन के बावजूद राज्यसभा में दिक़्क़त आ सकती है। बता दें कि सरकार की संसदीय प्रणाली में निजी सदस्य बिल सरकार की तरफ़ से काम नहीं कर रहे किसी सदस्य की ओर से प्रस्तुत विधेयक होता है जहाँ ‘निजी सदस्य’ ऐसा कोई भी सांसद हो सकता है जो मंत्रिमण्डल (सरकार) का हिस्सा नहीं है।

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इस मसले पर काफ़ी पहले से ही चर्चा चल रही थी। ऐसी ख़बरें पहले से ही थीं कि एन. के. प्रेमचंद्रन शुक्रवार को संसद में सबरीमला मुद्दे पर एक निजी सदस्य विधेयक पेश कर सकते हैं। राज्य में बड़ी संख्या में लोग 10-50 की उम्र की महिलाओं के प्रवेश के ख़िलाफ़ हैं। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के विरोध में जब राज्य में लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे तो बीजेपी भी उनमें शामिल थी। ये प्रदर्शन मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े संगठन कर रहे थे। उससे वैचारिक समानता रखने वाली पार्टी शिवसेना भी इसमें कूद पड़ी थी। 

बीजेपी की क्या है रणनीति?

केरल की राजनीति में बीजेपी हमेशा से ही हाशिए पर रही है। पर हाल के वर्षों में धीरे-धीरे उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। साल 2006 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 4.75 फ़ीसदी वोट ही मिले थे। पर पिछले चुनाव यानी 2016 में इसका वोट प्रतिशत बढ़ कर 15 प्रतिशत हो गया। इसे पहली बार एक सीट पर कामयाबी मिली। उसके बाद वहाँ पार्टी का उत्साह बढ़ा हुआ है। पार्टी की रणनीति भावनात्मक मुद्दों को उछाल कर और जनभावना को भड़का कर पैर पसारने की है। बताया जाता है कि सबरीमला मंदिर मामले को बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत खड़ा किया था। पहले वह सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के पक्ष में थी, लेकिन बाद में इसने अपना मन बदल लिया और इसे हिंदुओं की भावना और मंदिर की परंपरा से जोड़ दिया। तब पार्टी यह तर्क दे रही थी कि लोगों की भावनाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उसका मुख्य मक़सद इसी बहाने राज्य सरकार पर दबाव बनाए रखना और अपना विस्तार करना है। 

महिलाओं के प्रवेश पर क्यों है आपत्ति?

1500 सालों से चली आ रही परंपरा में लंबी लड़ाई के बाद भी महिलाएँ मंदिर के अंदर नहीं जा सकी थीं। सबरीमला मंदिर के पुजारी और अयप्पा के भक्तों का मानना है कि भगवान की पवित्रता को बनाए रखने के लिए 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में नहीं आने देना चाहिए। मासिक धर्म के आयु वर्ग में आने वाली महिलाओं को सबरीमला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में दिए एक फ़ैसले में सभी महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति दे दी। हालाँकि इसके बाद भी मंदिर में जाना महिलाओं के लिए आसान नहीं रहा।

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बिंदु और कनकदुर्गा ने रचा था इतिहास

बिंदु और कनकदुर्गा नाम की दो महिलाओं ने इसी साल दो जनवरी को सबरीमला स्थित अयप्पा मंदिर में घुस कर इतिहास रच दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद इस मंदिर में औरतों को नहीं घुसने दिया जा रहा था। उनके पहले कई बार कई महिलाओं ने जोखिम उठा कर मंदिर में दाखिल होने की कोशिश कीं, पर नाकाम रहीं। हालाँकि दोनों महिलाओं को मंदिर में घुसने की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। कनकदुर्गा की तो पिटाई भी हो गई थी। कनकदुर्गा पर उसकी सास ने ही कथित रूप से हमला कर दिया था और उन्हें इतनी गंभीर चाटें आई थीं कि अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। 

दक्षिणपंथी ताक़तों की धमकियों के कारण 39 साल की कनकदुर्गा मंदिर में घुसने के बाद दो हफ़्ते तक छुपी रही थीं। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि जब वह घर लौटीं तो उनकी सास ने ही उनके सिर पर वार कर दिया था।

मंदिर में घुसने के बाद ही मीडिया से बातचीत में कनकदुर्गा ने कहा था, ‘मुझे पता है कि मेरी जान ख़तरे में होगी। फिर भी मैं मंदिर जाना चाहती थी। हमें गर्व है कि हम दोनों ने उन महिलाओं के लिए राह आसान कर दिया है, जो मंदिर जाना चाहती हैं।’

हालाँकि, बिंदु और कनकदुर्गा के बाद भी कई महिलाओं ने सबरीमला मंदिर में प्रवेश किया है, लेकिन अभी भी स्थितियाँ इसके अनुकूल नहीं हैं। महिलाओं के घुसने का वहाँ अभी भी विरोध बदस्तूर जारी है और संसद में पेश बिल उसी का एक उदाहरण है।

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क़मर वहीद नक़वी
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