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जानिए, ओमिक्रॉन संक्रमण पर कौन सी वैक्सीन कितनी कारगर

ओमिक्रॉन वैरिएंट पर दुनिया भर के टीकों के असर पर एक शोध का परिणाम चिंता में डालने वाला है। शुरुआती शोध में पता चला है कि दुनिया की अधिकतर वैक्सीन ओमिक्रॉन से संक्रमित होने से रोकने में क़रीब-क़रीब विफल हैं। यानी संक्रमण के ख़िलाफ़ ऐसी वैक्सीन कारगर नहीं जान पड़ती हैं। हालाँकि इसमें एक राहत वाली ख़बर यह है कि सभी टीके ओमिक्रॉन वैरिएंट की गंभीर बीमारी से बचाते हुए जान पड़ते हैं।

पहले कुछ वैक्सीन पर एक शोध आया था जिसमें कहा गया था कि भले ही वैक्सीन की रूटीन खुराक ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ पर्याप्त सुरक्षा नहीं देती हैं, लेकिन इसकी बूस्टर खुराक से सुरक्षा बढ़ जाती है। लेकिन अब जो शोध आया है वह दुनिया भर की सभी प्रमुख वैक्सीन को लेकर किया गया है।

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इस ताज़ा शुरुआती शोध के अनुसार, केवल फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन जब एक बूस्टर खुराक दी जाती है तो ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण को रोकने में शुरुआती तौर पर सफल होती हुई दिखती है। ये दोनों ऐसे टीके हैं जो दुनिया के अधिकांश हिस्सों में उपलब्ध नहीं हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने उस शोध के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के अधिकांश देशों में एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन और चीन और रूस में निर्मित टीके शामिल हैं। शुरुआती शोध से पता चलता है कि ओमिक्रॉन के संक्रमण को रोकने के लिए ये टीके कुछ भी नहीं कर पाते हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार, फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन नई एमआरएनए तकनीक पर आधारित हैं, और इसने लगातार हर प्रकार के संक्रमण के ख़िलाफ़ सर्वोत्तम सुरक्षा प्रदान की है। अन्य सभी टीके इम्युन रिस्पांस यानी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के पुराने तरीकों पर आधारित हैं।

ब्रिटेन में एक शुरुआती अध्ययन में पाया गया कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन में टीकाकरण के छह महीने बाद ओमिक्रॉन वैरिएंट के ख़िलाफ़ कोई क्षमता नहीं दिखी।

भारत में नब्बे प्रतिशत टीकाकरण वाले लोगों ने कोविशील्ड ब्रांड नाम के तहत एस्ट्राजेनेका की ही खुराक ली है। इस वैक्सीन को भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया बना रहा है। इस वैक्सीन का व्यापक रूप से उप-सहारा अफ्रीका में भी इस्तेमाल किया गया है।

vaccines effectiveness on omicron variant - Satya Hindi

दुनिया भर में कुल बनाए गए टीके का क़रीब आधा में गिनती रखने वाले चीन के टीके सिनोफार्मा और सिनोवैक ओमिक्रॉन संक्रमण के ख़िलाफ़ कोई भी सुरक्षा नहीं देते हैं। चीन में अधिकांश लोगों ने इन दोनों टीके को ही लगवाया है। इन टीकों का मेक्सिको और ब्राजील जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भी व्यापक रूप से उपयोग किया गया है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि रूस की स्पुतनिक वैक्सीन भी ओमिक्रॉन संक्रमण के ख़िलाफ़ उसी तरह की क़रीब-क़रीब कोई सुरक्षा नहीं दिखाती है।

जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन ने भी ओमिक्रॉन वैरिएंट को रोकने में न के बराबर क्षमता दिखाई है।

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ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ वैक्सीन की ऐसी स्थिति दुनिया भर में चिंता पैदा करने वाली है। एक ऐसी दुनिया में जहाँ अरबों लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है, ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण में तेज़ी न केवल कमजोर व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा है, बल्कि इससे और भी नये वैरिएंट के पनपने का ख़तरा बढ़ता जाएगा। इसी को लेकर विशेषज्ञ यह चेताते रहे हैं कि जब तक पूरी दुनिया में एक साथ कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई नहीं लड़ी जाएगी, इसको साथ मिलकर नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया जाएगा, इस महामारी से निपटना आसान नहीं होगा। साथ मिलकर लड़ाई लड़ने की बात इसलिए भी की जा रही है कि दुनिया भर के देशों के बीच बेहद गहरी आर्थिक खाई तो है ही, स्वास्थ्य व तकनीकी क्षेत्र में भी ऐसी ही खाई है। इसका मतलब है कि कुछ देश आर्थिक और तकनीकी तौर पर इतना सक्षम हैं कि टीके विकसित करने और उन टीकों को खरीदने में सक्षम हैं, जबकि अधिकतर देश इसमें सक्षम नहीं हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयास से दुनिया भर के देशों के लिए कोवैक्स प्रोग्राम चलाया जा रहा है, लेकिन यह भी अब तक उतना कारगर सिद्ध नहीं हुआ है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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